फिर देव को सामने देख कहती, ‘‘छूओ, देखो मेरा कलेजा कैसे धकधक कर रहा है,’’ कह कर वह उस का हाथ अपने सीने पर रख देती.
उस के ऐसे आचारण से घबरा कर देव वहां से भाग खड़ा होता. कभी जब देव अपने ही खयालों में खोया होता तो अचानक पीछे से वह उस के गले में बांहें डाल कर झल जाती और वह घबरा कर उठ बैठता. कहता कि कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा? तो रमा कहती कि वही जो सोचना चाहिए और फिर खिलखिला कर हंस पड़ती. देव उसे देख कर सोचने लगता कि कैसी पकाऊ लड़की है यह देव ने कभी उसे उस नजर से नहीं देखा, पर वह थी कि उस के पीछे ही पड़ी थी.
कभीकभी तो वह देव के कमरे में ही आ कर जम जाती और फिर देर रात तक बैठी रहती. हार कर देव को कहना पड़ता कि भई जाओ अपने कमरे में अब तो वह यह बोल कर देव से चिपक जाती कि क्या हरज है अगर आज रात वह उसी के कमरे में सो जाए तो?
‘‘और अगर कोई शरारत हो गई मुझ से तो?’’ खीजते हुए देव कहता.
‘‘तो डरता कौन है आप की शरारतों से? कर के देखो तो एक बार,’’ अपनी एक आंख दबा कर रमा कहती तो देव ही शरमा जाता.
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समझ में आने लगा था देव को कि रमा अपनी बहन जैसी बिलकुल नहीं है और वह उस के एक इशारे पर अपना सबकुछ समर्पित कर सकती और शायद बाद में वह उस का फायदा भी उठाना चाहे, इसलिए अब वह उस से दूरी बना कर चलने लगा. औफिस से आते ही वह या तो अपने किसी दोस्त के घर जा कर बैठ जाता या फिर अपने कमरे में ही बंद हो जाता यह बोल कर कि आज वह बहुत थका हुआ है तो आराम करना चाहता है. लेकिन इतनी ढीठ थी रमा कि दरवाजा खटखटा कर उस के कमरे में घुस आती और ऊलजलूल बातें करने लगती. अब तो चिढ़ होने लगी थी देव को उस के छिछले आचरण से पर कहे तो किस से भला?