केवल खुद के विचारों और नियमकायदे से घर चलाने की आदत ने सुशील को सब से अलगथलग कर दिया था. उन के घर में सबकुछ था मगर था नहीं तो एकदूसरे के लिए प्यार. फिर एक फरवरीका महीना था. यह समय प्यार करने वाले प्रेमियों के लिए बड़ा ही खास होता है. पूरा वर्ष सभी वैलेंटाइन डे का इंतजार करते हैं ताकि अपने प्यार का इजहार कर सकें. अतुल और अनाया के लिए भी यह दिन बहुत खास था. 4 माह पहले ही उन की शादी हुई थी. दोनों बहुत ही उत्साहित थे. आखिर उन का इंतजार पूरा हुआ और वह दिन आ ही गया.
अनाया को उपहार की आस थी. अतुल ने उस की यह आस पूरी करने के लिए एक बड़ी सी पार्टी रखी थी. अपने पड़ोस में रह रहे चिराग और स्वाति को भी उस ने अपनी पार्टी में आमंत्रित किया था.
चिराग के पिता सुशील को जब यह बात मालूम पड़ी तो वे अपने गुस्से पर नियंत्रण न कर पाए. वे अतुल के घर चले आए. अतुल के घर पर 80 वर्ष की उम्र पार कर चुके उस के दादाजी अजय और दादी के अलावा लगभग 50 वर्ष की आयु के अतुल के पापा विवेक और मम्मी संध्या, इतने लोगों का भरा पूरा संयुक्त परिवार था. 3 पीढि़यां साथ रहती थीं. सब के अलगअलग विचार, अलगअलग व्यवहार, फिर भी आपस में कोई खटपट नहीं.
परिवार में प्यार और सम?ादारी थी. सभी एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करते और एकदूसरे का खयाल रखते थे. कोई किसी की आजादी को बाधित नहीं करता. इसीलिए परिवार में सुखशांति का माहौल हमेशा बना रहता था. पासपड़ोस के लोगों के लिए उन का परिवार एक उदाहरण था. गुस्से से बेकाबू हो रहे सुशील ने डोर बेल बजाई.