Love Stories : पुणे शहर के पौश इलाके में बनी रेशम नाम की आलीशान कोठी आज दुलहन की तरह सजी थी. मौका था कोठी के इकलौते वारिस विहान की सगाई का. उस की मंगेतर लता भी सम्मानित घराने से थी. विहान की मां वैदेही जिन्हें विहान मांजी कहता था, बेहद गरिमामय, उच्च विचारों वाली और शांत स्वभाव की महिला थीं. वे लता को बेहद पसंद करती थीं और उन की पसंद ही विहान की पसंद भी बनी इस बात की उन्हें बेहद खुशी थी.
रौयल ब्लू डिजाइनर सूट में विहान और रानी पिंक लहंगे में सजी लता को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे दोनों एकदूजे के लिए ही बने हैं. आयोजन में शामिल सभी मेहमानों ने इस खूबसूरत जोड़े की भूरीभूरी प्रशंसा की. वर्तमान समय में भी लता की नज़रें विहान को देखते हुए शरमा रही थीं और चेहरा सुर्ख हो रहा था.
‘‘भाभी,क्या बात है आप तो ऐसे शामा रही हैं जैसे विहान भैया को पहली बार देख रही हैं पर आप दोनों का प्रेम तो जन्मोंजन्मों से है,’’ वर्षा ने लता को शरारत भरे स्वर में छेड़ते हुए कहा.
‘‘क्या करूं वर्षा, पता नहीं क्या हो रहा
है आज, देख न दिल किस कदर जोरजोर से धड़क रहा है,’’ लता वर्षा की ओर देखते हुए धीमे से बोली.
वर्षा ने उसे गले से लगा लिया. वर्षा जानती थी लता पिछले कितने ही सालों से विहान को चाहती थी और आज उस के जीवन की सब से बड़ी इच्छा पूरी होने जा रही थी.
सगाई धूमधाम से संपन्न हो गई. आधी रात को जब लता बैड पर लेटी तो अपनी सगाई की अंगूठी देखतेदेखते विहान के खयालों में गुम हो गई…
आज से 10 साल पहले वैदेहीजी विहान और वर्षा के साथ लता की साथ वाली कोठी में रहने आईं थीं. लता के मम्मीपापा विवेक और अरुणा से उन के मधुर संबंध बन गए थे. वैदेहीजी अपने पति की असमय मृत्यु के पश्चात उन की फैक्टरी को बेहतर तरीके से संभाल रही थीं. इस की वजह से वे विहान और वर्षा पर थोड़ा कम ध्यान दे पाती थीं पर दोनों बच्चे छोटी आयु में ही समझदारी का परिचय दे रहे थे.
वे हालात को समझते थे और जितना भी वक्त उन्हें वैदेही के साथ मिलता उस में ही बेहद खुश रहते.
वर्षा और लता समान आयुवर्ग की थीं सो दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी. विहान उन दोनों से 2 साल बड़ा था और इस बात का फायदा भी वह बखूबी उठाता था. वर्षा और लता से अधिकतर आदेशात्मक स्वर में ही बात करता था.
लता पर तो खूब अधिकार जमाता था. घर में सहायक होते हुए भी उस का खयाल लता ही करे, ऐसी इच्छा रखता था और लता भी हंसतेमुसकराते उस के सारे काम करती जाती थी. न जाने ये सब कर के उस के दिल को एक अलग ही सुकून प्राप्त होता था.
यह वह तब सम?ा जब विहान था कालेज के लास्ट ईयर में और लता फर्स्ट ईयर में. रैंगिंग करते हुए कुछ लड़के लड़कियों का ग्रुप उस के नजदीक आया तो लता घबरा सी गई. तभी किसी की आवाज उस के कानों में पड़ी कि अरे, यह तो विहान भाई की दोस्त है, चलोचलो, यहां से. कह रखा था उन्होंने कि इसे कोई परेशान न करे.
‘‘तो इस के चेहरे पर क्या इस का नाम लिखा है जो तूने इसे पहचान लिया?’’ दूसरी आवाज आई.
‘‘अपने मोबाइल में इस का फोटो दिखाया था उन्होंने, अब छोड़ो इसे और सामने देखो, विहान भाई इधर ही आ रहे हैं.’’ सभी वहां से चले गए.
‘‘किसी ने कुछ कहा तो नहीं,’’ विहान ने उस के करीब पहुंच कर उस से पूछा.
लता ने उसे देखते हुए न में सिर हिला दिया.
