जब मैं ने नील को बताया कि मु झे 5 दिनों के लिए लखनऊ जाना है तो वह बड़बड़ाने लगा. यह मेरे लिए बड़ी परेशानी की बात हो गई थी कि पति का मिजाज देखूं या नौकरी. मेरा मन बड़ा खिन्न सा रहता. उस से बात करने का भी मन नहीं करता.
जाने से 2 दिन पहले निर्मलाजी ने बताया मु झे लखनऊ
नहीं शिमला जाना होगा. वहां जो टीम औडिट करने गई है उस के एक सदस्य की तबीयत खराब हो गई है. मु झे क्या फर्क पड़ता था फिर कहीं भी जाना हो. नील को बताने का मन नहीं हुआ. इसलिए कि फिर दोबारा उस की बड़बड़ शुरू हो जाएगी. अच्छा हुआ नहीं बताया. मु झे नील का वह रंग देखने को मिला जिस पर मु झे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा है.
‘‘मैं जब 5 दिनों के लिए बाहर गई थी 2 महीने पहले तो क्या तुम शिमला गए थे?’’
नील आश्चर्य से, ‘‘हां, लेकिन तु झे कैसे पता?’’
‘‘मैं भी तब शिमला में थी और मैं ने तुम्हें देखा था.’’
‘‘तुम तो लखनऊ जाने वाली थी और अगर शिमला गईर् थी तो बताया क्यों नहीं? साथ में घूमते बड़ा मजा आता.’’
‘‘अच्छा और जिस के साथ घूमने का कार्यक्रम बना कर गए थे उस बेचारी को म झधार में छोड़ देते?’’
नील असमंजस से देखते हुए बोला, ‘‘तुम क्या बोल रही हो मु झे नहीं पता... राहुल और सौरभ बहुत दिनों से कह रहे थे कहीं घूमने चलते हैं... मैं बस टालता जा रहा था. जब तुम जा रही थी तो मैं ने उन्हें कार्यक्रम बनाने के लिए हां कह दी.’’