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दफ्तर से घर लौटते समय रास्ते में भाभीजी मिल गईं. वे बहुत उदास थीं. पूछने पर उन्होंने बताया, ‘‘मुंबई से रोमित का मैसेज आया है कि निवेदिता अब इस दुनिया में नहीं रही है.’’

सुन कर मैं स्तब्ध रह गया. घर तक कैसे आया, पता नहीं. आते ही एक बौक्स से निवेदिता का फोटो निकाल कर बैठ गया. तभी श्रद्धा ने आ कर पूछा, ‘‘इतने ध्यान से किस का चित्र देखा जा रहा है?’’

‘‘तुम नहीं जानतीं, श्रद्धा, यह निवेदिता है. महज 32 साल की उम्र में अपने पति और 2 बच्चों को कोविड से पैदा हुए किसी कौंप्लिकेशन की वजह से बिलखता छोड़ कर हमेशा के लिए दुनिया से चली गई है.’’

‘‘उफ, बड़े दुख की बात है. लेकिन तुम निवेदिता को कैसे जानते हो? निवेदिता का फोटो तुम्हारे पास कैसे आया?’’

‘‘तुम गोविंदपुरी वाली भाभीजी को तो जानती ही हो.’’

 

‘‘हां, अपने हनीमून से लौटते वक्त कुछ समय के लिए हम उन्हीं के घर तो रुके थे.’’

‘‘ठीक पहचाना तुम ने. निवेदिता उन्हीं की भतीजी थी.’’

‘‘मगर पहले तो तुम ने निवेदिता का कभी जिक्र नहीं किया?’’

‘‘ऐसी कितनी ही बातें मैं ने तुम्हें अभी तक नहीं बताई होंगी.’’

‘‘पर मैं ने तो तुम से कोई बात छिपा कर नहीं रखी?’’

‘‘यह क्या तुक हुआ?’’

‘‘अच्छा, तो कोई तुक नहीं हुआ? तुम मर्द लोग पता नहीं कैसे होते हो. अब तो तुम्हारी ही बात से यह स्पष्ट हो गया कि तुम्हारे जीवन में न जाने ऐसी कितनी निवेदिताएं आ चुकी हैं.’’

‘‘तुम फिर गलती कर रही हो.’’

‘‘सही बात सभी को कड़वी लगती है, पति महाशय. भाभी की भतीजी और परेशान तुम हो और फिर भी कहना यह कि उस से कोई रिश्ता नहीं.’’

‘‘पर मैं तुम्हें कैसे समझऊं कि निवेदिता के साथ मैं ने कभी ढंग से बात भी नहीं की थी.’’

‘‘कोई दूसरा कहता तो शायद इस बात का विश्वास भी कर लेती.’’

‘‘मेरी बात का भी तुम्हें विश्वास कर लेना चाहिए क्योंकि तुम अच्छी तरह जानती हो कि तुम्हारा पति इतना बुद्धू है कि जरूरत पड़ने पर भी झठ नहीं बोल सकता.’’

‘‘बनो मत, मैं जानती हूं कि अंटशंट बकना तुम्हारी आदत है. इसीलिए जिंदगी में कोई उन्नति नहीं कर सके. तुम किसी भी व्हाट्सऐप गु्रप में भी ढंग से ज्यादा दिन नहीं रह पाते.’’

‘‘तुम ने ठीक फरमाया. अपने को धन्य समझे कि तुम्हें मेरे जैसा पति मिला है. मैं शादीशुद पुरुष हो कर भी घिसेपिटे ढंग से जी रहा हूं, इसीलिए आज तक उन्नति नहीं कर सका.’’

‘‘शायद निवेदिता को न पाने के पश्चात्ताप में अब तक तुम घुलते रहे हो.’’

‘‘मुझ पर नहीं तो उस बेचारी लड़की पर तो तरस खाओ. और फिर अब तो वह मर भी गई है.’’

‘‘वाह, क्या कहने तुम्हारी दार्शनिकता के. फिर भी यह तो बताओ कि तुम्हारी उस से जानपहचान कैसे हुई?’’

‘‘तुम जानना ही चाहती हो तो सुनो. बात उन दिनों की है जब एमएससी करने के बाद मुझे दिल्ली  में नौकरी मिल गई थी. गांव छोड़ते समय पिताजी ने मुझे दूर के एक भाई साहब को फोन कर कहा था कि बेटे, ये तुम्हारे दूर के रिश्ते के एक भाई का पता है. दिल्ली में अपनी जानपहचान का इन के अलावा और कोई नहीं है. बड़ा शहर है, वक्तजरूरत इन के पास चले जाया करना.

‘‘दिल्ली पहुंचने के तीसरे दिन ही मैं भाई साहब के घर गया. पहली भेंट में ही मुझे भैया और भाभी के व्यवहार ने मोह लिया. फिर मैं अकसर उन के घर जाने लगा. भाभीजी से मेरी खूब पटने लगी.’’

‘‘चलोजी, बहुत भूमिका हो ली. अब तुरंत नायिका को मंच पर पेश करो.’’

‘‘फिर मैं एक दिन शाम को भाभीजी के घर गया. ड्राइंगरूम में घुसते ही मैं ठिठक

गया. सामने सोफे पर एक लड़की बैठी कशीदा काढ़ रही थी. उस के खुले, काले, घने, लंबे बाल पीठ पर लटक रहे थे. ड्राइंगरूम की खिड़की से ढलते सूरज की धूप उस पर सुनहरे फीते की तरह पड़ रही थी.

