घंटी बजी तो दौड़ कर उस ने दरवाजा खोला. सामने लगभग 20 साल का एक नवयुवक खड़ा था.
उस ने वहीं खड़ेखडे़ दरवाजे के बाहर से ही अपना परिचय दिया,"जी मैं मदन हूं, पवनजी का बेटा. पापा ने आप को संदेश भेजा होगा..."
"आओ भीतर आओ," कह कर उस ने दरवाजे पर जगह बना दी.
मदन संकोच करता हुआ भीतर आ गया,"जी मैं आज ही यहां आया हूं. आप को तकरीबन 10 साल पहले देखा था, तब मैं स्कूल में पढ़ रहा था.
"आप की शादी का कार्ड हमारे घर आया था, तब मेरे हाईस्कूल के ऐग्जाम थे इसलिए आप के विवाह में शामिल नहीं हो सका था. मैं यहां कालेज की पढ़ाई के लिए आया हूं और यह लीजिए, पापा ने यह सामान आप के लिए भेजा है,"कह कर उस ने एक बैग दे दिया. बैग में बगीचे के ताजा फल, सब्जियां, अचार वगैरह थे.
उस ने खूब खुशी से आभार जता कर बैग ले लिया और उस को चायनाश्ता वगैरह सर्व किया.
इसी बीच उस ने जोर दे कर कहा,"तुम यहीं पर रहो. मैं तुम्हारे पापा को कह चुकी हूं कि सबकुछ तैयार मिल जाएगा. तुम अपनी पढ़ाईलिखाई पर ध्यान देना."
मदन यह सुन कर बस एक बार में ही मान गया मानों इसी बात को सुनने के लिए बैचेन था. वह उठा और जल्दी से अपना सब सामान, जो उस ने बाहर बरामदे मे रखा था भीतर ले आया.
उस दिन मदन अपना कमरा ठीक करता रहा. कुछ ही देर बाद वह वहां अपनापन महसूस करने लगा था मगर उस का दिल यहां इतनी जल्दी लग जाएगा यह उस ने सोचा ही नहीं था.
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