ल्ली में रीना से इस मुलाकात के बाद मैं 3 साल से अधिक हुए उस से नहीं मिल पाई. मुंबई पहुंचते ही राकेश की फर्म ने मुझे आस्ट्रेलिया भेज दिया. हम उधर चले गए. रिया से जाते वक्त फोन पर बात की, तो उसे बड़ी हताशा हुई. इस शहर में एक मैं ही थी, जिस के आगे कभीकभार वह अपने भारी मन को कहसुन कर हलका कर लिया करती थी. मैं जब दिल्ली लौटी तो पता चला कि रीना और रिया यही हैं. भाई की शादी पर आई हुई हैं. तो नकुल इतना बड़ा हो गया... शादी हो रही है उस की.
दोपहर को रीना और रिया मुझे लेने आ पहुंचीं. यह रिया थी. कायाकल्प हो गया था उस का. चहक रही थी. आवाज में भरपूर आत्मविश्वास उस की सुंदरता को बढ़ा रहा था. पर आंखों के कोनों में पसरा हलका सूनापन मुझ से छिपा नहीं रहा. इस पर भी उस का पूरा व्यक्तित्व बदला सा था, स्वस्थ, स्मार्ट. मैं हैरत से उसे ही देखे जा रही थी, बिना कुछ बोले. आगे बढ़ कर मेरा हाथ दबाते वही बोली, ‘‘दीदी, रिया के इस रूप को देख कर चौंक गई न. मैं ने अपना दुखड़ा आप के सामने खूब रोया. क्या अब बाकी की कहानी नहीं सुनना चाहेंगी?’’
‘‘ओह रिया, जरूर सुनूंगी बल्कि सच कहूं तो तुम्हें देख कर आश्चर्य तो हो रहा है साथ ही इतनी खुशी हो रही है, जिसे मैं बयान नहीं कर सकती.’’
‘‘मैं समझ सकती हूं, दीदी. आप ने उन दिनों मुझे कितना सहारा दिया. मैं इसे क्या भूल सकती हूं?’’
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