परीक्षा के अंतिम दिन घर आने पर पुन्नी इतनी थकी हुई थी कि लेटते ही सो गई. उठी तो शाम होने को थी, खिड़की से देखा तो पोर्टिको में मम्मी की गाड़ी खड़ी थी यानी वे आ चुकी थीं. छोटू से मम्मी के कमरे में चाय लाने को कह कर उस ने धीरे से मम्मी के कमरे का परदा हटाया, मम्मी अलमारी के सामने खड़ी, एक तसवीर को हाथ में लिए सिसक रही थीं, ‘‘आज पुन्नी की आईएएस की लिखित परीक्षा पूरी हो गई है, सफलता पर उसे और उस के पापा को पूरा विश्वास है. लगता है बेटी को आईएएस बनाने का तुम्हारा सपना पूरा करने की मेरी वर्षों की तपस्या सफल हो जाएगी.’’
पुन्नी ने चुपचाप वहां से हटना बेहतर सम झा. उस का सिर चकरा गया. मम्मी रोरो कर कह क्या रही हैं, ‘उस के पापा का विश्वास...बेटी को आईएएस बनाने का तुम्हारा सपना...? कैसी असंगत बातें कर रही हैं, डिगरी कालेज की प्रिंसिपल मालिनी वर्मा? और वह तसवीर किस की है?’
चाय की ट्रौली मम्मी के कमरे में ले जाते छोटू को उस ने लपक कर रोका, ‘‘उधर नहीं, बरामदे में चल.’’
‘‘आप को हो क्या गया है, दीदी? कहती कुछ हो और फिर करती कुछ हो. दोपहर को मु झे फिल्म की सीडी लगाने को बोल कर आप तो सो गईं, मु झे मांजी से डांट खानी पड़ी...’’
‘‘मम्मी दोपहर को ही आ गई थीं?’’ पुन्नी ने छोटू की बात काटी.
‘‘आई तो अभी हैं, मु झे डांट कर तुरंत अपने कमरे में चली गईं.’’
‘और कमरे में जा कर उस तसवीर से बातें कर रही हैं? मगर तसवीर है किस की?’ पुन्नी ने सोचा.