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किरण से मेरी पहली मुलाकात राजीव से शादी होने के करीब 6 महीने बाद हुई थी. वह अपनी भाभी के साथ स्कूल आई थी. तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले उस के भतीजे समीर की मैं क्लास टीचर हूं.

‘‘मैं किरण हूं. राजीव और मैं कालेज में साथसाथ पढ़े हैं और हम बहुत अच्छे दोस्त भी थे,’’ उस की भाभी जब दूसरी टीचर से मिलने चली गई तो उस ने मुसकराते हुए अपना परिचय मुझे दिया था.

उस का नाम सुनते ही मेरा दिमाग एक बार को सुन्न सा हो गया. एकदम से समझ में ही नहीं आया कि मैं आगे क्या बोलूं.

उस ने मेरी चुप्पी का गलत अर्थ लगाया और बिदा लेते हुए बोली, ‘‘कभी राजीव को ले कर घर जरूर आना. बाय.’’

‘‘उसे यों जाते देख कर मैं चौंकी और फिर हड़बड़ाती सी बोली, ‘‘मैं अकेले में आप से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’

‘‘श्योर,’’ उस का जवाब सुन कर मैं कुरसी से उठी और उसे हौल के एक कोने में ले आई. फिर मैं ने इधरउधर की बातें करने में समय नष्ट किए बिना उस से सीधा सवाल पूछा, ‘‘तुम ने राजीव से शादी क्यों नहीं करी?’’

‘‘मुझे राजीव से शादी क्यों करनी चाहिए थी?’’ उस ने मुसकराते हुए उलटा सवाल पूछा.

‘‘क्योंकि तुम दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. राजीव विजातीय थे तो क्या हुआ? तुम्हें अपने मातापिता की इच्छा के खिलाफ जा कर उन से शादी करनी चाहिए थी.’’

‘‘क्योंकि उन्होंने आज भी तुम्हारी तसवीर को दिल में बसा रखा है. तुम से जुड़ी यादों के कारण मैं कभी उन के दिल की रानी नहीं बन पाऊंगी,’’ मैं गुस्सा हो उठी थी.

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