‘‘इस के बाद विशेष कुछ नहीं है, पर हां, कभीकभी एक धुंधला सा चित्र आंखों के सामने आ जाता है. ठीक वैसे ही जैसे भोर की अर्धनिद्रा में आया स्वप्न हो, जिस का कोई आकार नहीं होता, पर उस की झलक मात्र से मनमस्तिष्क में बेचैनी सी छा जाती है. यदि तुम सोचती हो कि वह चित्र निवेदिता का होगा तो यह तुम्हारी भूल है. मैं कह नहीं सकता कि तुम स्त्रियों के साथ भी ऐसा होता है क्या?’’
‘‘औरतों की हालत कैसी होती है, यह तुम ने उस समय निवेदिता से पूछा होता तो इस का पता लग गया होगा.’’
‘‘मैं एक बार फिर तुम्हें बता देता हूं कि हमारी आमनेसामने बातचीत शायद ही कभी हुई हो, यद्यपि जिस दिन भी वहां जाता था, हमारी मुलाकात अवश्य होती थी. भाभीजी, उस की मां और हम सभी शाम के समय अधिकतर लौन में कुरसियां डाल कर बैठ जाते थे. वह अपनी कुरसी कुछ दूर ही रखती थी. पता नहीं क्यों? हां, इतना अवश्य था कि भाभीजी जब भी उस से कहती थीं, वह गाना अवश्य सुना दिया करती थी. कभीकभी वह गीत में इतना खो जाती थी कि एक के बाद एक सुनाती जाती थी. उस का गाना रुक जाने के बाद बहुत देर तक हम लोग बातें करना भूल जाते थे.’’
‘‘वह कैसा गाती थी?’’
‘‘श्रद्धा, यह तो मैं नहीं जानता, वैसे उस के गाने की तारीफ सभी करते थे. लेकिन जब वह गाती थी तब मुझे ऐसा लगता था कि उस के गाने में जो दर्द, जो टीस है, वही मेरे दिल में है. पर मेरे पास उसे प्रकट करने के लिए कोई शब्द नहीं थे, भाषा नहीं थी. उस के कुछ गाने मैं ने चोरी से रिकौर्ड कर लिए थे.’’
‘‘गाने तो वह तुम्हारे लिए ही गाती थी, यही कहना चाहते हो न?’’
‘‘ऐसी बेतुकी बातें मैं ने कभी नहीं सोचीं. कोई लड़की अगर आंख उठा कर
देख ले और मैं सोचने लगूं कि वह मुझे किसी विशेष कारण से देख रही है तो यह मेरी बेवकूफी के सिवा और क्या होगा? और रही रिकौर्डिंग की बात तो उस के बाद तो न जाने कितनी बार मोबाइल बदले जा चुके हैं. अब कहां मिलेगी वह आवाज.’’
‘‘तुम्हारी यह बात मेरी बुद्धि में नहीं घुसी. खैर, आगे बताओ.’’
‘‘ठीक ही कहा तुम ने. उस की मां को उस की शादी की बड़ी जल्दी थी. पर मैं भाभीजी को अकसर यह कहते सुना करता था कि अरे, ऐसी भी क्या जल्दी है. लड़की अभी बीए तो कर ले. उसे पढ़ने भी दो, समय आने पर शादी हो जाएगी.
‘‘लेकिन उस की मां कहती थी कि शादीब्याह की कोशिश तो पहले से करनी पड़ती है. लड़की की शादी है, कोई हंसीमजाक तो नहीं.
‘‘एक दिन निवेदिता की मां ने मुझे से भी कहा कि अनिल, तुम इतनी अच्छी नौकरी पर हो. क्या निवेदिता के लिए अपने ही जैसे किसी लड़के को नहीं ढूंढ़ सकते?
‘‘तभी भाभीजी मेरा मजक उड़ाती हुई बोलीं कि तुम ने भी बड़े भले आदमी से जिक्र छेड़ा है. अपने छोटों से बात करने में तो यह पसीने में भीग जाता है, यह बिटिया के लिए क्या लड़का ढूंढ़ेगा. हां, इस की निगाह में एक लड़का जरूर है.
‘‘और वह यह कह कर मेरी ओर स्नेहभरी दृष्टि डाल कर मुसकरा पड़ीं.
‘‘उस की मां ने उत्सुकतापूर्वक तुरंत पूछा कि कौन है वह लड़का? कहां रहता है? क्या काम करता है?
‘‘पर भाभीजी मेरी ओर देख कर मुसकरा ही रही थीं. मुझ से वहां एक पल भी न ठहरा गया. मैं तुरंत उठ कर गली में आ गया. मेरा मन यह सोच कर बड़ा खराब हो गया कि भाभीजी ने मेरे विषय में क्या सोच रखा है.
