‘‘कैसीहो पुन्नू?’’ मोबाइल पर आए एसएमएस को पढ़ कर पूर्णिमा के माथे पर सोच की लकीरें खिंच गईं.
‘मुझे इस नाम से संबोधित करने वाला यह कौन हो सकता है? कहीं अजय तो नहीं? मगर उस के पास मेरा यह नंबर कैसे हो सकता है और फिर यों 10 साल के लंबे अंतराल के बाद उसे अचानक क्या जरूरत पड़ गई मुझे याद करने की? हमारे बीच तो सबकुछ खत्म हो चुका है,’ मन में उठती आशंकाओं को नकारती पूर्णिमा ने वह अनजान नंबर ट्रू कौलर पर सर्च किया तो उस का शक यकीन में बदल गया. यह अजय ही था. पूर्णिमा ने एसएमएस का कोई जवाब नहीं दिया और डिलीट कर दिया.
अजय उस का अतीत था… कालेज के दिनों उन का प्यार पूरे परवान पर था. दोनों शादी करने के लिए प्रतिबद्ध थे. अजय उसे बहुत प्यार करता था, मगर उस के प्यार में एकाधिकार की भावना हद से ज्यादा थी. अजय के प्यार को देख कर शुरूशुरू में पूर्णिमा को अपनेआप पर बहुत नाज होता था. इतना प्यार करने वाला प्रेमी पा कर उस के पांव जमीन पर नहीं टिकते थे. मगर धीरेधीरे अजय के प्यार का यह बंधन बेडि़यों में तबदील होने लगा. अजय के प्रेमपाश में जकड़ी पूर्णिमा का दम घुटने लगा.
दरअसल, अजय किसी अन्य व्यक्ति को पूर्णिमा के पास खड़ा हुआ भी नहीं देख सकता था. किसी के भी साथ पूर्णिमा का हंसनाबोलना या उठनाबैठना अजय की बरदाश्त से बाहर होता था और फिर शुरू होता था रूठनेमनाने का लंबा सिलसिला. कईकई दिनों तक अजय का मुंह फूला रहता.
पूर्णिमा उस के आगेपीछे घूमती. मनुहार करती… अपनी वफाओं की दुहाई देती… बिना अपनी गलती के माफी मांगती. तब कहीं जा कर अजय नौर्मल हो पाता था और पूर्णिमा राहत की सांस लेती थी. मगर कुछ ही दिनों में फिर वही ढाक के तीन पात.
कालेज में इतने सारे दोस्त होते थे, साथ ही कई तरह की ऐक्टिविटीज भी. ऐसे में एकदूसरे से बोलनाबतियाना लाजिम होता था. बस वह यह देख पूर्णिमा से बात करना बंद कर देता था. पूर्णिमा एक बार फिर अपनी सारी ऊर्जा इकट्ठा कर उसे मनाने में जुट जाती थी.
धीरेधीरे पूर्णिमा के मन में अजय को ले कर डर घर करने लगा. अब वह किसी से बात करते समय नौर्मल नहीं रह पाती थी. उस का सारा ध्यान यही सोचने में लगा रहता कि कहीं अजय देख तो नहीं रहा… अगर अजय ने देख लिया तो मैं क्या जवाब दूंगी… कैसे उसे मनाऊंगी… उसे कुछ भी कह दूं वह संतुष्ट तो होगा नहीं… क्या सुबूत दूंगी उसे अपने पाकसाफ होने का आदिआदि.
कालेज खत्म होतेहोते आखिर पूर्णिमा ने अजय से ब्रेकअप करने का निश्चय कर ही लिया. वह भलीभांति जानती थी कि उस का यह फैसला अजय को तोड़ देगा, मगर यह भी तय था कि अगर आज वह भावनाओं में बह गई तो फिर हमेशा के लिए उस की जिंदगी की नाव अजय के शंकालु प्रेम के भंवर में फंस कर डूब जाएगी और यह स्थिति किसी के लिए भी सुखद नहीं होगी. न अजय के लिए और न ही खुद पूर्णिमा के लिए.