‘‘उस लड़की को भाभीजी के घर में मैं ने पहली बार ही देखा था. आहट पा कर कढ़ाई से आंख हटते ही वह सकपका सी गई. उसे उसी हालत में छोड़ कर मैं घर के भीतर चला गया.

‘‘भाभीजी रसोईघर में कुछ बना रही थीं. मुझे देख कर एकदम खिल गईं और बोलीं कि बड़े अच्छे वक्त पर आए हो, अनिल, छोलेभठूरे बनाते हुए तुम्हारी बहुत याद आ रही थी. तुम्हें बहुत अच्छे लगते हैं न.

‘‘भाभीजी के दुलार से मैं बहुत खिल गया और बोला कि भाभीजी, मुझे एक स्टूल दे दो.

‘‘इस पर वे बोलीं कि तुम इस गरमी में यहां बैठोगे.

‘‘मैं ने कहा कि वाह, भाभीजी, आप ऐसी गरमी में छोलेभठूरे बना सकती हैं तो क्या हम यहां बैठ कर उन्हें खा भी नहीं सकते.

‘‘भाभीजी मुसकरा कर आंचल से माथा पोंछने लगीं तो अचानक मैं ने पूछा कि ड्राइंगरूम में जो देवीजी बैठी हैं वे कौन हैं?

‘‘भाभीजी ने बताया कि वह उन की भतीजी है. उस का नाम निवेदिता है. चूंकि उन के भैया का देहांत हो गया है और घर में कोई और सहारा नहीं है, इसलिए उन्होंने अपनी भाभी और भतीजी को अपने पास बुला लिया है.

‘‘थोड़ी देर बाद वह लड़की आ कर रसोई के दरवाजे के पास खड़ी हो गई.

‘‘मैं ने महसूस किया कि वह मुझे भाभीजी से इस तरह घुलमिल कर बातें करते देख कर हैरान है. लेकिन उस ने ऐसा प्रदर्शित किया जैसे उन से मुझे देखा ही न हो. भाभी ने परिचय कराया कि निवेदिता, यह हमारा देवर अनिल है.

‘‘निवेदिता ने नजरें उठा कर मुझे देखा और तुरंत पलट कर ड्राइंगरूम की ओर चली गई.

‘‘इस के बाद उस ने मुझे भाभीजी के घर के एक सदस्य के रूप में ही देखा. वह गांव से इंटर पास कर के आई थी. दिल्ली में आने पर उस का पढ़नालिखना भी अच्छी तरह से हो सकेगा और दूसरे यहां उस के लिए अच्छा घरवर भी आसानी से ढूंढ़ा जा सकता है, कुछ इस प्रकार की इच्छाएं भाभीजी और निवेदिता की मां के मन में थीं, यह मुझे तभी पता लग गया.’’

‘‘वाह, कहानी तो खूब अच्छी गढ़ रखी है तुम ने. खैर, फिर निवेदता से दूर हो कर तुम मरे पास कैसे आ गए? तुम दोनों में प्यार कहां तक हुआ, यह भी तो बताओ?’’

‘‘देखो, मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूं कि उन दिनों दिल्ली में उठनेबैठने का मेरा एकमात्र स्थान भाभीजी का घर ही था. उस उम्र में भी मुझे आवारागर्दी पसंद नहीं थी. शेष खाली वक्त में मैं अपने कमरे में बैठ कर बड़ेबड़े लेखकों की किताबें पढ़ा करता था और जब थक जाता था तो भाभी के आंचल की स्निग्धता मुझे उन के पास खींच ले जाती थी. वे मुझ से अकसर मजाक में कहतीं कि अनिल, तुम शाद कर के अपनी बीवी के ऐसे गुलाम बन जाओगे कि बेचारी की जान मुसीबत में पड़ जाएगी. यह तो तुम मानोगी ही कि उन की यह बात कितनी सही थी.’’

‘‘रहने भी दो अपनी बड़ाई, बीवी के गुलाम मर्द भी कहीं अच्छे होते हैं?.’’

‘‘यह तो तुम अच्छी तरह जानती हो कि पुरुषों की सी कठोरता मुझ में है ही नहीं. मैं कभी गुस्सा नहीं कर सकता. नौकर मुझ से डरते नहीं. किसी के दिल से नहीं खेल सकता. इसलिए एक सुंदर लड़की को बिलकुल नजदीक पा कर भी मैं उस से प्रेम न कर सका.’’

‘‘क्या निवेदिता सुंदर थी? फोटो से तो ऐसा नहीं लगता.’’

‘‘यह फोटो बिलकुल सादी पोशाक में खींचा गया है और फोटो में वह चाहे जैसी भी प्रतीत हो रही है, पर उस का गेहुआं रंग, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और मासूम चेहरा मुझे बहुत भला लगता था.’’

‘‘अरे, इतनी जल्दी क्यों रुक गए. थोड़ी सी कविता और कर डालो.’’

‘‘उपहास न करो, श्रद्धा, यह एक सचाई है.’’

‘‘बाप रे, मेरे बुद्धूराम, जरा सा मजाक भी सहन नहीं तुम को. मामला कुछ गंभीर नजर आता है, सुनाओ भई, आगे सुनाओ.’’

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