‘‘मेरे मन में इस बच्चे के लिए प्यार उमड़ता ही नहीं’’, कहा था उस ने. पर यह बात तो शुरू के दिनों की है. बाद में असहाय वेदना, बढ़ता रक्तचाप तथा अत्यधिक तनाव के बीच भी उस ने अपने गर्भस्थ शिशु के लिए कोमल भावनाएं जरूर पाली होंगी. उस के आने से सभी विपदाएं दूर हो जाएंगी, यह कामना भी की होगी. 8 वर्षीय बेटी से प्रसव के कारण 2-3 महीने दूर रहने की कल्पना ने उसे और भी दुखी किया होगा. बच्ची तो छोटा भाई या बहन मिलने के बहलावे से बहल भी गई होगी, मगर वह खुद बेटी से दूर रह कर एक दिन भी शांति से नहीं रह पाई होगी.
फिर वही हुआ जिस का अंदेशा कमोबेश सभी को था. समय से पहले मरे हुए बच्चे का जन्म, गला हुआ माथा, मुड़े हाथपांव… और अविकसित भू्रण… 8 महीने से जगी संभावना का अंत.
मैं आजकल बड़ी ढीठ हो गई हूं. जानती हैं दीदी, कल सास ने तनु से पुछवाया, ‘‘मम्मी से पूछ भुट्टा खाएगी क्या?’’
भूख से कुलबुलाते मैं ने कहा, ‘‘हां.’’
तो वह बोलीं, ‘‘बोल, जा कर ले आए.’’
अंदर सोई थी मैं, बाहर दादीपोती की आवाजें आ रही थीं. मैं ने तनु से कहा, ‘‘मेरी कमर में बहुत दर्द है. मैं अभी नहीं ला सकती.’’
सास बोलीं, ‘‘ला नहीं सकती तो खाएगी क्या?’’ तनु अंदरबाहर आ जा कर बातचीत जारी रखे थी. फिर भुट्टे आए भी और मैं ने बेशर्मी से खाए भी. आप सोच सकती हैं, दीदी. मैं कभी ऐसी हो जाऊंगी?
3-4 दिन तक मेरे जेहन में उस की ही बातें घूमती रहीं. उस से जब भी फोन पर बात होती, वह अपने अंदर का भरा सारा गुबार उड़ेल देती. कई बातें ऐसी भी होतीं, जो आमनेसामने उसे कहने
और मुझे सुनने में संकोच हो सकता था. आखिर वह मुझ से काफी छोटी है. फोन पर न मैं उस का शर्मसार चेहरा देख सकती थी न वह मेरा.
रिया रीना की छोटी बहन है और रीना मेरे बचपन की सहेली. रिया मेरे सामने बड़ी हुई. बहनों में सब से छोटी. उस के जन्म के बाद भाई के जन्म के कारण परिवार की वह लाडली बन गई.
रूप, गुण, आभिजात्य, संस्कार, शिक्षा, खानदान व पैसा ये 7 गुण ही तो देखते हैं लड़की में और रिया इन सातों गुणों में श्रेष्ठ नहीं सर्वश्रेष्ठ कही जा सकती है. लड़कों में तो गुण देखने का चलन ही नहीं है. अगर होता तो अजय के सातों खाने खाली.
लड़की सुंदर हो फिर सामान्य से भी कम दिखने वाला पति मिले तो समस्या खड़ी हो सकती है. शायद यह किसी ने नहीं सोचा. फिर न उस का काम के प्रति कोई लगाव, न महत्त्वाकांक्षा और स्वभाव, संस्कार, शिक्षा की तो बात करना ही बेमानी. उस का क्रोध ऐसा कि तीसों दिन घर में आंतक छाया रहता. कभी मम्मीपापा के साथ तो कभी बहनों के साथ तो कभी नौकरों या पड़ोसियों के साथ. रिया के आने के बाद सारा कहर उस पर बरसने लगा.
मैं अकसर सोचती रिया के घर वालों को अजय में क्या खूबी दिखी? संपन्न घर का इकलौता बेटा, घर, गाड़ी अर्थात भविष्य सुरक्षित. मगर रिया जैसी लड़की को क्या इन सब की कभी कमी हो सकती थी?
