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समय के भी पंख होते हैं. देखते ही देखते मेरी फाइनल परीक्षा भी खत्म हो गई. आखिरी पेपर के दिन शांत ने दोपहर को एक रैस्टोरैंट में मिलने को कहा. वहां हम दोनों कैबिन में बैठे और शांत ने कुछ स्नैक्स और कौफी और्डर की.

शांत ने कहा, ‘‘तनु, तुम ने ग्रैजुएशन के बाद क्या सोचा है? आगे पीजी करनी है?’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी कुछ तय नहीं है. वैसे मातापिता को कहते सुना है कि तनुजा की अब शादी कर देनी चाहिए. शायद किसी लड़के से बात भी चल रही है.’’

मैं ने महसूस किया कि शादी शब्द सुनते ही उस के चेहरे पर एक उदासी सी छा गई थी.

फिर शांत बोला, ‘‘तुम्हारे मातापिता ने तुम से राय ली है? तुम्हारी अपनी भी तो कोई पसंद होगी? तुम्हें यहां बुलाने का एक विशेष कारण है. याद है एक दिन मैं ने कहा था कि तुम्हें इलू का मतलब बताऊंगा. आज मैं ने तुम्हें इसीलिए बुलाया है.’’

‘‘तो फिर जल्दी बताओ,’’ मैं ने कहा.

‘‘मेरे इलू का मतलब आई लव यू है,’’ शांत ने कहा.

मैं बोली, ‘‘तुम्हारे मुख से यह सुन कर खुशी हुई. पर हमेशा अव्वल रहने वाले शांत ने प्यार का इजहार करने में इतनी देर क्यों कर दी? मेरे आगे की पढ़ाई और शादी के बारे में अपने मातापिता का विचार जानने की कोशिश करूंगी, फिर आगे बात करती हूं. मुझे तो तुम्हारा साथ वर्षों से प्यारा है,’’ इस के बाद मैं ने उस का हाथ दबाते हुए घर ड्रौप करने को कहा.

मेरे मातापिता शांत को पसंद नहीं करते थे. मेरे गै्रजुएशन का रिजल्ट भी आ गया था और मैं अपने रिजल्ट से खुश थी. इस दौरान मां ने मुझे बताया कि मेरी शादी एक लड़के से लगभग तय है. लड़के की ‘हां’ कहने की देरी है. इसी रविवार लड़का मुझे देखने आ रहा है. मैं ने मां से कहा भी कि मुझे पीजी करने दो, पर वे नहीं मानीं. कहा कि मेरे पापा भी यही चाहते हैं. लड़का सुंदर है, इंजीनियर है और अच्छे परिवार का है. मैं ने मां से कहा भी कि एक बार मुझ से पूछा होता… मेरी पसंद भी जानने की कोशिश करतीं.

अभी रविवार में 4 दिन थे. पापा ने भी एक दिन कहा कि संजय (लड़के का नाम) 4 दिन बाद मुझे देखने आ रहा था. मैं ने उन से भी कहा कि मेरी शादी अभी न कर आगे पढ़ने दें. पर उन्होंने सख्ती से मना कर दिया. मै ने दबी आवाज में कहा कि इस घर में किसी को मेरी पसंद की परवाह नहीं है. तब पापा ने गुस्से में कहा कि तेरी पसंद हम जानते हैं, तेरी पसंद प्रशांत है न? पर यह असंभव है. प्रशांत बंगाली बनिया है और हम हिंदी भाषी ब्राह्मण हैं.

मैं ने एक बार फिर विरोध के स्वर में पापा से कहा कि आखिर प्रशांत में क्या बुराई है? उन का जवाब और सख्त था कि मुझे प्रशांत या मातापिता में से किसी एक को चुनना होगा. इस के आगे मैं कुछ नहीं बोल सकी.

अगले दिन मैं ने शांत से उसी रैस्टोरैंट में मिलने को कहा. मैं ने घर की स्थिति से उसे अवगत कराया.

शांत ने कहा, ‘‘देखो तनु प्यार तो मैं तुम्हीं से करता हूं और आगे भी करता रहूंगा. पर नियति को हम बदल नहीं सकते. अभी मेरी पढ़ाई पूरी करने में समय लगेगा…और तुम जानती हो आजकल केवल एमबीबीएस से कुछ नहीं होता है…मुझे एमएस करना होगा…मुझे सैटल होने में काफी समय लगेगा. अगर इतना इंतजार तुम्हारे मातापिता कर सकते हैं, तो एक बार मैं उन से मिल कर बात कर सकता हूं…मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे मातापिता को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं होगा.’’

कुछ देर चुप रहने के बाद मैं ने कहा, ‘‘मुझे कोई फायदा नहीं दिखता, बल्कि मुझे डर है कि कहीं वे तुम्हारा अपमान न करें जो मुझे गंवारा नहीं.’’

इस पर शांत ने कहा था कि मेरे प्यार के लिए वह यह रिस्क लेने को तैयार है. आखिर वही हुआ जिस का डर था. पापा ने उसे दरवाजे से ही यह कह कर लौटा दिया कि उस के आने की वजह उन्हें मालूम है, जो उन्हें हरगिज स्वीकार नहीं. अगले दिन शांत फिर मुझ से मिला. मैं ने ही उस से कहा था कि मेरे घर कल उस के साथ जो कुछ हुआ उस पर मैं शर्मिंदा हूं और उन की ओर से मुझे माफ कर दे. शांत ने बड़ी शांति से कहा कि इस में माफी मांगने का सवाल ही नहीं है. सब कुछ समय पर छोड़ दो. मातापिता के विरुद्ध जा कर इस समय कोर्ट मैरिज करने की स्थिति में हम नहीं हैं और न ही ऐसा करना उचित है.

मैं भी उस की बात से सहमत थी और फिर अपने घर चली आई. भविष्य को समय के हवाले कर हालात से समझौता कर लिया था.

रविवार के दिन संजय अपने मातापिता के साथ मुझे देखने आए. देखना क्या बस औपचारिकता थी. उन की तरफ से हां होनी ही थी. संजय की मां ने एक सोने की चेन मेरे गले में डाल कर रिश्ते पर मुहर लगा दी. 1 महीने के अंदर मेरी शादी भी हो गई.

संजय पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर थे और पटना में ही पोस्टेड थे. चंद हफ्तों बाद मेरा जन्मदिन था. संजय ने एक पार्टी रखी थी तो मुझ से भी निमंत्रण पाने वालों की लिस्ट दिखाते हुए पूछा था कि मैं किसी और को बुलाना चाहूंगी क्या? तब मैं ने प्रशांत का नाम जोड़ दिया और उस का पता और फोन नंबर भी लिख दिया था. शांत अब होस्टल में रहने लगा था. संजय के पूछने पर मैं ने बताया कि वह मेरे बचपन का दोस्त है.

संजय ने चुटकी लेते हुए पूछा था, ‘‘ओनली फ्रैंड या बौयफ्रैंड…’’

मैं ने उन की बातचीत काट कर कहा था, ‘‘प्लीज, दोबारा ऐसा न बोलें.’’

संजय ने कहा, ‘‘सौरी, मैं तो यों ही मजाक कर रहा था.’’

खैर, संजय ने शानदार पार्टी रखी थी. शांत भी आया था. संजय और शांत दोनों काफी घुलमिल कर बातें कर रहे थे. बीचबीच में दोनों ठहाके भी लगा रहे थे. मुझे भी यह देख कर खुशी हो रही थी और मेरे मन में जो डर था कि शांत को ले कर संजय को कोई गलतफहमी तो नहीं, वह भी दूर हो चुकी थी.

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