‘‘गुड चलो, मैं चलता हूं, तुम्हारी क्लास यहां से सीधा फिर राइट हैंड पर पहली वाली है. चलो, औल द बैस्ट,’’ विहान सीधा वहां से निकल गया और लता उसे जाते हुए देखती रही.
कालेज की छुट्टी के वक्त लता ने गाड़ी वापस भेज दी और पैदल ही अपने घर चल पड़ी.
तभी अचानक बारिश शुरू हो गई. मिट्टीकी सोंधी खुशबू उसे जैसे किसी और ही दुनिया में ले गई. अचानक सब कितना खिलाखिला लगने लगा था. हर तरफ बारिश की फैली बूंदों में उसे एक ही चेहरा नजर आने लगा था और वह था विहान का.
‘‘कमाल है,अब जब एक ही कालेज में जाना है तो एक साथ ही जाओ न,’’ वर्षा ने विहान से कहा.
‘‘स्ट्रीम अलग, क्लासेज का टाइम अलग, साथ कैसे जा सकते हैं? जानती तो है कि मैं बाइक पर जाना ज्यादा पसंद करता हूं तो उसे कैसे ले जाऊंगा, बेकार ही सब लोग गलत सोचेंगे और मैं नहीं चाहता कि कोई उस और मेरे बारे में कोई उलटासीधा अनुमान लगाएं.’’
‘‘फिर भैया उसे रैगिंग से क्यों बचाया?’’ वर्षा भी सवाल दागे जा रही थी.
‘‘इतना तो कर ही सकता हूं उस के लिए,’’ कह कर विहान वहां से चला गया.
‘जानती हूं भैया कि आप क्याक्या कर सकते हैं लता के लिए, सिर्फ लता के लिए या लता भाभी के लिए,’ यह सोच कर वर्षा मन ही मन खुशी से झूम गई.
इधर लता अब विहान के सामने पड़ती तो नजरें चुराने लगती. उस का कमरा संभाल रही होती तो विहान के अंदर आते ही वह कमरे के बाहर जाने को मचलने लगती.
ऐसे ही एक दिन जब लता उस की अलमारी में कपड़े रख रही थी तो पीछे से विहान ने उस के बालों को पकड़ कर खींच दिया.
‘‘उई… मम्मी,’’ लता चिल्ला दी.
‘‘क्या मम्मी, आंटी कहां से आ गईं यहां…’’ विहान चिढ़ता हुआ सा बोला.
‘‘पहले बाल तो छोड़ो, दर्द हो रहा है,’’ लता अपने बाल उस की गिरफ्त से आजाद करने की कोशिश करते हुए बोली.
‘‘पहले यह बताओ कि आजकल मुझ से दूर क्यों भागती रहती हो? क्या लुकाछिपी खेल रही हो?’’ विहान ने उस के बालों को छोड़ते हुए कहा.
‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं, कालेज के बाद तो अकसर मांजी और वर्षा के पास आ जाती हूं,’’ लता ने अलमारी बंद कर दी थी.
‘‘मांजी तो देर शाम ही मिलती होंगी पर वर्षा के साथ पहले तो बड़ा मुझसे लड़ाझगड़ा करती थी, बड़ी डिमांड होती थी तुम्हारी पिजाबर्गर पार्टी की और अब तो जैसे उपवास पर हो, बात क्या है आखिर?’’ कह कर विहान उस के चेहरे के आगे आ कर उस की आंखों में झांकने लगा.
लता का जिस्म जैसे हरारत से भर गया हो. विहान का इतने करीब आना उस के होशोहवास गुम कर रहा था. माथे पर पसीने की बूंदें उभरने लगी थीं. लता के मुंह से बोल नहीं निकल पा रहे थे. वह उलटे पांव वहां से भागी और नीचे जाने को सीढि़यां उतरने लगी.
‘‘मत बोलो कुछ, जा रहा हूं अब देश छोड़ कर, विदेश से अब तुम्हें और परेशान करने नहीं आऊंगा. लंदन जा रहा हूं अगले हफ्ते,’’ विहान तेज स्वर में बोला.
सीढि़यां उतरती लता के पांव जैसे वहीं जम गए हों. वह वापस भागती हुई विहान के पास आई और उस के हाथ से मोबाइल ले कर पलंग पर फेंकती हुई बोली, ‘‘क्या कहा तुम ने, तुम लंदन जा रहे हो, कब, क्यों?’’ लता बदहवास सी हो उठी.
‘‘ओ इंस्पैक्टर साहिबा, आराम से. पहले हम विश्वाम फरमाएंगे फिर पूरी बात बताएंगे,’’ विहान मस्ती के मूड में था.
