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भोपाल स्टेशन के जाते ही मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं. फिर पता नहीं कब मेरी आंख लग गई और मैं इतनी गहरी नींद सोई कि सिकंदराबाद जंक्शन आने पर ही मेरी आंख खुली. मैं ने अपनी कलाई घड़ी में समय देखा, शाम के साढ़े 6 बज रहे थे.

मैं ने पर्स से निकाल कर अपना मास्क पहना, परदा पूरा खिसकाया और सामने देखा. अमित नीचे की बर्थ पर बैठा हुआ किन्हीं गहरे खयालों में खोया हुआ था. विंडो के नीचे लगे होल्डर पर रखे खाली टी कप को देख कर मेरी भी चाय पीने की इच्छा प्रबल हो उठी. मैं ने मास्क लगेलगे ही अमित से पूछा, "आई बेग योर पार्डन मिस्टर, आर द सर्विसेस औफ पेंट्री कार इज अवेलेबल एट दिस टाइम औफ कोविड 19, इन दिस स्पेशल ट्रेन."

"यस. यू जस्ट काल द अटेंंडेंट औफ दिस कोच, ही विल अरेंज टी फौर यू. एंड माय नेम इज अमित. एंड आई विल बी हैप्पी, इफ यू टेल मी योर नेम."

"नन्ना हेसारु सुम्मी," मैं ने कन्नड़ भाषा में उत्तर दिया, जो अमित के सिर के ऊपर से गुजर गया.

उस ने हिंदी में कहा, "मैं कुछ समझा नहीं...?”

“ओह दैट मीन्स यू कांट स्पीक इन कन्नड़?”

“हां, मैं कन्नड़ भाषा न पढ़ सकता हूं, न लिख और बोल सकता हूं...”

“ओके. देन आई विल टाक इन इंगलिश?” मुझे ऐसा लग रहा था कि बहुत पहले उस से हुई वार्तालाप की जंग मैं ने जीत ली है, इसलिए जैसे ही उस ने कहा, “मैडम, क्यों न हम हिंदी में बात करें. मेरे खयाल से दिल्ली और आगरा में बोली जाने वाली भाषा में एक अजीब सा अपनापन लगता है."

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