एक शाम मानव ने रमया को बुला भेजा. रमया ने अपने ओवरकोट की जेब से चाबी निकाली और मानव के फ्लैट का दरवाजा खोला, सामने कोने में मानव सोफे पर धंसा हुआ था.
‘‘सर, आप ने याद किया?’’
‘‘आओ रमया, नए स्टूडैंट्स की मैडिकल हिस्ट्री अस्पताल को भेज देना और उन से कहना, डोनर्स की लिस्ट भी अपडेट कर लें.’’
‘‘आप कुछ परेशान लग रहे हैं, सर?’’
‘‘रमया, तुम्हें याद है मैं ने एक बार तुम्हें अपनी कहानी सुनाई थी, उस कहानी में जो लड़की थी...’’
‘‘वो वसुधा है और एक बार फिर उस बेचारी के बुझे हुए अरमानों ने पंख फैलाए हैं.’’
‘‘ओह, तो तुम सब जानती हो. मगर यह गलत है, मुझे उसे रोकना है. मैं नहीं चाहता कि उस का परिवार टूटे. लेकिन मैं यह समझ नहीं पा रहा कि कैसे उसे रोकूं. मुझे डर है कि कहीं वह अपने पति से वो सब न कह दे जो उसे नहीं कहना चाहिए. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि यह कैसे मुमकिन हो पाएगा. लगता है वसुधा बहुत दूर निकल गई है, जहां से उसे उस का परिवार, परिवार वालों की खुशियां, कुछ भी नजर नहीं आ रहीं.’’
‘‘सर, आप जो चाहते हैं वह तभी हो पाएगा जब आप उस की जिंदगी से दूर चले जाएं, ओझल हो जाएं उस की जिंदगी से आप.’’
‘‘तुम ठीक कहती हो रमया. मुझे उस की जिंदगी से दूर ही नहीं, बहुत दूर जाना पड़ेगा.’’
‘‘सर, अगर आप को मेरी कहीं भी कोई भी जरूरत हो तो मुझे बेझिझक कहिएगा. मैं अगर आप की मदद कर पाई तो मुझे बेहद खुशी महसूस होगी.’’