सिस्टर अनिता की नजरें बारबार प्राइवेट कमरा नंबर-1 की तरफ उठ जाती थीं. उस कमरे में इसी अस्पताल के नामी हार्ट सर्जन डाक्टर आनंद भरती थे.‘‘अब आप इतनी चिंता क्यों कर रही हैं? डाक्टर आनंद ठीकहो कर कल सुबह घर जा तो रहे हैं,’’ साथ बैठी सिस्टर शारदा ने अनिता की टैंशन कम करने की कोशिश की.
‘‘मैं ठीक हूं... कई दिनों से नींद पूरी न होने के कारण आंखें लाल हो रही हैं,’’ अनिता बोली.‘‘कुछ देर रैस्टरूम में जाकर आराम कर लो, मैं यहां सब संभाल लूंगी.’’‘‘नहीं, मैं कुछ देर यहीं सुस्ता लेती हूं,’’ कह अनिता ने आंखें बंद कर सिर मेज पर टिका लिया.
डाक्टर आनंद से अनिता का परिचय करीब 20 साल पुराना था. इतने लंबे समय में इकट्ठी हो गई कई यादें उस के स्मृतिपटल पर आंखें बंद करते ही घूमने लगीं...पहली बार वह डाक्टर आनंद की नजरों में औपरेशन थिएटर में आई थी.
उस दिन वह सीनियर सिस्टर को असिस्ट कर रही थी. तब उस ने डाक्टर आनंद का ध्यान एक महत्त्वपूर्ण बात की तरफ दिलाया था, ‘‘सर, पेशैंट का खून नीला पड़ता जा रहा है.’’डाक्टर आनंद ने डाक्टरनीरज की तरफ नाराजगी भरे अंदाज में देखा.डाक्टर नीरज की नजर औक्सीजन सिलैंडर की तरफ गई. पर उस का रैग्यूलेटर ठीक प्रैशर दिखा रहा था.‘‘यह रैग्यूलेटर खराब है... जल्दी से सिलैंडर चेंज करो,’’ डाक्टर आनंद का यह आदेश सुन कर वहां खलबली मच गई.
जब सिलैंडर बदल दिया गया तब डाक्टर आनंद एक बार अनिता के चेहरे की तरफ ध्यान से देखने के बाद बोले, ‘‘गुड औब्जर्वेशन, सिस्टर... थैंकयू.’’औपरेशन समाप्त होने के कुछ समय बाद डाक्टर आनंद ने अनिता को अपने चैंबर में बुला कर प्रशंसा भरी आवाज में कहा, ‘‘आज तुम्हारी सजगता ने एक मरीज की जान बचाई है.’’‘‘थैंकयू, सर.’’‘‘बैठ जाओ, प्लीज... चाय पी कर जाना.’’‘‘थैंकयू, सर,’’ अपने दिल की धड़कनों को काबू में रखने की कोशिश करते हुए अनिता सामने वाली कुरसी पर बैठ गई.