‘दिलक्या करे जब किसी से किसी को प्यार हो जाए...’ एफएम पर यह गाना बज रहा था और पाखी सोच रही थी कि ऐसे गाने आज भी फिट बैठते हैं. लेकिन इस गाने की नायिका का नाम जूली न हो कर पाखी होता, तो और सटीक लगता. रोमांटिक तबीयत वाली व शेरोशायरी की शौकीन पाखी को जब प्यार हुआ तो जनून बन कर सिर पर चढ़ गया. उस ने कसम खा ली और इरादा पक्का कर लिया गड़बड़ी फैलाने, चांदनी की शादी को चौपट करने और उस के सपनों पर पानी फेरने का. लेकिन यह नहीं सोचा था उस ने कि उस की योजना का अंत हौस्पिटल के इमरजैंसी वार्ड में होगा. पर इतना वह अवश्य मानती है कि जो कुछ हुआ वह अच्छा हुआ. इस से बेहतर की उम्मीद भी वह क्या करती?
आज मौसम भी खुशगवार था. लग रहा था जैसे पत्तों और शाखों के बीच अनबन खत्म हो गई है. पत्तों ने गिरना बंद कर दिया था. अपनी जगह चिपके वे ठंडी बयार की कोमल सहलाहट का आनंद ले रहे थे. ऐसे सुहावने मौसम में सूप का घूंट भरती पाखी की नजर पास रखी पत्रिका पर गई. उस में ‘अपना प्यार कैसे पाएं’ लेख पर जैसे ही उस की नजर पड़ी, उस की हंसी छूट गई. मुंह से निकली सूप की फुहार उस के गालों पर छिटक गई. काश, इतना सरल होता यह सब, तो पत्रिका में दिए गए सुझावों को अपनाती और पा लेती अपना प्यार.
पाखी की मोहित पर पहली नजर कालेज की वैलकम पार्टी में पड़ी थी और वह उसे पहली नजर में ही भा गया था. उस पार्टी में सभी युवा एकदूसरे को टटोल रहे थे. आखिर एमबीए करने आए सभी विद्यार्थी परिपक्व जो थे. कई तो नौकरी का अनुभव लेने के पश्चात आए थे. लेकिन पाखी के कदम बढ़ाने से पूर्व चांदनी मोहित को खींच कर ले गई. इस से पहले कि मोहित संभल पाता, वह उस के साथ पूरी पार्टी में नाचती फिर रही थी. पहले गले में बांहें, फिर कमर में. उफ हद हो गई. मोहित बेचारे की क्या गलती? जब चांदनी ही उस आकर्षक नौजवान पर मेहरबान हो उठी तो भला उसे क्या आपत्ति हो सकती थी? चांदनी एक खूबसूरत लड़की थी जिस की अदाएं रहीसही कसर पूरी कर देती थीं.