‘‘मैं लज्जा से गड़ा जा रहा था. सोचता, आखिर भाभीजी को किस तरह प्रमाण दूं कि मैं निवेदिता के आकर्षण से उन के घर नहीं आता. किस तरह से उन्हें बताऊं कि मैं इतना गिरा हुआ इनसान नहीं कि भाभीजी के निस्स्वार्थ प्रेम का ऐसा दुरुपयोग करूंगा. निवेदिता के आने से पहले भी मैं अकसर आता था और अब भी कभीकभी चला आता हूं. क्या निवेदिता के आने के बाद मेरे व्यवहार में कोई तबदीली हुई? क्या मैं ने भाभीजी को ऐसा सोचने का मौका दिया? मैं रास्ते भर अपने मन को टटोलता रहा. मैं ने कोई गलती की है? कहीं मेरी किसी हरकत ने अनजाने से ही कुछ ऐसा तो प्रकट नहीं किया जिस से भाभीजी के नारीमन के बारीक परदे पर कुछ झलक गया हो. ऐसा कब हुआ. कैसे हुआ. कुछ भी, किसी भी तरह समझ में नहीं आया.
‘‘घर आ कर मैं आंखें मूंद कर चारपाई पर लेट गया. पर चैन न मिला. मन का
क्लेश बढ़ता ही गया. आखिर मैं ने स्वयं ही फैसला किया, भाभीजी का संदेह दूर करना ही होगा, इस के लिए चाहे कुछ भी करना पड़े.
‘‘उस के बाद से भाभीजी के घर जाने के लिए अपनेआप को तैयार करने में बड़ा असमर्थ पाने लगा, पर भाभीजी के निस्स्वार्थ प्यार के बारे में सोचसोच कर मेरा दिल भरभर जाता. मगर यह भी डर था कि अचानक जाना बंद करने से कहीं सब को शक न हो जाए. इसलिए बजाय एकदम जाना बंद करने के यह सोचा करता कि क्या किया जाए. तब सहसा मेरे दिमाग में यह बात आईर् कि क्यों न निवेदिता के लिए कोई अच्छा सा वर ढूंढ़ दूं. इस से अच्छा और कोई नेक काम नहीं हो सकता. सच, मैं इतने समय तक बेकार ही परेशान रहा.
‘‘इसी बीच अचानक एक दिनकनाटप्लेस में रोमित मिल गया. उस ने एमएससी मेरे साथ ही की थी. पर पढ़ने में तेज होने के कारण आई.
एएस प्रतियोगिता में चुन लिए जाने से राजपत्रित अधिकारी हो गया था. बातोंबातों में जब पता चला कि रोमित अभी कुंआरा है तो खुशी से मेरा दिल उछल पड़ा.
‘‘मैं ने जिक्र छेड़ने में देर करना उचित नहीं समझ. शुरू में तो बात मजाक में उड़ गई, पर थोड़ी देर बाद रोमित इस मामले में गंभीर दिखाई दिया. दिल्ली से बाहर का जीवन, फिर अकेले में उस का दिल भी नहीं लगता था. मैं ने मौका अच्छा समझ और निवेदिता का जिक्र छेड़ दिया.
‘‘बात जब लड़की को देखने की आई तो रोमित बोला कि कैसी बात करते हो, अनिल? अगर लड़की तुम्हारी निगाहों में मेरे लायक है तो बस ठीक है. पर मेरी मां लड़की को बिना देखे नहीं मानेंगी.
‘‘मैं ने कहा कि बेशक… बेशक, मुझे इस में क्या परेशानी हो सकती है? जब चाहो माताजी को ले कर आ जाओ.
‘‘वह बोला कि ठीक है, अनिल. मैं अगले चक्कर में कुछ दिनों की छुट्टी ले कर दिल्ली आऊंगा.
‘‘रोमित ने इस से ज्यादा कुछ नहीं कहा था, पर उस के चेहरे के भाव ने मुझे बहुत कुछ समझ दिया था.
‘‘उसी रात तो मैं ने भाभीजी को अकेले में रोमित के विषय में सब कुछ बता दिया. भाभीजी हैरान करती हुई बोलीं कि सच कह रहे हो, अनिल?
‘‘मैं ने कहा कि भाभीजी मैं ने आप से कभी मजाक किया है?
‘‘भाभीजी कुछ देर मेरे चेहरे को एकटक देखने के बाद बोलीं कि ठीक है.
‘‘उन की ओर से मुझे जितनी खुशी की आशा थी उतनी मैं उन के चेहरे पर न देख सका. पर निवेदिता की मां खुशी से फूली न समाईं और मुझे कंधे से पकड़ कर बोलीं कि अनिल, तुम्हें यह रिश्ता शीघ्र ही तय कर देना चाहिए. ऐसे वर बारबार नहीं मिलते.
‘‘कुछ ही दिनों में निवेदिता की शादी तय हो गई. निवेदिता की मां सभी नातेरिश्तेदारों में मेरी तारीफ के पुल बांधा करतीं और उत्तर में वे सब भी मेरी प्रशंसा करने लगे थे. मुझ जैसे बुद्धू व्यक्ति से इतना बड़ा नेक काम भी हो सकता है, किसी को ऐसी आशा तक नहीं थी.