‘‘उफ विहान, जल्दी बोलो न, क्यों सता रहे हो?’’ लता बहुत उतावली हो रही थी.
‘‘अरे बाबा, बिजनैस मैनेजमैंट और क्या, मांजी चाहती हैं और तुम भी तो समझती हो न कि इतने सालों से मांजी अकेले सारा कारोबार संभाले हुए हैं और अब उन की जिम्मेदारी उठाने के लिए मुझे और अधिक मजबूत बनना होगा, इतना सक्षम बनाना होगा खुद को कि मेरे कांधे समस्त जिम्मेदारियों को बोझ नहीं बल्कि पापा और मांजी के सपनों को पूरा करने वाले और उन्हें हर कदम पर गौरवान्वित महसूस कराने वाले आशीर्वाद समझें,’’ विहान की आंखों में भविष्य को ले कर एक अलग ही चमक उभरी थी.
लता की रुलाई फूट पड़ी.
‘‘अरे, इस में रोने की क्या बात है, हमेशा के लिए जा रहा हूं क्या?’’ विहान प्यार भरे स्वर में उस से बोला.
‘‘यह मोबाइल भी बहुत बढि़या चीज है लता, मुट्ठी में समाने वाले इस उपकरण ने पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर रखा है, जाहिर है जब चाहें बात कर सकते हैं, एकदूसरे को देख सकते हैं, तो रोना बंद और मेरी पैकिंग शुरू कर देना मैडम वरना अगर अपनी पैकिंग मैं ने खुद की तो सूटकेस में सब्जीतरकारी ही जाएंगी,’’ विहान हंसता हुआ बोला.
उस की बात सुन कर लता भी रोते से हंस दी. जानती थी कि विहान कभीकभी किचन में अपने हाथ का जादू दिखाता था जिस के लिए लता और वर्षा न जाने उस की कितनी ही मिन्नतें करते थे और फिर विहान की बनाई डिशेज की दोनों जीभर कर तारीफ करती थीं. उन पलों को याद करते ही लता की आंखें एक बार फिर भर आईं.
‘‘लता, जानता हूं कि मांजी बेहद मजबूत हैं पर फिर भी सब से पहले एक मां हैं, मुझे जाता देख भीतर से जरूर कमजोर पड़ेंगी पर दर्शाएंगी नहीं, वादा करो कि उन का पूरा ध्यान रखोगी,’’ विहान ने गंभीर होते हुए लता से कहा.
‘‘बेफिक्र हो कर जाओ विहान, विश्वास रखो, मांजी का पूरा ध्यान रखूंगी,’’ लता ने अपने आंसू पोंछ लिए.
विहान ने मुसकराते हुए उस के सिर पर धीरे से हाथ फेर दिया.
वैदेहीजी और वर्षा के साथ लता भी एअरपोर्ट गई थी विहान को रवाना करने. विहान और लता की तब ज्यादा बातें तो न हो सकी थीं पर जिस क्षण भी दोनों की नजरें मिलतीं लता की आंखें भर जाती थीं.
वर्षा लता की हालत अच्छी तरह समझ रही थी. उस की सब से प्यारी सहेली ही उस की भाभी बने इस बात की उसे काफी खुशी हो रही थी. वह चाहती थी कि विहान और लता कुछ मिनटों के लिए ही सही पर अकेले में कुछ बातें कर सकें पर न जाते वक्त कार में और न ही एअरपोर्ट पर ऐसा कोई मौका मिल पाया.
एक दिन वर्षा ने लता से पूछा कि क्या वह अगले दिन फ्री है उस के साथ शौपिंग जाने के लिए?
‘‘शौपिंग किसलिए, अभी कौन सा फंक्शन आ रहा है?’’
‘‘औरों के लिए न सही तेरे लिए तो बहुत बड़ा मौका है सजने का, तैयार होने का, खुबसूरत लगने का,’’ वर्षा चंचल हो उठी थी.
‘‘क्या पहेलियां बुझाए जा रही है?’’ लता खिड़की से बाहर देखते हुए बोली.
‘‘कल विहान भैया आ रहे हैं, पूरे 2 हफ्तों के लिए.’’
‘‘क्या, विहान कल आ रहे हैं, मुझे क्यों नहीं बताया उन्होंने? अभी कल रात ही हमारी बात…’’ कहते हुए लता अचानक चुप हो गई.
‘‘चल हट, जा रही हूं मैं अब,’’ लता का चेहरा गुलाबी हो उठा था.
‘‘हां भई, अब मेरे साथ क्यों दिल लगेगा, वह तो बल्लियों उछल कर लंदन जा पहुंचा था, अब कल वापस आ जाएगा कुछ दिनों के लिए, 4 दिन की चांदनी होने वाली है हमारी बन्नो की रातें.’’
