अपना दुख अपनी नाराजगी, अपनी हताशा में डूबा रहा और शादी में नहीं आया. वास्तव में छोड़े गए संबंधों को आगे खूबसूरती से निभाना आदमी के अंदर की ताकत, ईमानदारी, सचाई और पवित्रता पर निर्भर करता है. मैं मानता हूं कि तुम्हारे अंदर मुझ से ज्यादा आत्मविश्वास है.’’
अनुज ने अपनी शैली में ये सब सोचसमझ कर नित्या को खुश करने के लिए कहा था पर वह उस के स्वभाव को अच्छी तरह जानता था. नित्या के चेहरे को देख कर उसे लगा कि वह उस के कथन खासतौर पर ‘पवित्रता’ शब्द को ले कर प्रतिक्रियात्मक हो सकती है. वह व्यग्र हो गया और फिर से खड़ा हो कर विदा मांगने लगा.
नित्या ने चेहरा सामान्य किया और उदारता बरतते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं भी थक गई हूं. आराम करती हूं… शाम को मिलते हैं.’’
‘‘ठीक है मैं शाम 6 बजे आता हूं.’’
‘‘हां, तुम्हारा कमरा नंबर क्या है?’’
‘‘350 यही बगल वाला,’’ कह वह चल पड़ा.
नित्या ने पीछे से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे कमरे में आती हूं.’’
अनुज थका था पर मस्तिष्क में उमड़ रहे खयालों ने सोने नहीं दिया. वह लेटा भी तो महज करवटें बदलता रहा. इस मनोस्थिति में वह समय से पहले तैयार हो कर नित्या की प्रतीक्षा करने लगा. नित्या आराम से आई. घड़ी पर नजर डाली तो 6 बज चुके थे. अब तक वह नित्या से आगे मुलाकात की कई बार रिहर्सल खयालों में कर चुका था. नित्या के आते ही उस ने औपचारिक रूप से चायकौफी के लिए पूछा तो नित्या ने इनकार कर दिया.
अनुज का अनुमान सही था. नित्या उस की बातों से आहत हुई थी खासतौर पर ‘पवित्रता’ को ले कर. उस ने बिना भूमिका के प्रतिक्रिया दी, ‘‘मन और देह की पवित्रता तुम्हारी लिजलिजी भावुकता और चिपचिपी मनोवृत्ति का हिस्सा है. मेरे जीने के तरीके को तुम अच्छी तरह जानते हो. मैं समाज और परंपराओं की विरोधी नहीं हूं पर बंधी मान्यताओं में भी मैं नहीं जी सकती हूं. तुम भले ही इस के लिए मुझे उलाहना दे सकते हो.’’
‘‘नहीं, मेरा ऐसा कोईर् आशय नहीं था. मैं ने तो बस यह कहने का प्रयास
किया था कि छूटे संबंधों को तभी निभाया जा सकता है जब मन में उन के लिए जगह बची हो. इस से भी ज्यादा मेरा यह कहना था कि छूटे संबंधों में अगर आगे निभाने का सिलसिला बनता है, तो इस का मतलब है कि हम ने संबंधों को जितनी ईमानदारी से निभाया है उतनी ही ईमानदारी से भी छोड़ा है.’’
अनुज अपनी सफाई में बोलते समय खुद ही भ्रमित हो गया था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या कहा जाए, इसलिए वह चुप हो गया.
नित्या के चेहरे से साफ था वह इस सफाई से संतुष्ट नहीं है. उस ने अपनी आक्रामकता जारी रखी, ‘‘तुम हर चीज को फीमेल की ईमानदारी और पवित्रता से जोड़ने की मानसिकता से अभी तक बाहर नहीं आए हो. तुम्हें शायद अच्छी तरह मालूम है कि तुम्हारे और मेरे बीच जो फासला बना उस की सब से बड़ी वजह तुम्हारी यही लिजलिजी मानसिकता थी. अब तो तुम्हारे शरीर में थुलथुलापन भी आ गया है,’’ और फिर नित्या ने अनुज के पेट पर हलकी सी चपत लगा दी.
