‘‘अंकल, जब रिया शादी के बाद पहली बार मुंबई गई तो दोनों के रूपरंग के अंतर को देख हर व्यक्ति चौंकता था कि ऐसे लंगूर के हाथ हूर कैसे लग गई? अजय को लगा कि लोग उस का अपमान कर रहे हैं फिर हीनता का बोध होते ही वह जबतब अन्य लोगों के सामने बेवजह रिया को फटकारने का कोई मौका नहीं चूकता. वह उसे पांव की नोक पर रखता. रिया उस की एक धमक से थरथर कांप जाती. अपने पुरुष अहम को तृप्त करने के लिए चीखतेचिल्लाते हुए यह भूल ही जाता है कि पतिपत्नी के रिश्ते की सारी आर्द्रता वह सोखता जा रहा है. 2 मिनट उस से बात करते ही, उस की मानसिक अस्थिरता का जायजा मिल जाता है. न जाने आप को कैसे... माफ कीजिएगा मुझे यह नहीं कहना चाहिए.’’
‘‘नहीं बेटी, तुम ठीक कह रही हो. उस वक्त सोचा हम ने भी था कि वह रूपरंग, व्यक्तित्व में रिया की जोड़ी का नहीं है. परंतु स्वभाव ऐसा होगा. यह कैसे मालूम होता.’’
‘‘नहीं अंकल. कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन के चेहरे पर ही लिखा होता है कि वे क्या हैं. अजय उन में से एक है. आप उसे किस तरह नहीं समझ पाए? यह ठीक है कि रूपरंग विशेष अर्थ नहीं रखते. मगर वह एक मानसिक रोगी है. उसे किसी अच्छे मनोचिकित्सक की जरूरत है. हो सकता है
कि वह ठीक भी हो जाए, परंतु इस के लिए जरूरी है कि पहले वह खुद और उस के मातापिता यह जानें कि तकलीफ क्या है और कहां है?’’
‘‘हम ने तो रिया को हमेशा शांत रहने व समझौता करने की ही सीख दी है, अनिता. ताकि बात ज्यादा न बढ़े.’’
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन
गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
- 24 प्रिंट मैगजीन