वैसे तो मु झे उस के छूने से, उस के करीब आने से एक नैसर्गिक प्रसन्नता और तृप्ति मिलती थी, लेकिन उन दिनों औफिस के माहौल से बहुत परेशान थी. घर आते ही मन करता था नील के कंधे पर सिर रख कर औफिस की भड़ास निकाल कर थोड़ा रोने का. लेकिन उसे आधे घंटे में ट्यूशन पढ़ाने निकलना होता था. मेरे आते ही वह मु झे बांहों में खींच कर चूमने लगता.
उस दिन कुछ तबीयत ठीक नहीं थी और औफिस में भी कुछ अधिक ही कहासुनी हो गई. भरी बैठी थी. अत: उस के करीब आते ही सारा आक्रोश उस पर निकल गया. धक्का देते हुए बोली, ‘‘इस तन के अलावा और कुछ नहीं सू झता क्या?’’
वह ठिठक गया. फिर एकदम पलट कर बाहर चला गया.
रात को 12 बजे तक आता था और मेरी नींद न खुले, इसलिए ड्राइंगरूम में ही सो जाता
था. उस रात भी उस ने ऐसा ही किया. सुबह जब मेरी आंख खुली वह तैयार हो कर औफिस जा रहा था. बिना कुछ खाए और बोले वह चला गया. शाम को मेरे आने से 1 घंटा पहले घर आ जाता था और मेरे आते ही हम आधा घंटा अपनी तनमन की सब बातें करते थे. इस के अलावा हमारे पास एकदूसरे के लिए समय नहीं होता था. लेकिन अब मेरे आने से पहले वह निकल जाता था. रोना तो बहुत आता था, पर मैं सही थी. उस के पास मु झ से बात करने के लिए 2 पल भी नहीं होते थे.
वह खड़ा हो गया. मेरे कंधों को जोर से पकड़ चीखते हुए बोला, ‘‘तुम ने उस दिन मेरे प्रेम को गाली दी, जीवन में अगर अपने से अधिक किसी को प्यार किया तो वह तुम हो. अगर केवल तुम्हारे तन का भूखा होता तो कालेज में 3 साल तक बिना हाथ लगाए नहीं रहता. मन तो तब बहुत मचलता था, लेकिन वादा किया था कि तुम्हारी इज्जत से कभी खिलवाड़ नहीं करूंगा. वही तो आधा घंटा मिलता था करीब आने का. सारा दिन बीत जाता तुम्हारे बारे में सोचतेसोचते... तुम्हारे नजदीक आ कर पूर्णता का एहसास होता, स्फूर्ति आ जाती, दुनिया का सामना करने की ताकत मिल जाती. मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति थी वह, तुम में समा कर इतने गरीब हो जाने का एहसास था कि लगता हम एक हैं.’’