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जल्दीजल्दी वह भीड़ से निकल कर मेले के बाहर बरगद के पेड़ की आड़ में खड़ी हो गई और अपने रूमाल से चेहरा छिपा कर रो पड़ी. 2 मिनट बाद रूमाल हटा कर उसी से अपना चेहरा साफ करने लगी. पूरा चेहरा आंसुओं से भीग चुका था. दिल दर्द से भरा हुआ था. किसी तरह से उस ने अपने ऊपर काबू किया और जैसे ही वह मुड़ी, सामने किशोर मुसकराता हुआ खड़ा था. अब भला पुष्पा अपने ऊपर काबू कैसे रख पाती. किशोर के प्रेम को पूरे एक साल तक उस ने दिल में ही दबा कर रखा था. इस समय वह अपने को रोक नहीं पाई.

किशोर को सामने पा वह सब भूल कर उस के सीने से लग कर फिर से सिसक पड़ी. ‘ओ किशोर, कहां थे अभी तक, कब से तुम्हें ढूंढ़ रही थी? अब तो निराश हो गई थी. तुम से मिलने की आशा भी छोड़ चुकी थी,’ रोते हुए पुष्पा बोली.

‘मैं भी सुबह से तुम्हें मेले में ढूंढ़ रहा हूं. मुझे लगा तुम सब भूल गई हो और मैं निराश हो कर मेले से बाहर निकल आया. यहां आ कर मैं ने तुम्हें रोते हुए देखा तो सब समझ गया और तुम्हारे पीछे खड़ा हो गया.’

किशोर की बांहें भी पुष्पा की पीठ पर कस गईर् थीं. थोड़ी देर तक दोनों दीनदुनिया से बेखबर एकदूसरे की बांहों में समाए हुए एकदूसरे की धड़कनें गिनते रहे. बरगद की शाखों पर बैठे पक्षी उन के प्रेम के साक्षी थे. उन के सामने के वृक्ष पर पत्तों के झुरमुट से एक कबूतर का जोड़ा आपस में लिपटे हुए उन्हीं दोनों को निहार रहा था. उन को मेले से कुछ लेनादेना नहीं था. दोनों वहीं बैठ गए और एकदूसरे के बारे में जानने की कोशिश करने लगे.

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