लता उस की बात सुनते न सुनते अपनी रौ में भागती चली गई.
उसे ऐसे भागते देख वर्षा जोर से हंस पड़ी.
विहान सवेरे 5 बजे घर पहुंचा. वैदेहीजी और वर्षा को एअरपोर्ट आने के लिए पहले ही मना कर दिया था. घर पहुंचा तो दोनों ही खुशी से फूली नहीं समा रही थीं.
‘‘अरे, मांजी यह क्या हर दूसरे दिन तो वीडियो चैट करते हैं हम, फिर ये आंखें क्यों छलछला आईं हैं,’’ विहान ने वैदेहीजी के गले लगते हुए कहा.
‘‘क्या भैया, स्क्रीन पर क्या छू सकते हैं, मिल सकते हैं, ऐसे गले लग सकते हैं क्या?’’ वर्षा चहकती हुई बोली.
‘‘वे मांजी हैं और तू दादी मां है,’’ विहान ने उस के सिर पर हलकी सी चपत लगाते हुए कहा.
फिर तीनों ही एकसाथ अंदर चले आए.
लंच टाइम हो चला था जब वैदेहीजी ने विहान को उठाया.
कुनमुनाता सा उठा वह तो सामने वैदेहीजी को देख कर हैरान हो उठा, ‘‘मांजी, आप फैक्टरी नहीं गईं?’’
‘‘फैक्टरी कहां भागी जा रही है, सालभर बाद तुझे देख रही हूं, चाहती तो उड़ कर तेरे पास आ जाती पर बस तुझे देख कर न तुझे कमजोर चाहती थी और न खुद कमजोर पड़ना चाहती थी. अब कुछ वक्त तो बिताऊं तेरे साथ,’’ वैदेहीजी ने उस के बालों में हाथ फेरते हुए कहा.
‘‘सच मांजी, मां का प्यार ही सब से
बड़ा स्वर्ग है,’’ विहान उन की गोद में सिर रखते हुए बोला.
लंच टाइम भी बीत गया और शाम की चाय भी समाप्त हो गई.
वैदेहीजी कोई फाइल देखने के लिए अपने कमरे में पहुंचीं तो विहान ने वर्षा से पूछा, ‘‘अभी तक लता नहीं आई, शहर में नहीं है क्या?’’
‘‘हां भैया, वे सब लोग यह शहर छोड़ कर जा चुके हैं.’’
‘‘क्या बकबक कर रही है, अभी 2 दिन तक ऐसी कोई बात नहीं थी, रातोंरात शहर छोड़ दिया?’’ विहान उसे अजीब सी नजरों से घूरता हुआ बोला.
‘‘अरे तो जब पूरी खबर है उस के बारे में तो क्यों पूछ रहे हैं आप फिर, आप को क्या मतलब अब लता से, उसे बताया तक तो नहीं आप ने कि आप आने वाले हैं,’’ वर्षा बनावटी गुस्से से बोली.
‘‘अरे, सरप्राइज शब्द सुना है, है तेरी डिक्शनरी में?’’
‘‘हां है, और शौक शब्द भी है, सरप्राइज की जगह शौक दे देंगे आप तो उसे.’’
‘‘पहले तो तेरी खबर लेता हूं,’’ कह कर विहान ने पास पड़ा कुशन उठा कर वर्षा की ओर फेंका तो उसी पल वह कुशन लता के चेहरे से जा टकराया.
‘‘लो भैया, सच में शौक ही लग गया लता को तो,’’ वर्षा जोर से हंसती हुई वहां से चली गई.
‘‘सौरी लता, लगी तो नहीं?’’ विहान ने उस के नजदीक आते हुए पूछा.
कुशन हटा कर लता ने जब विहान को देखा तो कुछ पल को पलकें ?ापकाना भूल गई.
साक्षात अपने सामने उसे देख कर जैसे उस की जबान तालू से चिपक गई हो.
विहान ने उस की आंखों के आगे चुटकी बजाई तो जैसे लता होश में आई. पूछा, ‘‘कैसे हो विहान?’’
‘‘देख लो खुद ही, जैसा गया था बिलकल वैसा ही हूं. अच्छा लता, 2 हफ्तों के लिए आया हूं, कभी अपनों से दूर रहा नहीं तो रुका न गया पर अब शायद एक बार कोर्स पूरा कर के ही वापस आऊंगा, तो इन 2 हफ्तों को यादगार बना देना चाहता हूं ताकि ढेर सारी यादों के साथ वहां अपना वक्त गुजार सकूं. कल अब हम तीनों मौल चल रहे हैं और तुम बिना ननुकुर के आ रही हो, समझ, फिर एक दिन पिकनिक भी प्लान करते हैं, ठीक है?’’
