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‘‘डैडी,मैं ने रेस्तरां बेच दिया है.’’
रिटायर्ड कर्नल विमल उस वक्त बालकनी में बैठे अखबार पढ़ रहे थे जब उन की लड़की दीपा ने उन से यह बात कही. उन्होंने एक सरसरी सी नजर अपनी बेटी पर डाली जो उन के लिए केतली से कप में चाय डाल रही थी.
‘‘हम अगले हफ्ते शिमला वापस जा रहे हैं.’’

दीपा की इस बात का भी विमल ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘डैडी चाय,’’ दीपा ने चाय का प्याला उन की ओर बढ़ा दिया.
‘‘डैडी, क्या मैं ने कुछ गलत किया?’’

‘‘नहीं, बिलकुल गलत नहीं,’’ विमल ने एक घूंट चाय सिप करते हुए कहा.

‘‘लेकिन आप ने पूछा नहीं कि मैं ने यह फैसला क्यों लिया और वह भी बिना आप से पूछे?’’
विमल ने चाय का प्याला टेबल पर रख दिया और प्यार से अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘क्योंकि मैं जानता हूं कि मेरी बेटी जो भी कदम उठाती है, सोचसमझ कर ही उठाती है.’’

‘‘डैडी,’’ दीपा के मुंह से हलकी कराह जैसी आवाज निकली और वाह अपने डैडी के गले से लिपट गई, ‘‘आई लव यू डैडी,’’ उस के मुंह से निकला.

कर्नल विमल रिटायर्ड आर्मी औफिसर थे. दुश्मन से मोरचा लेते हुए वे अपना एक हाथ और एक पैर गंवा चुके थे. उन की पत्नी अपने पति का यह हाल नहीं देख सकीं और सदमे में चल बसी थीं. दीपा उन की इकलौती बेटी थी, जो अपनी पढ़ाई पूरी कर के विदेश जाना चाहती थी, लेकिन अब उस ने अपना फैसला बदल दिया था और एक रेस्तरां चलाती थी.

विमल ने कई बार उस से शादी कर अपना घर बसाने की बात कही, पर उस ने हमेशा मना कर दिया. वह अपने अपाहिज पिता को अकेले इस तरह छोड़ कर जाने को तैयार नहीं थी. विमल को दीपा पर पूरा भरोसा था, इसलिए उन्हें उस के इस फैसले पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ. शिमला में उन का पुराना मकान था. दीपा ने उन से वहीं वापस जाने की बात कही थी.

विमल ने दीपा का चेहरा उठाया और उस की भीगी पलकों को देखते हुए बोले, ‘‘यह क्या बेटी तेरी आंखों में आंसू? तुझे याद नहीं, मैं ने तेरी मां को उस के आखिरी समय पर क्या वचन दिया था कि मैं तेरी आंखों में कभी आंसू नहीं आने दूंगा.

दीपा ने विमल की ओर देखा, फिर अपने रूमाल से उन की भीग आई आंखों को पोंछते हुए अपने कमरे में चली गई और पलंग पर लेट कर एक मैगजीन उठा कर उस के पन्ने पलटने लगी, लेकिन उस का ध्यान मैगजीन में नहीं लग रहा था. धीरेधीरे उसे अपनी जिंदगी के कुछ पिछले पन्ने पलटते दिखाई पड़े…
उस दिन बारिश बहुत हुई थी और दीपा का रेस्तरां पूरी तरह खाली था. कोईर् वर्कर भी नहीं आया था. दीपा अकेली बैठी रेडियो सुन रही थी. तभी उस की नजर अपने रेस्तरां के बाहर खड़े एक युवक पर पड़ी, जो बुरी तरह पानी में भीगा हुआ था और ठंड से जकड़ा जा रहा था. दीपा ने उसे अपने काउंटर से ही आवाज दी, ‘‘हैलो, अंदर आ जाओ.’’

युवक ने शायद सुना नहीं.
दीपा ने दोबारा उसे आवाज दी, ‘‘हैलो, मैं आप ही से कह रही हूं, अंदर आ जाओ वरना बीमार हो जाओगे.’’