पूर्णिमा ने दिल पर पत्थर रख कर अपने पापा की पसंद के लड़के रवि से शादी कर ली. पुराने शहर से उस का नाता अब छुट्टियों में पीहर आने तक ही रह गया. अपने पुराने दोस्तों से ही उसे पता चला था कि अजय भी अपनी नौकरी के सिलसिले में यह शहर छोड़ कर चला गया.
इन बीते 10 सालों में जिंदगी ने एक भरपूर करवट ली थी. पूर्णिमा 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. अब प्राइवेट कालेज में पढ़ाने लगी है. रवि, घरपरिवार और बच्चों में उलझी पूर्णिमा को पता ही नहीं चला कि कब समय पंख लगा कर उड़ गया. मगर आज अचानक अजय के इस एसएमएस ने पूर्णिमा को चौंका दिया. उसे महसूस हो रहा था कि वक्त की जिस राख को वह ठंडा हुआ समझ रही थी उस में अभी भी कोई चिनगारी सुलग रही है. उस की जरा सी लापरवाही उस चिनगारी को शोलों में बदल सकती है और इन शोलों की चपेट में आ कर न जाने किसकिस के अरमान स्वाहा होंगे.
अगले 3-4 दिन तक अजय की तरफ से कोई रिस्पौंस नहीं आया, मगर
पूर्णिमा इस बात को आईगई नहीं समझ सकती थी. वह अजय के सनकी स्वभाव को अच्छी तरह जानती थी कि जरूर उस के दिमाग में कोई खिचड़ी पक रही है. अजय यों शांत बैठने वालों में बिलकुल नहीं है.
और आज वही हुआ, जिस का पूर्णिमा को डर था. वह अपना लैक्चर खत्म कर के कौमनरूम में बैठी थी तभी उस का मोबाइल बज उठा. फोन अजय का था. उस ने धड़कते दिल से कौल रिसीव की.
‘‘कैसी हो पुन्नू?’’ अजय का स्वर कांप
रहा था.
‘‘माफ कीजिए, मैं ने आप को पहचाना नहीं,’’ पूर्णिमा ने अनजान बनते हुए कहा.
‘‘मैं तो तुम्हें एक पल को भी नहीं भूला… तुम मुझे कैसे भूल सकती हो पुन्नू?’’ अजय ने भावुकता से कहा.
पूर्णिमा मौन रही.
‘‘मैं अजय बोल रहा हूं… 10 साल बीत गए… कोई ऐसा दिन नहीं गुजरा जब तुम याद न आई हो… और तुम मुझे भूल गईं? मगर हां एक बात तो है… तुम आज भी वैसी की वैसी ही लगती हो… बिलकुल कालेज गर्ल… क्या करूं फेसबुक पर तुम्हें देखदेख कर अपने दिल को तसल्ली देता हूं…’’
अजय अपनी रौ में कहता जा रहा था पर पूर्णिमा की तो जैसे सोचनेसमझने की शक्ति ही समाप्त हो गई थी. उसे अपने खुशहाल भविष्य पर खतरे के काले बादल मंडराते साफ नजर आ रहे थे.
‘‘अभी फोन रखती हूं… मेरी क्लास का टाइम हो रहा है,’’ कहते हुए पूर्णिमा ने फोन काट दिया और सिर पकड़ कर बैठ गई. चपरासी से
1 कप कौफी लाने को कह कर वह इस अनचाही मुसीबत से निबटने का उपाय सोचने लगी. मगर यह आसान न था.
अजय की फोन कौल्स और एसएमएस की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. कभीकभार व्हाट्सऐप पर भी मैसेज आने लगे थे. पूर्णिमा चाहती तो उसे ब्लौक कर सकती थी, मगर वह जानती थी कि टूटा हुआ आशिक चोट खाए सांप जैसा होता है… अगर वह सख्ती से पेश आई तो गुस्साया अजय न जाने कौन सा ऐसा कदम उठा ले जो उस के लिए घातक हो. हां, वह उस के किसी भी मैसेज का कोई जवाब नहीं देती थी. खुद उसे कभी फोन भी नहीं करती थी. मगर अजय के फोन वह रिसीव अवश्य करती थी ताकि उस का मेल ईगो संतुष्ट रहे.