‘‘जैसा तुम कहो,’’ लता तो उस की हर खुशी में खुश हो जाती थी.
‘‘मौल, अरे लंदन में पढ़ने वाला अब यहां क्या घूमेगा?’’ डिनर टाइम पर विवेक बोले.
‘‘अपना देश अपना ही होता है, मौल घूमने का तो सिर्फ बहाना है, असली बात तो साथ वक्त गुजारने की है,’’ अरुणा विवेक को सही बात सम?ाते हुए बोली और आंखों ही आंखों में उन्होंने विवेक को लता की ओर देखने को कहा जिस का खाने की ओर बिलकुल ध्यान नहीं था.
‘‘लता, खाना खाओ बेटे, कहां खोई हुई हो?’’
‘‘कहीं भी तो नहीं पापा,’’ कह कर लता रोटी का कौर तोड़ने लगी.
विवेक और अरुणा भी आपस में एकदूजे को देख कर मुसकरा दिए.
2 हफ्ते जैसे पलक झपकते गुजर गए. लता एक बार फिर विहान का बैग पैक करने में लगी हुई थी. यह सोच सोच कर कि अब की बार विहान जल्दी नहीं आएगा उस की आंखें बारबार छलक रही थीं.
परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि वैदेहीजी को एक महत्त्वपूर्ण मीटिंग के लिए जाना पड़ गया तो उन्होंने वर्षा और लता को कहा कि विहान को वे दोनों ही एअरपोर्ट सी औफ कर आएं.
‘‘मम्मी, मेरा तो आज प्रैक्टिकल है, मैं तो आज चाह कर भी छुट्टी नहीं कर सकती.’’
‘‘तो क्या सिर्फ लता जाएगी?’’
‘‘मांजी, आप क्यों चिंता कर रही हैं, ऐसा क्या हो गया कि मैं अकेला नहीं जा सकता.’’
‘‘घर का कोई साथ जाए तो कुछ प्रौब्लम है तुम्हें, लता तुम ही चली जाना.’’
वैदेहीजी का विहान के प्रति ऐसा क्रोध मिश्रित प्रेम देखसुन कर वर्षा की हंसी छूट गई और उस ने लता की ओर देखते हुए चुपके से एक आंख दबा दी.
एअरपोर्ट पर जब विहान और लता कार से उतरे तो विहान ने लता की ओर देख कर गुनगुनाते हुए कहा, ‘‘तो चलूं, तो चलूं, तो चलूं,’’ और फिर खुद ही हंस पड़ा.
‘‘विहान,’’ लता ने उसे एकटक देखते हुए उस का नाम लिया.
‘‘जल्दी बोलो मैडम, फ्लाइट न छूट जाए कहीं.’’
‘‘ विहान, मैं तुम्हें, मैं तुम से…’’ लता खुल कर कुछ नहीं कह पा रही थी.
‘‘क्या कहना चाह रही हो लता, क्या बात है?’’ विहान कुछ भी सम?ा नहीं पा रहा था.
कुछ पलों की खामोशी के बाद आखिरकार लता के होंठों से 3 शब्द निकले, ‘‘आई लव यू विहान.’’
विहान हैरानी से उसे देखता रह गया.
‘‘लता,’’ विहान के मुख से निकला.
‘‘विहान, मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं, तुम्हारे बिना नहीं रह सकती,’’ लता ने अपने दिल की बात विहान के सामने खुल कर कह दी.
पहले तो विहान हैरान हुआ और अब उस ने एक नजर भर लता को देखा फिर बिना कुछ कहे ऐंट्री गेट की ओर बढ़ गया.
लता की आंखों से आंसू बहते रहे और कुछ पलों बाद वह भी लौट चली.
अब लता और विहान की बातें न के बराबर हो गईं थीं. लता लाख चाह कर भी विहान से दोबारा उस बारे में बात न कर सकी. वर्षा भी कुछ पूछती तो मुसकरा कर टाल जाती.
वक्त गुजरता गया और विहान भी लौट आया.
वैदेहीजी अब जीवन के इस मोड़ पर आराम चाहती थीं और विहान ने भी अब उन्हें फैक्टरी की हर जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था. सारा कारोबार अब वही संभालता था.
लता से औपचारिक बातें होती थीं पर विहान और लता ने किसी के भी समक्ष कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया.
