लेखिका- सुरभि शर्मा

मुझे पूरे चौबीस घंटे हो चुके थे उस दुकान में छिपे हुए. सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था. इतनी शांति थी कि हवा की आवाज साफ सुनाई दे रही थी जो आम दिनों में दोपहर के इस वक्त सुनाई देना नामुमकिन था. बस, बीचबीच में दंगाइयों का शोर आता था और जैसेजैसे आवाजें पास आती जातीं, दिल की धड़कनें बढ़ने लगतीं और लगता जीवन का अंत अब बस करीब ही है. फिर, वे आवाजें दुकान के सामने से होते हुए दूर निकल जातीं.

हमारा शहर हमेशा ऐसा नहीं था या यह कहें कि कभी ऐसा नहीं था. पर चौबीस घंटे पहले हुई छोटी सी बात यह विकराल रूप ले लेगी, यह तो सोच से भी परे है.

मैं अपने घर से दुकान से सामान लाने के लिए निकली थी जो सिर्फ 5 मिनट की दूरी पर है. दुकान पहुंचने पर पता चला कि मेन मार्केट में झगड़ा हुआ है और एक लड़के की मौत हो गई है. पूरी बात पता करने पर यह बात सामने आई कि 2 लड़कों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो रहा था. धीरेधीरे बात इतनी बढ़ गई कि हाथापाई होने लगी. भीड़ इकट्ठी होने लगी और 2 गुटों में बंट गई. उन्हीं में से एक लड़का इतना लहूलुहान हुआ कि उस की मौके पर ही मौत हो गई. उस लड़के को मरा देख दूसरे गुट के लोग वहां से भाग निकले. तब से ही दंगाई उन सब को ढूंढ़ रहे हैं और बीच में आने वाले हर किसी को मार रहे हैं.

मैं दुकान पर खड़ी बातें सुन ही रही थी कि कहीं से शोर सुनाई दिया, जिस की आवाज बढ़ती जा रही थी. दुकानदार को लगा कि दंगाई हैं. उस ने बाहर खड़े लोगों को दुकान के अंदर ले कर शटर बंद कर दिया. मैं भी तेजी से दुकान के अंदर घुस गई और तब से इसी इंतजार में हूं कि यह सब कब खत्म होगा और हम सब अपने घर जा सकेंगे.

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