विपिन और मैं डाइनिंगटेबल पर नाश्ता कर रहे थे. अचानक मेरा मोबाइल बजा. हमारी बाई लता का फोन था.
‘‘मैडम, आज नहीं आऊंगी. कुछ काम है.’’
मैं ने कहा, ‘‘ठीक है,’’ पर मेरा मूड खराब हो गया. विपिन ने अंदाजा लगा लिया.
‘‘क्या हुआ? आज छुट्टी पर है?’’
मैं ने कहा, ‘‘हां.’’
‘‘कोई बात नहीं नीरा, टेक इट ईजी.’’
मैं ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘बड़ी परेशानी होती है... हर हफ्ते 1-2 छुट्टियां कर लेती है. 8 साल पुरानी मेड है... कुछ कहने का मन भी नहीं करता.’’
‘‘हां, तो ठीक है न परेशान मत हो. कुछ मत करना तुम.’’
‘‘अच्छा? तो कैसे काम चलेगा? बिना सफाई किए, बिना बरतन धोए काम चलेगा क्या?’’
‘‘क्यों नहीं चलेगा? तुम सचमुच कुछ मत करना नहीं तो तुम्हारा बैकपेन बढ़ जाएगा... जरूरत ही नहीं है कुछ करने की... लता कल आएगी तो सब साफ कर लेगी.’’
‘‘कैसे हो तुम? इतना आसान होता है क्या सब काम कल के लिए छोड़ कर बैठ जाना?’’
‘‘अरे, बहुत आसान होता है. देखो खाना बन चुका है. शैली कालेज जा चुकी है, मैं भी औफिस जा रहा हूं. शैली और मैं अब शाम को ही आएंगे. तुम अकेली ही हो पूरा दिन. घर साफ ही है. कोई छोटा बच्चा तो है नहीं घर में जो घर गंदा करेगा. बरतन की जरूरत हो तो और निकाल लेना. बस, आराम करो, खुश रहो, यह तो बहुत छोटी सी बात है. इस के लिए क्या सुबहसुबह मूड खराब करना.’’
मैं विपिन का शांत, सौम्य चेहरा देखती रह गई. 25 सालों का साथ है हमारा. आज भी मुझे उन पर, उन की सोच पर प्यार पहले दिन की ही तरह आ जाता है.