अजय के स्वभाव से परेशान उस के मम्मीपापा ने सोचा था कि समझदार, सुंदर लड़की आ कर उसे सही रास्ते पर ले आएगी, परंतु शादी के बाद स्थिति इतनी विकट हो जाएगी, इस का अनुमान तक वे नहीं लगा सके थे. अब अजय के जुल्मोसितम का निशाना थी वह पराई लड़की, जो शादी के इतने वर्षों बाद भी किसी की भी अपनी नहीं हो सकी थी. हां, विगत 8-9 वर्षों के वैवाहिक जीवन में उस के खाते में छोटी उम्र में उच्च रक्तचाप जैसा रोग और 8 वर्ष की प्यारी सी बेटी ‘तनु’ ये 2 ही जुड़ पाए थे.
इतने वर्षों बाद अनचाहे ही सही, फिर गर्भ का अंदेशा हुआ तो घबरा गई थी रिया. खुद को सामान्य करने में उसे बहुत वक्त लगा था. बड़ी मुश्किल से बीते थे वे 8 महीने… और उस का अंत भी क्या कम जानलेवा था? प्रसव के लिए दिल्ली अपने मायके चली गई थी.
डाक्टर मम्मीपापा पर बरस पड़ी थीं, ‘‘इस बार लड़की बच गई है. चाहते हैं कि वह स्वस्थ हो सके, तो कृपया उस की समस्याएं सुलझाएं, नहीं तो मर जाएगी वह.’’
इतना हाई ब्लडप्रैशर छोटी उम्र में, कभी भी कुछ भी हो सकता है. उस के मम्मीपापा कांप उठे थे.
रिया ससुराल से दिल्ली आती तब उस का उदास चेहरा सूनी आंखें व अजय के फोन आते ही कांप उठना. पर उस से इतना भर जाना कि अजय क्रोधी स्वभाव का है और मानसिक रोगी भी है. कई कुंठाएं पाल रखी हैं उस ने.
डाक्टर कहती हैं कि उस की समस्या सुलझाएं. रिया की तकलीफों का निवारण अलगाव से हो सकता है. अजय से अलगाव का अर्थ है रिया व नन्ही तनु का भविष्य, अकेलापन, लोगों की उठती उंगलियां, उस से उपजा नया तनाव.
रिया के मम्मीपापा अपनी बेटी के दुख में घुलते जा रहे थे. उस की पूरी त्रासदी के लिए स्वयं को दोषी ठहरा रहे थे. परंतु कोई आरपार का कदम उठा लेने जैसा निर्णय नहीं कर पाते थे. मेरी रीना से इस बारे में अकसर बहस होती.
उस के पापा का अपने परिवार तथा व्यवसाय क्षेत्र में बहुत नाम था पर रिया का प्रकरण न सुलझा पाने के पीछे यह बात भी रही हो कि उन के बेदाग घराने पर एक दाग लग जाएगा कि एक बेटी वापस आ गई ससुराल से… कमोबेश ऐसे ही आदर्शवादी और परंपरावादी संस्कारों के परिवेश में रिया पली थी. तभी वह सह रही थी. शुरू में उस ने अजय को समझाने की, वश में करने की बड़ी कोशिशें कीं. मगर नाकाम रही और फिर हताश हो गई.
पिछली बार मैं दिल्ली गई तो उस के पापा ने मुझे फोन कर के बुलाया था. वे रिया के बारे में मुझ से बात करना चाहते थे. मैं रीना से मिलने कई बार उस के घर गई थी पर अंकलआंटी से बस औपचारिक नमस्ते ही होता था.
रिया के जीवन से परिचित होने पर मुझे भी उन पर एक खिज सी थी, अंदर ही अंदर अच्छीभली लड़की को डुबा देने की बात कौंधती थी.
‘‘अनिता, तुम्हारी रिया से अकसर बात होती है. आखिर अजय चाहता क्या है? क्यों नहीं पटती दोनों में, तुम्हें क्या लगता है?’’ अंकल ने पूछा.
‘‘अंकल, यह सवाल ही गलत है कि अजय चाहता क्या है. एक बिगड़ा बच्चा जो चाहे उसे देते चले जाना कि बवाल न मचाए क्या ठीक है? अजय चाहता क्या है यह तो स्वयं अजय को खुद नहीं पता. न उस के मातापिता को. जहां तक रिया से न पटने की बात है, तो इस के कई मनोवैज्ञानिक कारण हैं. मुझे कहने में संकोच होता है.’’
‘‘नहीं तुम खुल कर कहो बेटी?’’