‘क्यासोच रही हो मम्मी?’’
नौशीन ने एक ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘सोचने को तो अब बहुत कुछ है, बेटा. तुम ने तो बहुत गलत जगह दिल लगा लिया,’’ कहतेकहते वे अपने बेटे दानिश को देख कर परेशानी में भी मुसकरा दी जो उन का स्वभाव था.
दानिश गंभीर रहा, आजकल परेशान तो मांबेटा दोनों ही थे. दानिश को अपनी सहकर्मी यशिका से मुहब्बत हो गई थी और अब वह उस से शादी करना चाहता था. मुलुंड, मुंबई में नौशीन और दानिश, ये 2 ही थे घर में.
नौशीन के पति अब इस दुनिया में नहीं थे. नौशीन ने अपने बेटे की बहुत अच्छी परवरिश अकेले ही की थी. वे खुद भी एक अच्छी कंपनी में कार्यरत थीं. मांबेटा अब दोस्तों की तरह थे. दानिश ने जब पहली बार यशिका से उन्हें मिलवाया, वे उस से मिल कर खुश ही हुईं थीं. वैसे भी आजकल मांएं बच्चों की पसंद में अपनी सहमति खुशीखुशी दे देती हैं और नौशीन तो महानगर में ही पलीबढ़ी, खुली सोच वाली महिला थीं. उन का मायका, ससुराल सब मुंबई में ही थे पर नौशीन उन सब की पुरातनपंथी सोच से अलग थलग रहने में ही सुकून पातीं.
आज शनिवार था. नौशीन और दानिश की औफिस की छुट्टी थी. शाम के 5 बजे थे. डोरबैल हुई तो नौशीन ने दानिश से कहा, ‘‘जाओ, दरवाजा तुम ही खोलो. तुम्हारे लिए ही कोई आया होगा.’’
यह मांबेटे का खेल था कि दोनों कोशिश करते कि दरवाजा उसे न खोलना पड़े. सब्जी, दूध वाला आता तो दानिश हंसता, ‘‘जाओ, आप के लिए ही कोई आया है.’’
यह यशिका के आने का ही टाइम था. दोनों जानते थे. वह अकसर शनिवार की शाम
आती. कभी तीनों डिनर पर निकल जाते, कभी मूवी देखने चले जाते, कभी घर पर ही तीनों अच्छा हंसीमजाक कर टाइम पास करते. देखने में एकदम परफैक्ट फैमिली पिक्चर लगती पर अभी कहां. अभी तो इस मुहब्बत के सामने जाति की दीवार ऐसे खड़ी थी जिसे हटाने के लिए रोज नए मंसूबे बनते, धराशायी होते.
यशिका ही थी. आते ही उस ने हाथ सैनिटाइज किए, अपना बैग एक तरफ पटका, नौशीन के गले मिली और दानिश को ‘हाय’ कहते हुए नौशीन के पास बैठ गई. पहले आम हालचाल हुए फिर यशिका ने जोश से पूछा, ‘‘आंटी, आज तो बड़ी मुश्किल से घर से निकली. पापा पता नहीं क्यों आज फ्री थे. आज उन की कोई राजनीति वाली बैठक नहीं थी. घर में ही मु?ो पकड़ कर पूछने लगे कि शादी के बारे में क्या सोचा है. मैं ने कहा कि जब सोचूंगी, आप को ही बताउंगी तो बोले कि मु?ो बस इतना ही कहना है कि लड़का अपनी जाति का हो, बस यह ध्यान रखना. मैं ने सोचा, आज मौका मिला है तो मैं भी उन्हें कुछ हिंट दे देती हूं, मैं ने कहा कि पापा, किसी को पसंद करना अपने हाथ में थोड़े ही होता है. देखो, कौन पसंद आता है. कास्ट का क्या है, इंसान अच्छा होना चाहिए, बस, आंटी, पापा को जैसे करंट लगा. बोले कि ये सब फिल्मी बातें मत करो मु?ा से. जातबिरादरी से बाहर किसी को पसंद करने की सोचना भी मत.
‘‘तुम्हारा भी नुकसान होगा, उस लड़के का भी. इस धमकी पर मु?ो गुस्सा तो बहुत आया, पर चुप रह गई और मेरी मम्मी. क्या कहूं उन्हें. पापा की हर गलत बात को चुपचाप सहती हैं, कभी उन्हें किसी भी गलत बात का विरोध करते नहीं देखा और घरों में मांएं कम से कम अपने बच्चों के लिए तो खड़ी हो जाती हैं और मेरे घर में तो मेरी मम्मी ने मु?ो ही इस बात पर आंख दिखाई. आंटी, आप ही कुछ करो.’’
नौशीन हंस पड़ीं, ‘‘वाह, इश्क तुम लोग फरमाओ, समाधान मैं ढूंढूं. तुम्हारे नेता कट्टर पापा से मैं निबटूं?’’
दानिश ने कहा, ‘‘मां हो मेरी. कुछ तो आप को करना ही पड़ेगा. हमें नहीं पता, पर आप ही देखो, मम्मी, कैसे क्या करना है.’’
दोनों बच्चों को स्पेस देते हुए नौशीन ‘अभी आती हूं’ कह कर अपने रूम में चली गईं. दानिश की पसंद यशिका उन्हें भी पसंद थी. वे चाहती थीं कि जल्दी से उन की शादी हो जाए. पर यशिका के पापा कट्टर हिंदू थे, जो किसी भी तरह एक मुसलिम लड़के से अपनी बेटी का विवाह हरगिज न होने देते. लोकल न्यूजपेपर में उन की गतिविधियां नौशीन अच्छी तरह पढ़ चुकी थीं पर कुछ तो करना पड़ेगा. उन्होंने बैठेबैठे बहुत सोचा कि वे कैसे उन्हें इस विवाह के लिए मना सकती हैं, वे बहुत सुंदर, स्मार्ट और होशियार थीं. इस समस्या को सुल?ाने का समाधान उन्हें जब सू?ा तो मन ही मन खुद को शाबाशी दे बैठीं. खयाल ही ऐसा आया था कि उन्हें अपने आइडिया पर रोमांच भी हुआ और हंसी भी आई.
नौशीन लिविंग रूम में आईं, बच्चों को अपने आइडिया के बारे में अभी नहीं बताना चाहती थीं. धीरेधीरे आराम से हर कदम सोच कर आगे बढ़ाना चाहती थीं. दोनों टीवी पर कोई शो देख रहे थे, नौशीन ने पूछा,