प्रकाश ने जब काफी देर तक उसे कोई जवाब नहीं दिया तो निशा क्रोधित हो कर बोली, ‘‘ऐसे चुप्पी मारने से काम नहीं चलेगा, यह आप सम झ लीजिए कि जवान होता बेटा कालेज जाने की तैयारी कर रहा है. लड़की जवान हो गई है तुम्हारी और तुम्हें खुद को इश्क करने से फुरसत नहीं है. क्यों अपने और हम सब के चेहरों पर कालिख पुतवाने का इंतजाम कर रहे हैं आप?’’
‘‘तुम बेकार की बातें कर के अपना और मेरा दिमाग खराब मत करो, निशा. ज्योति के कारण बच्चों की या तुम्हारी जिंदगी पर कुछ भी असर नहीं पड़ने वाला है. तुम लोगों से छीन कर मैं उसे कुछ भी नहीं दे रहा हूं, फिर तुम उस से शिकायत क्यों रखती हो?’’
‘‘क्योंकि जिस समाज में हम जी रहे हैं वह समाज ऐसे नाजायज संबंधों पर उंगलियां उठाता है. लोग हम पर हंसें, मेरा मजाक उड़ाएं, तुम्हारे इश्क के कारण हम महल्ले में सिर झुका कर चलने को मजबूर हो जाएं, ऐसी हालत मैं कभी सहन नहीं कर सकती.’’
‘‘महल्ले वाले ज्योति के वजूद से परिचित ही नहीं हैं. उन्हें बीच में ला कर बेकार शोरशराबा मत करो. ज्योति के पास कुछ वक्त गुजार कर मु झे सुकून मिलता है. मेरे सुख की, मेरी खुशियों की चिंता तुम्हें कभी नहीं रही. फिर ज्योति और मेरे प्रेम संबंध को ले कर शिकायत क्यों करती हो तुम?’’ प्रकाश का स्वर ऊंचा हो उठा.
‘‘प्रेम संबंध… रखैल के साथ बने संबंध को प्रेम का नाम नहीं दिया जाता. रखैलें पुरुषों की जरूरतें पूरी करती हैं. तुम ने उसे रहने को फ्लैट ले कर दिया है. उस पर अनापशनाप पैसा खर्च करते हो. बदले में वह चुडै़ल तुम्हारे सामने कपड़े उतार डालती है. अपनी वासना को प्रेम मत कहो और मैं इस संबंध का बिलकुल सही विरोध करती हूं, क्योंकि मैं समाज में इज्जत से सिर उठा कर रहना चाहती हूं,’’ निशा की आवाज गुस्से से कांप रही थी.
‘‘और मु झे इस मामले में समाज की कोई चिंता नहीं रही है. ज्योति से मिलनाजुलना मैं किसी कीमत पर बंद नहीं करूंगा,’’ प्रकाश ने कहा.
‘‘आप की तो मति भ्रष्ट हो गई है. मेरी सम झ में कभी नहीं आया कि तुम क्यों उस के पीछे पागल हुए जा रहे हो. उस के साधारण नैननक्श हैं. वह बैंक में साधारण सी नौकरी करती है. व्यक्तित्व में उस के कोई जान नहीं है. कौन से सुरखाब के पर लगे दिखाई देते हैं तुम्हें उस में, जरा मु झे भी तो बताओ?’’ निशा ने चुभते लहजे में कहा.
‘‘उस का दिल सोने जैसा है,’’ प्रकाश भावावेश से भर उठा, ‘‘मु झ पर जान छिड़कती है वह. प्रेम बांटने की कला आती है उसे. पूरी तरह से समर्पित है वह मेरी सुखशांति के लिए. मु झे उस से वह सब मिला है जो कभी मैं ने अपनी पत्नी से पाने की कामना की थी और जो कभी मु झे तुम से नहीं मिला.’’
‘‘मु झ में झूठेसच्चे दोष निकाल कर तुम अपनी चरित्रहीनता को सही ठहराने की कोशिश मत करो. तुम ने कभी मु झे दिल से प्रेम किया ही नहीं. फिर कैसे उम्मीद करते हो कि मैं तुम्हारे पैर धोधो कर पीती रहती? आदमी संसार में जैसा बोता है वैसा ही काटता है,’’ निशा ने कड़वे स्वर में जवाब दिया.
