कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘हां मम्मी मैं तंग आ गया हूं बचपन से गरीबी में रहकर. अब मैं खुली हवा में सांस लेना चाहता हूं. दीदी की शादी की उम्र अब वैसे भी गुजर चुकी है. उनके लिए तुम्हें कहां रिश्ता मिलने वाला है? जो जैसा है उसे वैसा ही रहने दो. ‘‘अरे हां, ध्यान से सुनो, हम दोनों शादी के बाद सीधे अपने नए घर में चले जाएंगे. हमने अपने लिए घर भी देख रखा है, मु?ासे किसी बात की उम्मीद मत रखना. अब हम चलते हैं. सीमा को उसके घर छोड़ कर मु?ो किसी काम से जाना है,’’ बात खत्म करते भाई अपनी मंगेतर सीमा के साथ वहां से चलने को हुआ.

वे दोनों कमरे से बाहर आए तो स्नेहा को वहां खड़ी देख कर आंखें चुरा कर निकल गए. भाई को इस तरह से जाते देख कर स्नेहा निढाल सी सोफे पर गिर पड़ी. उसे जिंदगी की सारी खुशियां हाथों से छूटती नजर आईं. अपने लोगों का इस तरह रंग बदलना उसके मन में एक सवालिया निशान छोड़ गया.

जिस दिन भाई घर से निकला, उस रात कोई भी नहीं सो सका. मम्मी पापा से कह रही थीं, ‘‘कैसे रहेंगे अब? बेटे ने तो पल्ला ?ाड़ लिया, वह हमारे बुढ़ापे का सहारा था. बेटी की शादी कैसे करेंगे अब. हमारे पास तो पैसा भी नहीं ंहै…’’

‘‘हमारे यहां खाने के लाले पड़े हैं, नौकरी है नहीं और तुम्हें बेटी की शादी की पड़ी है. भूल जाओ अब उसकी शादी. जिंदगी जिस रफ्तार से चल रही है उसे वैसे ही चलने दो… उम्र गुजर गई है स्नेहा की शादी की. ‘‘हर बार लड़का ही सहारा हो यह जरूरी तो नहीं. लड़की भी तो घर का सहारा बन सकती है, बेटी को पालना अगर हमारा फर्ज है तो उसका भी फर्ज है कि हमारा सहारा बने…’’ कह कर उन्होंने करवट बदली पर सामने स्नेहा को देख कर वे चौंक गए, ‘‘अरे मैं तो बस यों ही गुस्से में कह रहा था- आज बेटे ने साथ छोड़ा है तो जरा सा मायूस हूं. लेकिन तू फिक्र मत कर सब ठीक ही होगा. एक दिन तुम्हें भी विदा करूंगा, मैं कुछ न कुछ सोचता हूं…’’ पापा ने बात संभाल तो ली पर उनके कौन से रूप पर भरोसा करें, स्नेहा सम?ा नहीं पाई. घर के खर्चे अब काफी कम हो गए थे. स्नेहा की तनख्वाह बढ़ गई थी. मम्मी थोड़े-थोड़े पैसे जमा करती रहीं. पिता को हो न हो पर मां को अपनी बेटी की जरूर फिक्र थी. एक दिन लड़के वाले स्नेहा को देखने आए. लड़के-लड़की ने एक-दूसरे को पसंद किया, बात आगे बढ़ती गई. शादी की तारीख भी तय हो गई. पर अचानक एक दिन लड़के वालों ने शादी तोड़ने का संदेश भेज दिया. ‘‘आखिर बात क्या है? आप उनके पास जाकर मिल आइए न,’’ मां ने बेचैन होकर पापा से कहा.

‘‘रिश्ता तोड़ते समय ही उन्होंने मिलने से मना कर दिया था. खैर, जाने दो हमारी बेटी को इससे भी अच्छा लड़का मिलेगा…’’ पापा ने उन दोनों को सम?ाते हुए कहा. इसके बाद दो बार स्नेहा का रिश्ता जुड़ा और फिर टूट गया. मन का बो?ा बढ़ गया था. उसकी जिंदगी जैसे एक ही ढर्रे पर चल रही थी, जिसमें कोई रोमांचक मोड़ नहीं था. सालभर तक तो यही सब चलता रहा और तभी अचानक कंपनी ने स्नेहा का उसी शहर की दूसरी ब्रांच में ट्रांसफर कर दिया. स्नेहा एक ही जगह काम कर के ऊब गई थी सो वह भी खुशी-खुशी दूसरी ब्रांच में चली गई.

नई ब्रांच में आना जैसे स्नेहा के लिए फायदेमंद साबित हुआ. यहां की आबोहवा उसे अच्छे से रास आई. कंपनी का ऑफिस घर से दूर था, लेकिन बस सेवा उपलब्ध थी, इसलिए स्नेहा को कोई परेशानी नहीं थी.

एक दिन अचानक स्नेहा की स्वनिल से मुलाकात हो गई, जो वहां मैनेजर था. पहले उन दोनों की दोस्ती हुई और फिर दोस्ती चाहत में बदल गई. स्नेहा अपने ही खयालों में खोई थी कि अचानक ड्राइवर ने बस को जोर से ब्रेक लगाया और वह हकीकत में लौट आई.

स्नेहा घर पहुंची, तो मम्मी चाय बना रही थीं और पापा टेलीविजन देख रहे थे. स्नेहा कपड़े बदल कर आई और मम्मी का हाथ बंटाने लगी. चाह कर भी वह मम्मी से शादी की बात नहीं कर पाई. इसी ऊहापोह में अगला दिन भी निकल गया. स्वनिल के आने से पहले उसका घर में बात करना जरूरी था. स्नेहा जब शाम को ऑफिस से घर पहुंची, तो पापा तैयार बैठे थे और मां अच्छी सी साड़ी पहने आईने के सामने शृंगार कर रही थी.

‘‘सुनो अब बेटी के लिए चाय बनाने मत बैठ जाना, देर हो रही है. जल्दी करो भई,’’ पापा ने मम्मी को आवाज लगाई. ‘‘सुनो बेटा, मैं और तुम्हारे पापा फिल्म देखने जा रहे हैं. तुम चाय बनाकर पी लेना और हां रात के लिए रोटी भी सेंक लेना. हम 10 बजे तक वापस आ जाएंगे,’’ कहते हुए मम्मी ने चप्पल पहनी और बाहर निकल गईं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...