अनुज जैसे शर्मिंदगी में डूब गया. वह शुरू से ही नित्या के बिंदास व्यक्तित्व की चपेट में दबा सा रहा था. वह जानता था कि इस स्थिति से कैसे पार पाना है.
उस ने आत्मसमर्पण की मुद्रा में कहा, ‘‘तुम्हारी इस बेबाकी का मैं शुरू से प्रशंसक रहा हूं. तुम्हारे और रुचिर के संबंधों के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी, इसलिए मैं ने अनजाने में जो टिप्पणी की उस के लिए मुझे खेद है. जहां तक तुम्हारे और मेरे बीच बने संबंधों के फासलों का प्रश्न है शायद मेरी कमी है. मैं कभी खुद को पूरी तरह समझा नहीं पाया वरना मेरी सोच किसी भी रूप में तुम्हारे जीने के तरीके के विरुद्ध नहीं है. बस अफसोस है तो यही कि हम ने संबंधों को फासलों के साथ जीया है.’’
‘‘इस में मैं ने छिपाया क्या है? तुम्हारी भाषा में कहा जाए तो मैं ने संबंधों को ईमानदारी के साथ निभाया है, भले ही तुम कन्फ्यूज्ड रहे हो… मैं हमेशा क्लियर रही हूं. मैं ने तुम्हें हमेशा दोस्त की तरह देखा है… कभी लाइफपार्टनर की तरह नहीं देखा है.’’
अनुज का दर्द छलक आया. उस के दिल का प्रवाह खुल गया, ‘‘हम दोस्त रहे हैं पर दोस्ती के प्रति हमारा नजरिया अलगअलग रहा है, हमारी परस्पर उम्मीदें अलगअलग रही हैं. मैं ने तुम्हें दोस्त के रूप में स्वीकार किया है. यह दोस्ती मैं बनाए रखना चाहता था. मैं मानता हूं तुम्हारी शादी में सम्मिलित नहीं हुआ पर अफसोस तुम ने शादी के बाद दोस्ती तोड़ दी और दूरी बना ली. तुम ने अपने फोन पर मुझे ब्लौक कर दिया. हो सकता है तुम ने अपना नंबर बदल दिया हो. लंबे समय से मैं तुम से बात भी नहीं कर पाया.’’
‘‘तुम जानते हो मैं खुली किताब की तरह हूं. तुम्हें पढ़ने का मौका नहीं मिला तो गलती तुम्हारी है. खैर, आज हम साथ हैं. मौका आने दो तुम्हारे दिल में जो सवाल हैं उन के जवाब मिल जाएंगे… तुम आजकल क्या कर रहे हो?’’
‘‘क्या करता… खानदानी दुकान संभाल
रहा हूं.’’
‘‘तभी शक्ल भी बनिए की बना ली है.’’
नित्या का स्वभाव है कि वह बीचबीच में कड़े व्यंग्य जरूर करती है.
पर वह भी जैसे इन व्यंग्यात्मक टिप्पणियों का आदी हो चुका था. उस ने हमेशा की तरह व्यंग्य को अनसुना करते हुए कहा, ‘‘तुम आजकल क्या कर रही हो?’’
‘‘मैं दिल्ली की एक यूनिवर्सिटी में एमबीए के छात्रों को पढ़ा रही हूं.’’
‘‘वैसे भी तुम्हारी आदत दूसरों को पढ़ाने की रही है,’’ अपने स्वभाव के विपरीत अनुज ने परिहास किया… शायद व्यंग्यात्मक टिप्पणी का प्रतिउत्तर दिया था.
नित्या ने पुअर जोक कह कर अनुज की टिप्पणी की हवा निकाल दी. इतनी चर्चा के बाद अभी केवल 7 बजे थे. डिनर के लिए काफी वक्त बचा था. अनुज ने प्रस्ताव रखा, ‘‘चलो, कहीं घूम आते हैं.’’
‘‘नहीं मैं थकी हूं. मेरी घूमने की इच्छा नहीं हो रही है.’’
‘‘कुछ स्नैक्स और्डर कर देता हूं…