वह बोलती जा रही थी और वंदना को दुखभरी कहानी कहीं कचोट रही थी कि क्या पता उसे भी ऐसा कुछ देखना पड़े... परिवार की अपेक्षाएं तो नहीं बदलतीं... नहीं, वह ऐसी स्थिति कभी आने ही नहीं देगी...
‘‘अब तो छोटीछोटी बातों को ले कर हमारे बीच झगड़े होने लगे. मेरी जिद थी या तो हम दोनों अलग हो जाएं या फिर परिवार को छोड़ कर अलग किराए का घर ले कर रहें. पर हुआ वह जो नहीं होना चाहिए था. मेरी स्वार्थी सोच ने हमें कानून की ड्योढ़ी पर पहुंचा दिया.’’
वंदना ने देखा, देवकी की आंखें नम हो गई थीं. वह चुप थी. गला भर आया था... जानती है भविष्य के लिए देखे सुंदर सपने जब कांच की तरह टूटते हैं तो कैसा लगता है...
‘‘क्या तुम देव से प्यार करती हो? उसे अपनाना चाहती हो? सोच लो नया
जीवन, चुनौतियों से भरा है.’’
‘‘जानती हूं. मैं उस से प्यार करती हूं... उसे अपनाना चाहती हूं,’’ वंदना के स्वर में स्वीकारोक्ति थी.
‘‘तो एक बात कहूंगी.’’
‘‘कहो,’’ वंदना ने देवकी की तरफ देखा.
‘‘मेरी मां कहती थीं ससुराल के सभी रिश्ते बाहर से बने रिश्ते होते हैं. इन्हें ओढ़ने के बाद इन्हें अपनाने के लिए न जाने कितने समझौते करने पड़ते हैं. यहां हर सदस्य को जोड़ने के लिए बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, इस बात को गांठ बांध लो,’’ देवीकी ने दृढ़ता से कहा, ‘‘तुम एक समझदार और साहसी स्त्री हो. देव के साथ जीवन शुरू करने का सूत्र तुम्हें दे दिया है. निर्णय तुम्हें ही लेना है. वैसे देव बहुत संजीदा व्यक्ति है...’’