‘‘तब तो तुम ने भी कुछ जरूर गलत बोया होगा जो आज मैं तुम से दूर हो गया हूं. तुम गोरी हो, सुंदर हो, स्कूल की पिं्रसिपल हो, शानदार व्यक्तित्व है तुम्हारा लेकिन तुम्हारा दिल मेरे प्रेम में नहीं धड़कता. इस घर में सुखसुविधा की हर चीज है. यहां रसोई में बढि़या खाना बनता है. लोग हमारी खुशहाली देख कर शायद हम से कुढ़ते होंगे, लेकिन मु झे इस घर में कभी सुखशांति नहीं मिली. ज्योति, सिर्फ सादी चाय भी मु झे अगर पिलाती है, तो मेरा मन तृप्त हो जाता है. वह कभी मु झ से ऊंचे स्वर में नहीं बोली. मु झ से ज्यादा महत्त्वपूर्ण उस के जीवन में न पैसा है, न कैरियर और न ही सामाजिक प्रतिष्ठा. उस के असीम प्रेम ने, उस के समर्पण ने और उस के कभी मु झ से कुछ न मांगने के गुण ने लगाए हैं उस में सुरखाब के पर,’’ प्रकाश ने अपनी बात समाप्त कर के निशा की तरफ से मुंह फेर लिया.
निशा ने नफरतभरे स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारे सिर से उस कलमुंही के प्यार का भूत उतारने के मेरे पास और भी तरीके हैं. कभी यह उम्मीद न करना कि मैं तुम्हें तलाक दे कर तुम्हें आजाद कर दूंगी. अपनी रखैल की मांग में सिंदूर भरने की खुशी तुम्हें कभी नसीब नहीं होगी.’’
‘‘अपनी इस मजबूरी को मैं सम झता हूं और इसी कारण खून के आंसू रोता हूं. ज्योति को मांग का सिंदूर नहीं, बल्कि मेरा प्रेम चाहिए. तुम न उसे कभी सम झ सकोगी, न कभी उस की बराबरी कर पाओगी.’’
इस वार्त्तालाप के बाद उन दोनों के बीच बड़ी बो िझल खामोशी छा गई थी. प्रकाश उठ कर ज्योति के पास चल दिया.
ज्योति चाय का कप प्रकाश के हाथ में पकड़ाते हुए भावुक लहजे में बोली, ‘‘जब से आए हैं, तब से खोएखोए नजर आ रहे हैं आप? मु झे बताइए, कौन सी उल झन आप के मन को परेशान कर रही है?’’
कुछ पलों की खामोशी के बाद प्रकाश ने संजीदा लहजे में जवाब दिया, ‘‘परसों मेरे बेटे का जन्मदिन है. निशा ने मु झ से कोई सलाह किए बिना उस दिन अपने और मेरे मातापिता व भाईबहनों को पार्टी देने का फैसला किया है.’’
‘‘इस में इतना चिंतित और परेशान होने वाली क्या बात है?’’ ज्योति बोली. ‘‘पिछले कुछ दिनों से निशा का मूड बड़ा अजीब सा हो रहा है.’’ ‘‘अजीब सा? इस का क्या मतलब हुआ?’’
‘‘मन ही मन मु झ से बेहद नाराज होते हुए भी वह बड़ी खामोश रहने लगी है. मु झे साफ एहसास हो रहा है कि मु झे तंग करने के लिए उस का दिमाग किसी योजना को जन्म दे चुका है. जन्मदिन वाली पार्टी में वह जरूर कुछ गुल खिलाने जा रही है,’’ प्रकाश बोला.
‘‘कोई गुल नहीं खिलेगा. आप बेकार की बातें सोच कर खुद को परेशान कर रहे हैं,’’ ज्योति की मुसकराहट, प्रकाश की आंखों में छाई हुई चिंता के भावों को कुछ ही कम कर पाई.
‘‘तुम दोनों में कैसा जमीनआसमान का अंतर है, ज्योति. निशा की शिकायतें कभी खत्म नहीं होतीं. मेरे लिए उस के दिल में न प्यार है न सम्मान. वह मेरा जरूर कुछ अहित करेगी, यह विश्वास दिनोंदिन मेरे दिल में मजबूत होता जाता है,’’ प्रकाश बोला.
‘‘इस शक को आप अपने दिल से निकाल फेंकिए. आप दोनों की चाहे कितनी ही न बनती हो, पर वे आप का बुरा नहीं सोच सकतीं. अगर हालत इतने बिगड़े होते तो वे आप के साथ रहना मंजूर न कर के आप को तलाक दे देतीं,’’ ज्योति ने प्रकाश को कोमल स्वर में सम झाया.
‘‘वह मु झे तलाक नहीं देती, क्योंकि उस से मेरी तलाक देने से पैदा होने वाली खुशी नहीं देखी जाएगी. तलाक उस की हार का सुबूत होगा और उस जैसी घमंडी औरत के लिए ‘हार’ शब्द मौत से बदतर माने रखता है. तुम जैसी सीधीसच्ची स्त्री निशा जैसी स्त्री के उल झे मन को कभी नहीं सम झ सकती,’’ प्रकाश के स्वर में अपनी पत्नी के लिए बड़ी नफरत भरी थी.