अब की युवक ने मुड़ कर देखा तो दीपा को अपनी ओर इशारा करते हुए पाया. वह अंदर चला गया.
‘‘बैठ जाओ, बहुत भीग गए हो,’’ दीपा उठ कर उस के पास आई और एक कुरसी उस के करीब खिसका दी.
‘‘थैंक यू,’’ युवक बोला. लेकिन तब तक दीपा अंदर जा चुकी थी और जल्द ही 2 कप चाय ले कर आ गई और उस के पास ही कुरसी पर बैठ गई और उस के पास चाय का प्याला
रख दिया.
युवक ने पहले चाय की ओर, फिर दीपा की ओर देखा और सकुचाते हुए बोला, ‘‘इस की क्या जरूरत थी, आप ने बेकार ही तकलीफ की.’’
‘‘फार्मैलिटी दिखाने की जरूरत नहीं है. मैं देख रही हूं कि तुम सर्दी में ऐंठे जा रहे हो. अगर गरमागरम चाय नहीं पी तो निश्चय ही निमोनिया हो जाएगा तुम्हें.’’
युवक ने जल्दी से कप उठा लिया और चाय पीने लगा. उसे लगा जैसे इस सर्दी में उसे चाय नहीं अमृत मिल गया है.
‘‘और हां, मैं ने तुम पर कोईर् एहसान नहीं किया है चाय पिला कर. दरअसल, मुझे भी चाय की तलब हो रही थी, लेकिन आलस के मारे उठा नहीं गया. तुम देख रहे हो न कि आज यहां कोई वर्कर नहीं आया है, सो चाय खुद ही बनानी पड़ी. तुम्हारे साथसाथ मुझे भी चाय मिल गई. वैसे इस भरी बरसात में जनाब आप हैं कौन और कौन सा शिकार करने निकले थे?’’

युवक दीपा की इतनी बेबाकी पर हंस पड़ा और बोला, ‘‘मेरा नाम विजय है और मैं एक काम की तलाश में निकला था.’’

‘‘इतनी बरसात में काम की तलाश करना, वाह कमाल है. क्या रोटीवोटी के लाले पड़ रहे हैं?’’
नहीं… नहीं ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल, मेरे डैडी चाहते हैं कि मैं उन के बिजनैस में उन का हाथ बंटाऊ, लेकिन मैं अपनेआप अपने पैरों पर खड़े होना चाहता हूं, इसलिए काम के लिए मुझे बारिश या तूफान की कोई परवाह नहीं होती.’’

‘‘हूं,’’ दीपा उस की ओर देखती हुई बोली, ‘‘खयाल अच्छा है और विचार भी तुम्हारे ऊंचे हैं. तुम्हारा यह कहना भी सही है कि हर किसी को खुद अपने बल पर अपन भविष्य बनाना चाहिए.’’
‘‘आप को देख कर तो ऐसा ही लगता है कि इतने छोटा लेकिन प्यारा सा रेस्तरां आप ने खुद ही खड़ा किया है…’’
‘‘दीपा, मेरा नाम दीपा है और मैं ही अकेली इस रेस्तरां को पिछले कई सालों से चला रही हूं. मैं ने इस के लिए किसी की मदद नहीं ली, बस मेरे डैडी का आशीर्वाद है जो मैं रोज सुबहशाम उन से लेती हूं.’’
दीपा और विजय की यह छोटी सी मुलाकात धीरेधीरे बढ़ती गई और पता नहीं

कब इन मुलाकातों का दौर प्यार में बदल गया. दीपा को लगा जैसे उसे जीने के लिए एक और सहारा मिल गया हो. उस ने अपनी और विजय की मुलाकात और प्यार के बारे में विमल को सबकुछ बता दिया. विमल को यह जान कर बहुत खुशी हुई. उन्हें लगा जैसे दीपा और विजय की शादी कर वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगा.

‘‘डैडी, आज मैं बहुत खुश हूं,’’ दीपा उस दिन अपने डैडी से लिपट कर बोली थी. विमल ने उस दिन अपनी बेटी की आंखों में एक नई और अनोखी चमक देखी थी.
दीपा उन्हें विजय से अपनी पहली मुलाकात से ले कर अब तक की सारी कहानी सुना चुकी थी.

विमल बहुत खुश थे. बोली, ‘‘तुझे विजय पसंद है न?’’

दीपा मुंह से कुछ नहीं बोली, बस सिर हिला दिया.
‘‘फिर ठीक है, बात पक्की.’’
दीपा चौंक उठी.
‘‘मैं अब विजय के घर वालों से बात कर चट मंगनी कर पट ब्याह रचा कर अपनी इस प्यारी सी गुडि़या को विदा कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊंगा.’’
‘‘क्या मैं आप को बो?ा लगने लगी हूं डैडी, जो इतनी जल्दी आप मुझे अपने से दूर करना चाहते हैं?’’
‘‘अरे पगली, अभी तूने ही तो कहा है न कि विजय तुझे बहुत पसंद है.’’
‘‘हां डैडी, लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि आप मुझे घर से ही निकाल दें. जाइए, मैं आप से नहीं बोलती.’’

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