लेखिका- अंजली श्रीवास्तव
यदाकदाएफबी पर बात होती थी, आज अचानक स्नेहा का मैसेंजर पर कौल बज उठी.
‘‘गुड मौर्निंग...’’
वही पहले वाली आवाज, वही नटखटपन बातों में, बेबाकी से हंस कर बोलना, ‘‘और बताओ मेरी जान... सबकुछ ठीक है न. मेरे लिए तो वही पहले वाले माधव हो.’’
माधव अपने चिरपरिचित अंदाज में
बोला, ‘‘हां बौस सब ठीक है. जैसे आप छोड़
कर गईं थी वैसा ही हूं. कालेज के पढ़ाई के
बाद आज आप से इस तरह बात हो रही है. वे क्या दिन थे जब हमारी आप से रोज मुलाकातें होती थीं...’’
स्नेहा बात को काटती हुई बीच में ही बोल पड़ीं, ‘‘अगर आप कहें तो मचान रैस्टोरैंट में मिलते हैं. शाम 4 बजे, मैं इंतजार करूंगी.’’
‘‘हां डियर, आऊंगा,’’ माधव बोला.
स्नेहा हमेशा की तरह समय की पाबंद थी, जो 10 मिनट पहले ही पहुंच गई.
थोड़ी देर में माधव भी आ गया. वही पहली की तरह हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए हुए स्नेहा के सामने जा कर खड़ा हो गया.
स्नेहा पीले रंग की साड़ी में खूब फब रही थी. खुले बाल स्ट्रेट किए हुए और भी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे.
माथे पर एक छोटी सी लाल रंग की बिंदी, आंखों में काजल लगा हुआ. माधव उसे देखता ही रह गया. कुछ न बदली थी वह. बस होंठों पर पहले से ज्यादा लिपस्टिक लगी थी जिस से वह बेहद खूबसूरत लग रही थी.
‘‘अरे जनाब. ऐसे क्या देख रहे हैं? आइए करीब बैठिए,’’ स्नेहा, माधव का हाथ पकड़ कर खींचती हुई बोली.
मगर माधव उस के इस तरह के छूने से पसीने से सराबोर हो गया. क्षणभर के लिए स्तब्ध मानो उसे सांप सूंघ गया हो.
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