‘‘आज नीरा बेटी ने पूरे डिवीजन में फर्स्ट आ कर अपने स्कूल का ही नहीं, गांव का नाम भी रोशन किया है,’’ मुखिया सत्यम चौधरी चौरसिया, मिडिल स्कूल के ग्राउंड में भाषण दे रहे थे. स्टेज पर मुखियाजी के साथ स्कूल के सभी टीचर, गांव के कुछ खास लोग और कुछ स्टूडेंट भी थे.
आज पहली बार चौरसिया मिडिल स्कूल से कोई लड़की फर्स्ट आई थी जिस कारण यहां के लड़केलड़कियों में खास उत्साह था.
मुखियाजी आगे बोले, ‘‘आजतक हमारे गांव की कोई भी लड़की हाईस्कूल तक नहीं पहुंची है. लेकिन इस बार सूरज सिंह की बेटी नीरा, इस रिकार्ड को तोड़ कर आगे पढ़ाई करेगी.’’ इस बार भी तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट उभरी.
लेकिन यह खुशी हमारे स्कूल के एक लड़के को नहीं भा रही थी. वह था निर्मोही. निर्मोही मेरा चचेरा भाई था. वह स्वभाव से जिद्दी और पढ़ने में औसत था. उसे नीरा का टौप करना चुभ गया था. हालांकि वह उस का दीवाना था. निर्मोही के दिल में जलन थी कि कहीं नीरा हाईस्कूल की हीरोइन बन कर उसे भुला न दे.
आज गांव में हर जगह सूरज बाबू की बेटी नीरा की ही चर्चा चल रही थी. उस ने किसी फिल्म की हीरोइन की तरह किशोरों के दिल पर कब्जा कर लिया था. आज हरेक मां अपनी बेटी को नीरा जैसी बनने के लिए उत्साहित कर रही थी. अगर कहा जाए कि नीरा सब लड़कियों की आदर्श बन चुकी थी, तो शायद गलत न होगा.
वक्त धीरेधीरे मौसम को अपने रंगों में रंगने लगा. चारों तरफ का वातावरण इतना गरम था कि लोग पसीने से तरबतर हो रहे थे. तभी छुट्टी की घंटी बजी. सभी लड़के दौड़तेभागते बाहर आने लगे. कुछ देर बाद लड़कियों की टोली निकली, उस के ठीक बीचोंबीच स्कूल की हीरोइन नीरा बल खा कर चल रही थी. वह ऐसी लग रही थी, जैसे तारों में चांद. नीरा जैसे ही स्कूल से बाहर निकली, निराला चौधरी को देख कर खिल उठी.
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