‘‘इस में बुराई ही क्या है विदेशों में इस का बहुत चलन है. शादी अब ओल्ड फैशन और आउटडेटेड हो गई. किसी से प्यार हो गया तो साथसाथ रहने लगे. जब एक का दूसरे से मन भर जाए गया तो अलग हो गए. न किसी तरह खिचखिच न और किसी तरह का बखेड़ा.’’
‘‘और यदि बच्चे हुए तो?’’
‘‘तो बात अलग है. बच्चों की खातिर और उन्हें जायज करार देने के लिए विवाह बंधन में बंधा जा सकता है.’’
सुनयना सोच में पड़ गई. उस के माथे पर बल पड़ गए.
‘‘अगर तुम मानों तो हम दोनों कल से ही साथसाथ रह सकते हैं. मेरा खुद का फ्लैट है पाली हिल, बांद्रा में. हम वहां शिफ्ट हो सकते हैं,’’
‘‘नहीं,’’ सुनयना ने एक उसांस भरी, ‘‘मेरे मांबाप पुराने खयालात के हैं. वे इस बात के लिए कतई राजी नहीं होंगे.’’
‘‘तो एक और विकल्प है.’’
‘‘वह क्या?’’
‘‘क्यों न हम एक कौंट्रैक्ट मैरिज कर लें
1-2 साल के लिए. उस के बाद हमें ठीक लगे तो कौंट्रैक्ट को बढ़ा लेंगे. नहीं तो दोनों अलग हो जाएंगे. क्यों क्या खयाल है?’’
‘‘नहीं,’’ सुनयना ने आंसू बहाते हुए कहा, ‘‘मुझे यह ठीक नहीं लगता. मुझ में और एक कालगर्ल में फिर फर्क ही क्या रह जाएगा? आज इस के साथ तो कल किसी और के साथ, इस में बदनामी के सिवा और कुछ हासिल होने वाला नहीं है. इस सौदे में लड़की घाटे में ही रहेगी. वह एक असुरक्षा के भाव से घिरी रहेगी. लड़के का कुछ नहीं बिगड़ेगा.’’
‘‘डार्लिंग हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं. तुम इतनी पढ़ीलिखी हो कर भी गंवारों जैसी बातें करती हो. खैर, अब इस पब्लिक प्लेस में यों रो कर एक तमाशा तो न खड़ा करो. चलो घर चलते हैं.’’
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