चांद की धुंधली रोशनी में सभी एकदूसरे की सांसें महसूस करने की कोशिश कर रहे थे. उन्हें तो यह भरोसा भी नहीं हो रहा था कि वे जीवित बचे हैं. पर ऊपर नीला आकाश देख कर और पैरों के नीचे जमीन का एहसास कर उन्हें लगा था कि वह बाढ़ के प्रकोप से बच गए. बाढ़ में कौन बह कर कहां गया, कौन बचा, किसी को कुछ पता नहीं था.
इन बचने वालों में कुछ ऐसे भी थे जिन के अपने देखते ही देखते उन के सामने जल में समाधि ले चुके थे और बचे लोग अब विवश थे हर दुख झेलने के लिए.
‘‘जाने और कितना बरसेगा बादल?’’ किसी ने दुख से कहा था.
‘‘यह कहो कि जाने कब पानी उतरेगा और हम वापस घर लौटेंगे,’’ यह दूसरी आवाज सब को सांत्वना दे रही थी.
‘‘घर भी बचा होगा कि नहीं, कौन जाने.’’ तीसरे ने कहा था.
इस समय उस टापू पर जितने भी लोग थे वे सभी अपने बच जाने को किसी चमत्कार से कम नहीं मान रहे थे और सभी आपस में एकदूसरे के साथ नई पहचान बनाने की चेष्टा कर रहे थे. अपना भय और दुख दूर करने के लिए यह उन सभी के लिए जरूरी भी था.
चांद बादलों के साथ लुकाछिपी खेल रहा था जिस से वहां गहन अंधकार छा जाता था.
तानी ने ठंड से बचने के लिए थोड़ी लकडि़यां और पत्तियां शाम को ही जमा कर ली थीं. उस ने सोचा आग जल जाए तो रोशनी हो जाएगी और ठंड भी कम लगेगी. अत: उस ने अपने साथ बैठे हुए एक बुजुर्ग से माचिस के लिए पूछा तो वह जेब टटोलता हुआ बोला, ‘‘है तो, पर गीली हो गई है.’’