उस ने रंगीन कागज के भीतर से ताजमहल की अनुकृति को झांकते पाया. उस के चेहरे पर रक्ताभा की एक परत सी छा गई. यह वह क्षण था जब वे दोनों आनंद के अतिरेक में आलिंगनबद्ध हो गए थे. एकदूसरे में समा गए थे.
न जाने कितनी देर तक वे उसी अवस्था में एकदूसरे के दिल की धड़कनों को सुन रहे थे. इस एक क्षण में उन्होंने मानो एक युग जी लिया था, प्यार का युग तो अनंतकाल से प्रेमीप्रेमिका को मिलने के लिए उकसाता रहता है.
अपने घर आ कर प्रमोद ने रचना का दिया हुआ उपन्यास खोल कर देखा. उस में एक पत्र रखा मिला. रचना ने बड़े सुंदर और सुडौल अक्षरों में लिखा था, ‘प्रमोद, मैं तुम्हें हृदय की गहराइयों में पाती हूं. यह प्यार रूपी अमृत का प्याला मैं रोज पीती हूं, पर प्यासी की प्यासी रह जाती हूं. यह तृप्तता आखिर क्या है? कैसी है? कब पूरी होगी. इस का उत्तर मैं किस से पूछूं. यदि आप को पता हो तो मुझे जरूर बताएं...रचना...’
प्रमोद को मानो दीवानगी का दौरा पड़ गया. उसे लगा कि ऐसा पत्र शायद ही किसी प्रेमिका ने अपने प्रेमी को लिखा होगा. वह संसार का सब से अच्छा प्रेमी है, जिस की प्रेमिका इतने उदात्त विचारों की है. वह एक अत्यंत सुंदरी और विदुषी प्रेमिका का प्रेमी है. इस मामले में वह संसार का सब से धनी प्रेमी है.
उसे नित्य नईनई अनुभूतियां होतीं. वह प्यार के खुमार में सदैव डूबा रहता. कभी खुद को चांद तो रचना को चांदनी कहता. कभी रचना हीर होती तो वह रांझा बन जाता. कभी वह किसी फिल्म का हीरो, तो रचना उस की हीरोइन. वह प्यार के अनंत सागर में डुबकियां लगाता लेकिन इस पर भी उस के मन को चैन न आता.
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