अगलेकुछ दिनों में कुछ होने वाला था. मैं चारों पैरों पर खड़ा हो कर ताकने की कोशिश कर रहा था. घर की चौकीदारी तो मेरा ही काम है न. हर जने की आवाज पहचानता हूं. मिनी की सारी सहेलियों को जानता हूं. मालिकमालकिन का दुलारा हूं और मिनी तो कई बार कह देती है कि मैं तीसरा बेटा हूं उन का. उन की बातें चाहे समझ न आएं पर चेहरा तो पढ़ ही सकता हूं न.
‘‘मिनी, घर पर दोस्तों का जमघट न लगा लेना. अंजलि या रिया को बुलाना हो तो सोने के लिए बुला लेना और किसी को नहीं.’’
‘‘ओह मम्मी, मैं छोटी बच्ची थोड़े ही हूं. औफिस जाने लगी हूं. सचमुच इतनी हिदायतें देने की जरूरत है क्या?’’
शेखर ने फौरन मिनी को हमेशा की तरह पुचकारा, ‘‘माया, मिनी बड़ी हो गई है, यह जानती है कैसे रहना है. न्यू ईयर का समय है, बच्चे भी तो ऐंजौय करेंगे. जब हम दोनों बाहर जा रहे हैं तो यह भी घर में अकेली क्यों रहे... दोस्त आ भी जाएंगे तो बुरा क्या है?’’
‘‘मेरे सामने इस के फ्रैंड्स आते ही हैं, मुझे कोई दिक्कत नहीं पर मेरे पीछे से आने में मुझे चिंता रहती है, साफ बात है. राहुल भी दोस्तों के साथ गोवा चला गया वरना परेशानी की कोई बात ही न होती.’’
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मिनी ने अब लाड़ से माया के गले में हाथ डाल दिया, ‘‘ओके मम्मी. आप आराम से जाओ... जमघट नहीं लगेगा. खुश?’’
माया ने भी मिनी का गाल चूम लिया. मैं वहीं खड़ा यह रोचक दृश्य देख रहा था. शेखर ने मेरे सिर पर हाथ फेरा तो मैं भी पूंछ हिलाता हुआ उन से लिपट गया.
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