जब इश्क का भूत सिर चढ़ कर बोलता है तब दुनिया में कुछ नजर ही नहीं आता. न मानप्रतिष्ठा की परवा न कैरियर की चिंता. शेफाली भी ऐसी ही सिरफिरी लड़की थी, उसे जब जीत नजर आया, तो वह उस पर जीजान से फिदा हो गई. बेशक जीत को भी उस का साथ अच्छा लगा, लेकिन जीत को पहले अपनी बहन सुमन के विवाह की चिंता थी. शेफाली रईस बाप की औलाद थी, जिस ने न गरीबी देखी थी और न ही भूख. वह अपने मन की करना जानती थी. वह गर्ल्स होस्टल में रहती व मौजमस्ती करती. उस के पिता की पेपरमिल थी. वे एक जानेमाने उद्योगपति थे, सो शेफाली के पास एक से बढ़ कर एक ड्रैसेस का अंबार लगा रहता. हमेशा सजीसंवरी, ज्वैलरी से लकदक, हाथ में पर्स लिए बाहर घूमने के अवसर तलाशती शेफाली की पढ़ने में कोई रुचि नहीं थी. कालेज में ऐडमिशन तो उस ने समय बिताने के लिए ले रखा था. उसे तलाश थी ऐसे युवक की जो दिखने में हैंडसम हो और उस के आगेपीछे घूमे.
जीत से उस की नजरें कालेज के फंक्शन में मिलीं और उसे उस में सारी बातें नजर आईं जिन की उसे तलाश थी. वह हौलेहौले बोलता और किसी फिल्मी नायक सा उस के ईदगिर्द डोलता. अंधा क्या चाहे, दो आंखें. शेफाली खर्च करने के लिए तैयार रहती, दोनों खूब घूमते. महानगरों में वैसे भी कौन किसे जानता है या कौन किस की परवा करता है. पौश इलाके के होस्टल में रह रही शेफाली के पास जीत बाइक ले कर आता. वह अदा से इतरातीलहराती उस के संग चली जाती.