‘‘हैलोविन्नी... कैसी हो मेरी जान... अरे, मैं शालिनी बोल रही हूं... तुम्हारी शालू’’ सुन कर विनीता को समझने में कुछ समय लगा, मगर फिर जल्दी ही जैसे दिमाग सोते से जागा.
‘‘अरे, शालू तुम? अचानक इतने सालों बाद? तुम तो नितेश से शादी कर के अमेरिका चली गई थी... आज इतने सालों बाद अचानक मेरी याद कैसे आई? क्या इंडिया आई हो?’’ विनीता ने अपने मन की घबराहट छिपाते हुए पूछा.
‘‘अरे बाप रे, इतने सारे सवाल एकसाथ? बताती हूं... बताती हूं... अभी तो बातें शुरू हुई हैं...’’ शालिनी ने अपनी आदत के अनुसार ठहाका लगाते हुए कहा.
‘‘पहले तू यह बता कि मेरे खोए हुए आशिक यानी जतिन के बारे में तुझे कोई खबर है क्या? शायद मेरी तरह उस ने भी हमारे अतीत के कुछ पन्ने संभाल कर रखें हों...’’ शालिनी का सवाल सुनते ही विनीता के हाथ से मोबाइल छूटने को हुआ. वह उसे कैसे बताती कि उस का खोया हुआ आशिक ही अब उस का पाया हुआ प्यार है... जिन अतीत के पन्नों की बात ‘शालू कर रही थी वही पन्ने उस के जाने के बाद विनीता वर्तमान में पढ़ रही है... हां, वही जतिन जो कभी शालू का आशिक हुआ करता था आज विनीता का पति है.’
विनीता को एकाएक कोई जवाब नहीं सूझा तो उस ने 4-5 बार ‘‘हैलो... हैलो...’’ कह कर फोन काट दिया और फिर उसे स्विच औफ भी कर दिया. वह फिलहाल शालू के किसी भी सवाल का जवाब देने की स्थिति में नहीं थी.
विनीता बैडरूम में आ कर कटे पेड़ की तरह ढह गई. न जाने कितनी ही बातें... कितनी ही यादें थीं, जो 1-1 कर आंखों के रास्ते गुजर रही थी. कौन जाने... आंखों से यादें बह रही थीं या आंसुओं का सैलाब... कैसे भूल सकती है विनीता कालेज के आखिरी साल के वे दिन जब शालिनी ने अचानक नितेश से शादी करने के अपने पापा के फैसले को हरी झंडी दे दी थी. विनीता ने क्या कम समझाया था उसे?