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लेखक- अरुण गौड़

उस ने रात बहुत मुश्किल से काटी थी, इसलिए उस ने अब वक्त जाया करना सही नहीं समझ, अपनी कार ले कर वह रोहन के घर चल दी. वह न जाने कितनी बार उस घर गई थी. लेकिन आज पहली बार रोहन से मिलने के लिए जा रही थी.

आज फिर से नैना को देख कर संध्या सरप्राइज्ड थी क्योंकि कल ही तो वह घर आई थी. अधिकतर वह हफ्ते में एकदो बार ही आती थी. लेकिन इस तरह से अगले ही दिन आना आज पहली बार था. इसलिए संध्या का आश्चर्यचकित होना बनता था. खैर, नैना आई तो किसी और काम से थी लेकिन वह संध्या को तो यह नहीं बता सकती थी, सो बोली, “अरे यार, आज औफिस की छुट्टी थी और घर पर मन नहीं लग रहा था, इसलिए तेरे पास आ गई. चल, चाय तो पिला.”

“हां, क्यों नहीं. चल किचन में, साथ में चाय भी बन जाएगी और गपें भी मार लेंगे,” संध्या ने खुश होते हुए कहा.

वे दोनों किचन में चली गईं और बातें करने लगीं. लेकिन नैना का मन बातों में नहीं, कहीं और था. उस की नजरें बारबार रोहन को ढूंढ रही थीं. लेकिन वह उसे कहीं दिख नहीं रहा था. आखिर उस ने संध्या से पूछ ही लिया, “तुम्हारे पतिदेव आए नहीं अभी तक औफिस टूर से?”

“नहीं, अभी नहीं, कौल आया था, शायद परसों तक आएंगे,” संध्या ने कहा.

“और रोहन भी नहीं दिख रहा, कहीं गया है क्या?” नैना ने घूमफिर कर अपने काम की बात पूछी.

“नहीं, गया तो कहीं नहीं है. आज भी छुट्टी है उस की. उस के पापा घर पर नहीं हैं तो आज पंक्षी बन रहा है. रात को दोस्तों के साथ घूमने गया था, देर से वापस आया और अभी तक सो रहा है. अभी चाय ले कर जाती हूं, फिर जगाती हूं उसे,” संध्या ने कहा.

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