रात के अंधियारे में पूरा मांडवगढ़ अब कितना खामोश रहता है, यहां की हर चीज में एक भयानकता झलकती है. धीरेधीरे खंडहरों में तबदील होते महल को देख कर इतना तो लगता है कि ये कभी अपार वैभव और सुविधाओं की अद्भुत चमक से रोशन रहते होंगे. कभी गूंजती होंगी यहां रहने वाले सैनिकों की तलवारों की खनक, घोड़ों के टापों की आवाजें, हाथियों की चिंघाड़, जिस की गवाह हैं ये पहाडि़यां, ये दीवारें उस शौर्यगाथा की, जो यहां के चप्पेचप्पे पर बिखरी पड़ी हैं.

यहां बने महल का हर कोना, जिस ने देखे होंगे वह नजारे, युद्ध, संगीत और गायन जिस की स्वर लहरियां बिखरी होेंगी यहां की फिजा में. काश, ये खामोश गवाह बोल सकते तो न जाने कितने भेद खोल देते और खोल देते हर वह राज, जो दफन हैं इन की दीवारों में, इन के दिलों में, इन के फर्श में, मेहराबों में, झरोखों में, सीढि़यों में और यहां के ऊंचेऊंचे गुंबदों में.’’

‘‘चुप क्यों हो गए दोस्त, मैं तो सुन रहा था. तुम ही खामोश हो गए दास्तां कहतेकहते,’’ रानी रूपमती के महल के एक झरोखे ने दूसरे झरोखे से कहा.

‘‘नहीं कह पाऊंगा दोस्त,’’ पहला वाला झरोखा बोलतेबोलते खामोश हो चुका था. किंतु महल की दीवारों ने भी तन्मयता से उन की बातें सुनी थीं. आखिरकार जब नहीं रहा गया तो एक दीवार बोल ही पड़ी :

‘‘दिन भर यहां सैलानियों की भीड़ लगी रहती है. देशीविदेशी इनसानों ने हमारी छाती पर अपने कदमों के जाने कितने निशान बनाए होंगे. अनगिनत लोगों ने यहां की गाथाएं सुनी हैं, विश्व में प्रसिद्ध है यह स्थान.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...