इसी बीच वर्षा का भी विवाह हो गया.
‘‘अब तो वर्षा भी अपने घर की हो गई, अब वैदेहीजी से लता और विहान की बात करें क्या?’’ विवेक अरुणा से बोले.
‘‘ठीक है, मैं कल ही उन से बात छेड़ती हूं.’’
लता ने उन की बातें सुन ली थीं. वह कुछ कहना चाहती थी पर उस का दिलोदिमाग उस का साथ नहीं दे रहा था पर अगले दिन उस के लिए जैसे कुछ चमत्कार हुआ.
अरुणा ने उसे बताया कि वैदेहीजी तो शुरू से ही उसे विहान के लिए पसंद करती थीं और कुछ दिन पहले उन्होंने विहान ने उस की शादी की बात भी की और लता का जिक्र भी किया.
विहान ने खुशी से उन का मान रखा और इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया.
लता को तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. उस का दिल चाह रहा था कि अभी उड़ कर विहान के पास पहुंच जाए और पूछे कि अगर वह भी उसे चाहता था तो उसे इतना क्यों सताया उसने पर अगले ही पल उस ने यह खयाल हवा में उड़ा दिया और आने वाले वक्त का बेसब्री से इंतजार करने लगी.
और आखिरकार लता की जिंदगी में वह खास दिन आ ही पहुंचा जिस का उसे हर पल से इंतजार था.
तभी सुबह की पहली किरण उस के कमरे में आई तो लता भी जैसे अपनी यादों के सफर से वापस वर्तमान की मंजिल पर लौट आई.
शादी की तैयारियां जोरोंशोरों से होने लगीं. वर्षा लगभग 10 दिन पहले आ गई थी. दोनों सहेलियां ऐसे मिलीं तो लगा जैसे पुराना वक्त जी रही हों. वर्षा लता के साथ शौपिंग करती तो विहान उसे छेड़ते हुए कहता कि ओ दल बदलू, भूल गई, तू लड़के वालों की तरफ से है.’’
‘‘मैं तो दोनों तरफ से हूं, आप भूलिए मत
कि आप की बीवी बनने से पहले लता भाभी
मेरी सहेली है और भाभी बनने के बाद भी वह पहले मेरी सहेली ही रहेगी,’’ वर्षा प्यार भरे स्वर
में बोला.
‘‘समझ गया वकील साहब.’’
‘‘अब हमारे पति वकील हैं तो कुछ असर तो हम पर भी पड़ेगा न,’’ वर्षा इतराते हुए बोली.
विवाह का दिन भी आ पहुंचा. यों तो लता बेहद खूबसूरत थी पर दुलहन के लिबास में जितनी सुंदर वह उस दिन लग रही थी उतनी उस से पहले कभी नहीं लगी. जो उसे देखता, देखता ही रह जाता.
वैदेहीजी भी उस दिन बहुत खुश थीं. वर्षा तो जीभर नाची भाई की शादी में.
जयमाला पूरी हुई तो विहान और लता के जोड़े पर से नजरें नहीं हटती थीं.
फेरे हो रहे थे तो ऐसा लगा जैसे आज आसमां भी उन पर अपना प्यार निछावर करने को पुष्पवर्षा कर रहा हो. मंत्रो की ध्वनि पूरे वातावरण को अपने मोहपाश में बांध लेने को आतुर थी.
लता का गृहप्रवेश हो गया था. विहान के घर में भी और उस की जिंदगी में भी.
सुहागरात का कमरा गुलाब के फूलों की खुशबू से सराबोर हो रहा था. बैड पर बैठी लता गठरी सी बनी खुद में ही सिमटी जा रही थी.
मौडर्न युग में भी नववधू होने का एहसास कितना प्यारा और शारमोहया से भरपूर होता है इस का अंदाजा लता को देख कर सहज ही लगाया जा सकता था.
विहान अंदर आया तो एकबारगी फिर से लता की खूबसूरती में खो सा गया. गुलाब की फूलों की लडि़यों के बीच बैठी लता खुद एक गुलाब प्रतीत हो रही थी.
लगभग 1 दशक साथ बिताने के बाद भी आज वे दोनों एकदूजे के साथ ऐसे पेश आ रहे थे जैसे 2 अजनबी एक कमरे में बंद हो गए हों.
विहान ने ही लता के पास बैठ कर कमरे की चुप्पी को तोड़ा, ‘‘लता, कभी सोचा न था तुम्हें अपने सामने इस रूप में भी देखूंगा, कब मेरी सब से प्यारी फ्रैंड मेरी लाइफ पार्टनर बन गई, पता ही नहीं चला,’’
लता धीमे से मुसकरा दी.
