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अजय की बातों में वह कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाती थी. बस हांहूं कर के फोन काट देती थी. अजय ने ही बातोंबातों में उसे बताया कि जिस दिन पूर्णिमा की डोली उठी उसी दिन उस ने नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की थी. 2 साल वह गहरे अवसाद में रहा. फिर किसी तरह अपनेआप को संभाल सका था. मांपापा के जोर देने पर उस ने विभा से शादी तो कर ली, मगर पूर्णिमा को एक पल के लिए भी नहीं भूल सका. विभा उस का बहुत खयाल रखती है. अब अजय भी 2 बच्चों का पिता है. कुछ महीने पहले ही उस का ट्रांसफर इस शहर में हुआ है आदिआदि...

अजय की इस शहर में उपस्थिति पूर्णिमा के लिए परेशानी का कारण बनने

लगी थी. अकसर जब पूर्णिमा कालेज के लिए निकलती तो अजय को किसी मोड़ पर बेताब आशिक की तरह खड़ा पाती. 1-2 बार तो उस का पीछा करतेकरते वह कालेज तक आ गया था. पूर्णिमा इसी फिक्र में घुली जा रही थी कि अजय कोई ऐसी बचकानी हरकत न कर बैठे जो उस के लिए शर्मिंदगी का कारण बन जाए. सोचसोच कर हमेशा खिलाखिला रहने वाला उस का चेहरा मुरझा कर पीला पड़ने लगा था.

‘‘पुन्नू, तुम्हें 20 अप्रैल याद है?’’ अजय ने उत्साहित होते हुए पूर्णिमा को फोन कर बताया.

‘‘याद तो नहीं था, मगर अब तुम ने याद दिला दिया,’’ पूर्णिमा ने ठंडा सा जवाब दिया.

‘‘सुनो, 20 अप्रैल आने वाली है... मैं तुम से मिलना चाहता हूं अकेले में... प्लीज, मना मत करना...’’ अजय के स्वर में विनती थी.

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