‘‘अब सिर दर्द कैसा है आप का?’’ थोड़ी देर बड़े प्रेम से सिर दबाने के बाद ज्योति ने प्रकाश से पूछा.
‘‘तुम्हारे हाथों में जादू है, ज्योति,’’ प्रकाश उस की आंखों में आंखें डाल कर मुसकराया, ‘‘दर्द उड़नछू हो गया. अब मैं खुद को बिलकुल तरोताजा महसूस कर रहा हूं, पर यह कमाल हर बार तुम कैसे कर देती हो?’’ प्रकाश ने पूछा.
‘‘कौन सा कमाल?’’ ज्योति बोली.
‘‘मेरे थकेहारे शरीर और दिलोदिमाग में जीवन के प्रति उमंग और उत्साह भरने का कमाल,’’ प्रकाश ने जवाब दिया.
‘‘मैं कोई कमाल नहीं करती जनाब, उलटा मैं जब आप के साथ होती हूं तब मेरी जीवन बगिया के फूल खिल उठते हैं,’’ ज्योति ने कहा.
‘‘और जरूर उन्हीं खूबसूरत फूलों की शानदार महक मु झे यों मस्त और तरोताजा कर जाती है, डार्लिंग,’’ अपनी गरदन घुमा कर प्रकाश ने एक छोटा चुंबन ज्योति के गुलाबी होंठों पर अंकित कर दिया.
‘‘बड़ी जल्दी शरारत सू झने लगी है, साहब,’’ कहते हुए ज्योति के गोरे गाल शर्म से गुलाबी हो उठे.
‘‘तुम कितनी सुंदर हो,’’ अपना मुंह उस के कान के पास ला कर प्रकाश ने कोमल स्वर में कहा, ‘‘एक बात मु झे अभी भी बहुत हैरान कर जाती है.’’
‘‘कौन सी बात?’’ ज्योति ने पूछा.
‘‘हमारी जानपहचान अब 5 साल पुरानी हो गई है. सैकड़ों बार मैं तुम्हें प्रेम कर चुका हूं. पर अब भी मेरा छोटा सा चुंबन तुम्हारे रोमरोम को पुलकित कर जाता है. यही बात मु झे हैरान करती है.’’
‘‘है न कमाल की बात. अब जवाब दो कि जादूगर मैं हुई कि आप?’’ ज्योति शरारती अदा से मुसकराई तो प्रकाश ने इस बार एक लंबा चुंबन उस के होंठों पर अंकित कर दिया.