तभी विहान ने एक गिफ्ट बौक्स में से खूबसूरत कंगन निकाल कर लता की कलाई अपने हाथ में थाम कर कहा, ‘‘सोचा, तुम्हें अपनी पसंद का कुछ तो दूं,’’ पर जैसे ही उस ने कलाई देखी तो आश्चर्य से भर उठा.
लता ने कलाई पर उस के नाम का खूबसूरत टैटू बनवा रखा था.
‘‘यह कब करवाया तुम ने?’’ विहान ने हैरानी से पूछा.
‘‘उसी दिन जिस दिन तुम्हें अकेली एअरपोर्ट छोड़ने गई थी. तुम तो प्यार के इजहार में खामोश हो कर चले गए थे, सोचा अगर तुम मना भी करोगे तो तुम्हारे नाम की निशानी तो हमेशा मेरे साथ रहेगी,’’ लता का स्वर भीग रहा था.
अपने प्रति लता का इतना प्रेम देख कर विहान का दिल भर आया था पर तभी उस ने
लता को छेड़ने वाले अंदाज में कहा कि अच्छा तो कोई और तुम्हें ले जाता तब क्या करतीं तुम इस टैटू का, क्या बताती उसे कि कौन है ये?’’
‘‘ऐसा कभी नहीं होता, तुम्हारे अलावा तो मैं किसी और की होने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी, मर जाती पर…’’
तभी विहान ने उस के होंठों पर उंगली रख कर उसे शांत करा दिया.
‘‘आज नई जिंदगी की शुरुआत है, आज ऐसी कोई बुरी बात नहीं, न आज न कल और न ही कभी भी,’’ कह कर विहान ने उसे अपने सीने से लगा लिया.
तब खिड़की से दिखता चांद भी बादलों की ओट में छिप गया.
देखते ही देखते 4 साल बीत गए. वर्षा भी मां बन चुकी थी. प्यारा सा बेटा हुआ था उसे.
जब भी मायके आती थी तो लता तो कबीर को छोड़ती ही नहीं थी. इतना मन लगता था उस का कबीर के साथ.
‘‘भाभी, यहां आती हूं न तो तुम से यह इतना घुल मिल जाता है कि वापस जाने पर मु?ो मम्मी नहीं मामी कहना शुरू कर देता है.’’
उस की बात सुन कर हौल में बैठी वैदेहीजी, विहान और लता सभी जोर से हंस पड़े.
‘‘तू बूआ बन जा बस फिर मम्मी मामी को भूल कर अपने भाईबहन में रम जाएगा,’’ वैदेहीजी लाड जताते हुए बोलीं.
यह सुन कर लता हंसतेहंसते चुप सी हो गई. 4 साल बाद भी मां न बन पाने का गम उसे घुन की तरह भीतर से खोखला कर रहा था.
औलाद न होने के अवसाद की छाया लता के चेहरे पर पड़ी तो विहान ने बातों का रुख मोड़ दिया.
बहुत इलाज करवाया. एक बच्चे की खातिर. विहान ने अपनी और लता की हर किस्म की जांच करवाई. आईवीएफ प्रोसीजर से भी लता गुजर चुकी थी पर अभी तक उसे असफलता ही हाथ लगी थी.
दवा फिलहाल नाकामयाब साबित हो रही थी पर कभी भी वैदेहीजी या विहान ने लता को भूले से भी कुछ इस विषय में कड़वा नहीं सुनाया.
वे इस संवेदनशील मुद्दे को समझते थे और सब से बड़ी बात ये थी कि वे जानते थे कि इस में लता का कोई दोष नहीं. कोई नारी मन ऐसा नहीं होता जो मातृत्व का सुख न भोगना चाहे. उन लोगों को तो अपनेआप से ज्यादा लता के लिए मलाल होता था.
लता मन ही मन सब समझती थी. विहान का बच्चों के प्रति प्रेम उस से छिपा हुआ नहीं था पर वक्त के आगे वह बेबस पड़ चुकी थी और विहान ने उस से बच्चा गोद लेने की भी बात की थी लेकिन लता दिल से उस का यह आग्रह स्वीकर न कर सकी.
विहान ने कारोबार को नई ऊंचाइयां दी थीं. उस ने एक और फैक्टरी खोल ली थी.
नई फैक्टरी के मुहूर्त के बाद वैदेहीजी विवेकजी और अरुणा जी के साथ चार धाम की यात्रा पर चली गईं.
