काले नए सूट, सफेद कमीज, मैचिंग टाई में ऐसा लग रहा था जैसे अभी बोल पड़ेगा. बैठक फूलों के बने रीथ (गोल आकार में सजाए फूल), क्रौस तथा गुलदस्तों से भरी पड़ी थी.आसपास के लोग तो नहीं आए थे लेकिन उन के कुलीग वहां मौजूद थे.
लोगों ने अपनेअपने घरों के परदे तान लिए थे, क्योंकि विदेशों में ऐसा चलन है. पोलीन और जेम्स के आते ही उन्हें विवेक के साथ कुछ क्षण के लिए अकेला छोड़ दिया गया. मामाजी ने बाकी लोगों को गाडि़यों में बैठने का आदेश दिया.
हर्श (शव वाहन) के पीछे की गाड़ी में विवेक का परिवार बैठने वाला था. अन्य लोग बाकी गाडि़यों में.‘‘मंजू, किसी ने पुलिस को सूचना दी क्या? शव यात्रा रोप लेन से गुजरने वाली है?’’ (यू.के. में जहां से शवयात्रा निकलती है, वह सड़क कुछ समय के लिए बंद कर दी जाती है.
कोई गाड़ी उसे ओवरटेक भी नहीं कर सकती या फिर पुलिस साथसाथ चलती है शव के सम्मान के लिए).‘‘यह काम तो चर्च के पादरीजी ने करदिया है.’’‘‘और हर्श में फूल कौन रखेगा?’’‘‘फ्यूनरल डायरैक्टर.’’‘‘मंजू, औरतें और बच्चे तो घर पर हीरहेंगे न?’’‘‘नहीं मामाजी, यह भारत नहीं है.
यहां सभी जाते हैं.’’‘‘मैं जानता हूं लेकिन घर को खाली कैसे छोड़ दूं?’’‘‘मैं जो हूं,’’ मामीजी ने कहा.‘‘तुम तो इस शहर को जानतीं तक नहीं.’’‘‘मैं मामीजी के साथ रहूंगी,’’ पड़ोसिन छाया बोली.अब घर पर केवल छाया तथा मामीजी थीं. मामाजी तथा मंजू की बातें सुनने के बाद छाया की जिज्ञासा पर अंकुश लगाना कठिन था. छाया थोड़ी देर बाद भूमिका बांधते बोली, ‘‘मामीजी, अच्छी हैं यह गोरी मेम. कितनी दूर से आई हैं बेटे को ले कर.
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