अनन्य पार्किंग में अपनी कार खड़ी कर के उतर ही रहा था कि सामने से स्कूटी से उतरती लड़की को देख कर ठगा सा रह गया. उस लड़की ने बड़ी अदा से हैलमेट उतार कर बालों को झटका तो मानो बिजली सी कौंध गई.
उस के स्कूटी खड़ा कर आगे बढ़ने तक वह बड़े ध्यान से उसे देखता रहा. सलीके से पहनी हैंडलूम की साड़ी, कंधों तक लहराते काले बाल और एकएक कदम नापतौल कर रखती गरिमा से भरी चाल उस के व्यक्तित्व को अद्भुत आभा प्रदान कर रहे थे.
अपनी मौसेरी बहन के बेटे चिरायु के जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने के लिए अनन्य उत्सव रिजोर्ट आया था. वह लड़की भी उत्सव की ओर जा रही थी. अनन्य को कुछ और देर तक उसे निहारने का सुख मिल गया.
उत्सव के गेट में घुसते ही वह लपक कर लिफ्ट की ओर दौड़ गई. जब तक अनन्य को होश आता, लिफ्ट ऊपर जा चुकी थी. अनन्य के पास अब इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई चारा भी नहीं था. पहली बार उसे धीमी गति से चलने के कारण खुद पर गुस्सा आया.
जब वह तीसरी मंजिल पर पार्टी वाले हौल में पहुंचा तो उसी लड़की को अपनी बहन सुजाता से बात करते देख हैरान रह गया. उसे देखते ही सुजाता खिलखिला कर हंस दी.
‘‘तुम शायद इसी की शिकायत कर रही हो. यही पीछा कर रहा था न तुम्हारा? ठहरो, अभी इस के कान पकड़ती हूं,’’ सुजाता नाटकीय अंदाज में बोली थी.
‘‘मैं खुद कान पकड़ता हूं, दीदी. मैं किसी का पीछा नहीं कर रहा था. मैं तो चिरायु के जन्मदिन की पार्टी में आ रहा था. कोई मेरे आगे चल रहा हो तो मैं क्या करूं.’’