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प्रेम बोला, ‘‘मैं तो ठीक हूं पर तू कितनी अच्छी तरह जी रहा है वह मैं देख रहा हूं. पतिपत्नी में नोकझोंक चलती रहती है. इस का यह मतलब थोड़े न है कि दोनों अपनेअपने रास्ते बदल लें. अब भी कहता हूं जा कर भाभी को ले आओ.’’

थोड़ी देर बैठने के बाद प्रेम यह कह कर वहां से चला गया कि उस की पत्नी उस का इंतजार कर रही होगी. रात को अमन को नींद नहीं आ रही थी. वह सोच रहा था कि क्या उस ने अपर्णा को मायके जाने को मजबूर किया या वह खुद अपनी मरजी से गई? और संजू, वह बेचारा क्यों पिस रहा है उन के बीच? उस का कभी मन होता कि जा कर अपर्णा को मना कर ले आए, फिर मन कहता नहीं बिलकुल नहीं, खुद गई है तो खुद ही वापस आएगी. उसे फिर अपर्णा की जलीकटी बातें याद आने लगीं…

‘‘जब तुम्हारे औफिस में मीटिंग थी और डिनर भी वहीं था तो मुझे बताया क्यों नहीं? कब से भूखीप्यासी तुम्हारे इंतजार में बैठी हूं… और अभी आ कर बोल रहे हो कि खा कर आया हूं. आखिर समझते क्या हो अपनेआप को? क्या तुम मालिक हो और मैं तुम्हारी नौकरानी?’’

अमन के औफिस से आते ही चिल्लाते हुए अपर्णा ने कहा.

‘‘ऐसी बात नहीं है अपर्णा, मुझे तो पता भी नहीं था कि आज औफिस में डिनर का भी प्रोग्राम है. जब मुझे पता चला तो मैं तुम्हें फो  करने ही जा रहा था, पर नमनजी मुझे खींच कर खाने के लिए ले गए और फिर मेरे दिमाग

से बात निकल गई,’’ अमन ने सफाई देते हुए कहा. मगर अपर्णा कहां सुनने वाली थी. कहने लगी, ‘‘नहीं अमन, बात वह नहीं है. बात यह है कि तुम कमा कर लाते हो न इसलिए अपनी मन की करते हो… जानबूझ कर मुझे सताते हो… जानते हो जाएगी कहां?’’

‘‘अरे, मैं कह रहा हूं न कि मुझे पता नहीं था कि वहां डिनर का भी प्रोग्राम है. कब से दिमाग खराब किए जा रही हो… जाओ जो समझना है समझो,’’ अमन ने खीजते हुए कहा.

‘‘इस में समझना और समझाना क्या है? देखना, एक दिन मैं तुम्हें और इस घर को छोड़ कर चली जाऊंगी. तब तुम्हें पता चलेगा… तुम यह न समझना कि मेरा कोई ठिकाना नहीं है… क्योंकि अभी भी मेरा मायका है जहां मैं जब चाहूं जा कर रह सकती हूं,’’ अपर्णा गुस्से से बोली.

आखिर सहन करने की भी एक सीमा होती है. अब अमन का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच चुका था. अत: बोला, ‘‘जाओ, मैं भी तो देखूं, मेरे अलावा कौन तुम्हारे नखरे उठाता है… मेरी भी जान छूटेगी… तंग आ गया हूं मैं तुम्हारे रोजरोज के झगड़ों से.’’

अपर्णा यह सुन कर अवाक रह गई, ‘‘क्या कहा तुम ने जान छूटेगी तुम्हारी

मुझ से? तो फिर ठीक है, मैं कल ही जा रही हूं अपनी मां के घर और तब तक नहीं आऊंगी जब तक तुम खुद लेने नहीं आओगे.’’

‘‘मैं लेने आऊंगा, भूल जाओ… खुद ही जा रही हो तो खुद ही आना… न आना हो तो मत आना,’’ अमन ने दोटूक शब्दों में कहा.

‘‘क्या तुम मुझे चैलेंज कर रहे हो?’’