लता को मांजी के बिना कोठी बहुत खाली लग रही थी. उस ने सोचा कल अचानक फैक्टरी पहुंच कर विहान को चौंका देगी और लंच उसके साथ कहीं बाहर जा कर करेगी.
अगले दिन लता फैक्टरी पहुंची तो उसे पता लगा कि विहान दूसरी फैक्टरी का दौरा करने करने गया है.
‘‘अच्छा, सुबह तो उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं की थी.’’
‘‘सर तो अकसर ऐसे दूसरी फैक्टरी जाते ही रहते हैं,’’ मैनेजर कमल ने लता को बताया.
‘‘इट्स ओके, उन का मोबाइल भी नहीं मिल रहा है इसलिए जैसे ही यहां लौटे मु?ा से बात करने को कहिएगा,’’ कह कर लता बाहर आई तो देखा कि ड्राइवर कार का बोनट खोल कर कुछ ठीक करने की कोशिश कर रहा है.
कार ठीक नहीं हुई तो लता ने पास के टैक्सी स्टैंड से टैक्सी कर ली. कुछ आगे चलने पर दिखाई दिया कि किसी जुलूस की वजह से ट्रैफिक बुरी तरह जाम है. टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी दूसरे रास्ते पर घुमा ली.
टैक्सी अपने गंतव्य पर जा ही रही थी कि लता को ऐसा लगा कि उस के साथ वाली कार में विहान है और वह अकेला नहीं. उस ने मुड़ कर देखा, कार आगे जा चुकी थी.
नहीं यह नजरों का धोखा नहीं है. वह विहान ही था.
‘‘ड्राइवर, टैक्सी मोड़ो जल्दी,उस सफेद कार के पीछे चलो,’’ लता कुछ बेचैन सी हो उठी.
‘‘अरे, पीछा क्यों करना है, कुछ गड़बड़ वाला काम है क्या?’’ ड्राइवर शंकित सा हो
कर बोला.
‘‘अरे, नहीं भैया, बस मेरी सहेली है उस कार में, उस से ही मिलना है.’’
टैक्सी ड्राइवर सावधानी से कार के पीछे जाने लगा. सफेद कार एक साधारण से घर के आगे रुक गई.
लता ने टैक्सी पेड़ों की ओट में रुकवा ली, ‘‘बस भैया, कुछ मिनट, उस से अचानक मिलूंगी,’’ लता ने ड्राइवर को अपनी ओर देखते हुए सफाई दी.
कार में से जो उतरा वह विहान ही था और यह उस के साथ कौन है.
विहान के साथ एक लड़की थी. गोरा रंग, सुनहरे घुंघराले बाल, मध्यम कद, जितना बालों में छिपा चेहरा लता देख सकी उस से यही दिखाई दिया कि लड़की अच्छी शक्लसूरत की है पर उदासी और कमजोरी उस के चेहरे से झलक रही थी.
विहान ने उसे उस के कंधे पर हाथ लगा कर कार से उतारा और घर की डोरबैल बजाई.
दरवाजा एक बुजुर्ग महिला ने खोला, दिखने में वे काफी कमजोर थीं
और शायद उन की एक टांग भी समस्याग्रस्त थी. वे छड़ी के सहारे थीं और तभी जो हुआ उस पर विश्वास करना लता के लिए नामुमकिन था.
बुजुर्ग महिला के पीछे से एक लगभग 4 वर्ष का गोराचिट्टा सा बच्चा भागता हुआ आया और उस ने विहान को डैड कह कर पुकारा और उस लड़की को देख कर मौम कहा.
विहान ने भी उसे गोदी में उठा लिया और उस पर चुंबनों की बारिश कर दी. फिर सभी अंदर चले गए.
लता जैसे किसी गहरी खाई में गिरी हो.
चह तो काटो तो खून नहीं वाली स्थिति में पहुंच गई थी.
‘‘मेमसाहब, अभी और कितनी देर
यहां खड़ा रहना होगा… उस का ऐक्स्ट्रा पैसा लगेगा.’’
ड्राइवर की बात से उसे होश आया, ‘‘ह… क्या… हां वापस चलो,’’ लता जैसे खुद से ही कह रही हो.
घर पहुंचते ही वो आदमकद आइने के सामने जा खड़ी हुई और खुद को देखने लगी. आंखों के सामने एक ही दृश्य बारबार घूमने लगा, ‘‘डैड… डैड… डैड…’’ बच्चे का भागता हुआ आना और विहान का उसे अपनी बांहों में भर लेना.
जब लता की बरदाश्त से बाहर हो गया तो उस ने सामने रखी परफ्यूम की बौतल से आईना चकनाचूर कर दिया.