‘‘भैया सादर प्रणाम, तुम कैसे हो?’’ लखन ने दिल्ली से अपने बड़े भाई राम को फोन कर उस का हालचाल जानना चाहा.
‘‘प्रणाम भाई प्रणाम, यहां सभी कुशल हैं. अपना सुनाओ?’’ राम ने अपने पैतृक शहर छपरा से उत्तर दिया. वह जयपुर में नौकरी करता था. वहां से अपने घर मतापिता से मिलने आया हुआ था.
‘‘मैं भी ठीक हूं भैया. लेकिन दूर संचार के इस युग में कोई मोबाइल फोन रिसीव नहीं करे, यह कितनी अनहोनी बात है, तुम उन्हें क्यों नहीं समझते हो? मैं चाह कर भी उन से अपने मन की बात नहीं कह पाता, यह क्या गंवारपन और मजाक है,’’ मन ही मन खीझते हुए लखन ने राम से शिकायत की.
‘‘तुम किस की बात कर रहे हो लखन, मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है?’’ राम ने उत्सुकता जताते हुए पूछा.
‘‘तुम्हें पता नहीं है कि कौन मोबाइल सैट का उपयोग नहीं करता है? क्यों जानते हुए अनजान बनते हो भैया?’’ लखन ने नाराजगी जताते हुए कहा.
‘‘सचमुच मुझे याद नहीं आ रहा है. तू पहेलियां नहीं बुझ मेरे भाई, जो भी कहना है साफसाफ कहो,’’ इस बार राम ने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.
‘‘खाक साफसाफ कहूं...’’ उत्तेजित हो कर लखन ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हीं ने मेरी कौल मातापिता को उठाने से मना कर दिया है इसलिए मैं परेशान हूं. घर में 2-2 स्मार्टफोन हैं. रिंग बजती रहती है लेकिन कोई रिसीव तक नहीं करता है, जबकि घर में 2-2 नौकरानियां भी हैं. मेरे साथ अनाथों जैसा बरताव क्या शोभा देता है?’’
‘‘बकबास बंद करो... फुजूल की बातें सुनने की मुझे आदत नहीं है... ऐसे बोल रहे हो जैसे वे मेरे मातापिता नहीं कोई नौकर हों... हां, नौकर को मना किया जा सकता है लेकिन देवतुल्य मातापिता को नहीं... वे तो अपनी मरजी के मालिक हैं... किस से बातें करनी हैं किस से नहीं वही जानें. अवश्य तुम उन के साथ कोई बचपना हरकत की होगी... इसलिए वे तुम से नाराज होंगे...’’ इतनी फटकार लगा कर राम ने फोन काट दिया.