‘‘यही समझ लो.’’

‘‘तो फिर ठीक है, अब मैं इस घर में तभी पांव रखूंगी जब तुम मुझे लेने आओगे,’’ कह वह दूसरी तरफ मुंह कर सो गई. पूरी रात दोनों दूसरी तरफ मुंह किए सोए रहे. सुबह भी दोनों ने एकदूसरे से बात नहीं की. अमन के औफिस जाते वक्त अपर्णा ने सिर्फ इतना कहा कि घर की दूसरी चाबी लेते जाना.

आज अपर्णा और संजू को गए 2 महीने हो चुके थे पर न तो अपर्णा की आने की कोई उम्मीद दिख रही थी और न ही अमन की उसे बुलाने की… पर तड़प दोनों रहे थे. और बेचारा संजू… उसे किस गलती की सजा मिल रही थी…

शाम को औफिस से आते ही अमन ने हमेशा की तरह अपने दोस्त को फोन लगाया, ‘‘हैलो विकास, क्या कर रहा है यार? अगर फुरसत हो तो आ जा… बाहर से ही कुछ खाना और्डर कर देंगे.’’

‘‘ठीक है, देखता हूं,’’ विकास बोला.

विकास ने भी आते ही यही बात दोहराई कि अपर्णा के न रहने से उस का घर घर नहीं लग रहा है.

थोड़ी देर बैठने के बाद वह भी जाने लगा तो अमन बोला, ‘‘अरे बैठ न यार… क्या जल्दी है… मैं ने पिज्जा और्डर किया है खा कर जाना.’’

तो विकास कहने लगा, ‘‘नहीं रुक पाऊंगा यार… तुम्हें तो पता है मेरी बेटी मेरे बगैर सोती नहीं है और पिज्जा तो मैं खाता ही नहीं हूं… चल गुडनाइट,’’ कह वह चला गया.

‘यही सब दोस्त, कभी घंटों मेरे घर में गुजार देते थे और आज एक पल भी रुकना इन्हें भारी पड़ने लगा है,’ किसी तरह पिज्जे का 1 टुकड़ा अपने मुंह में डाला, पर खाया नहीं गया. कितने प्यार से उस ने पिज्जा और्डर किया था पर अब खाने का मन नहीं कर रहा था. तभी उसे याद आ गया कि कैसे संजू पिज्जा खाने के लिए बेचैन हो उठता था.

बड़ी मुश्किल से देर रात गए अमन को नींद आई. सुबह वक्त का पता ही नहीं चला कि कब घड़ी ने 8 बजा दिए. जल्दी से तैयार हो कर बिना कुछ खाएपिए औफिस चल दिया. जातेजाते पलट कर एक बार पूरे घर को देखा और फिर कुछ सोचने लगा… शायद उसे भी अब यह एहसास होने लगा था कि अपर्णा के बिना यह घर कबाड़खाना बन चुका है. धिक्कार रहा था वह खुद को. शाम को जब वापस घर आया तो और दिनों के मुकाबले आज मन बिलकुल बुझाबुझा सा लग रहा था. न तो टीवी देखने का मन हो रहा था और नही कुछ और करने का. आज उसे अपर्णा और संजू की बहुत कमी खल रही थी. घर काटने को दौड़ रहा था. सोचा दोस्तों से ही बातें कर ले पर किसी का फोन नहीं लग रहा था, तो कोई फोन नहीं उठा रहा था. वह समझ गया, भले ही लोग बीवीबच्चों से परेशान हो जाते हों पर अगर वे न हों तो फिर जिंदगी बेमानी बन कर रह जाती है.

उधर अपर्णा भी कहां खुश थी. कहने को तो वह अपने मायके आई थी, पर यहां भी रोज किसी न किसी बात को ले कर उस की भाभी सुमन बखेड़ा खड़ा कर देती थी. बातबात पर यह कह कर उसे ताना मारती, ‘‘पता नहीं कैसे लोग लड़झगड़ कर मायके पहुंच जाते हैं… भूल जाते हैं कि यह उन का अपना घर नहीं है

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