“कामवाली तो है आंटी पर खाना मैं खुद ही बनाती हूं. मेरी मां ने मुझे सिखाया है कि जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन. अपने हाथों से बनाए खाने की बात ही अलग होती है. इस में सेहत और स्वाद के साथ प्यार जो मिला होता है”.
उस की बात सुन कर मां मुस्कुरा उठीं. तुम्हारी मां ने तो बहुत अच्छी बातें सिखाई है. जरा बताओ और क्या सिखाया है उन्होंने?”
“कभी किसी का दिल न दुखाओ, जितना हो सके दूसरों की मदद करो. आगे बढ़ने के लिए दूसरे की मदद पर नहीं बल्कि अपनी काबिलियत और परिश्रम पर विश्वास करो. प्यार से सब का दिल जीतो। ”
प्रिया कहे जा रही थी और मां गौर से उसे सुन रही थीं. उन्हें प्रिया की बातें बहुत पसंद आ रही थी. इसी बीच मां बाथरूम के लिए उठी कि अचानक झटका लगने से डगमगा गई और किनारे रखे ब्रीफ़केस के कोने से पैर में चोट लग गई. चोट ज्यादा नहीं थी मगर खून निकल आया. उस ने मां को बैठाया और अपने बैग में रखे फर्स्ट ऐड बॉक्स को खोलने लगी. मां ने आश्चर्य से पूछा ,”तुम हमेशा यह डब्बा ले कर निकलती हो ?”
“हां आंटी, चोट मुझे लगे या दूसरों को मुझे अच्छा नहीं लगता। तुरंत मरहम लगा दूं तो दिल को सुकून मिल जाता है. वैसे भी जिंदगी में हमेशा किसी भी तरह की परेशानी से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए।”
कहते हुए प्रिया ने तुरंत चोट वाली जगह पर मरहम लगा दिया और इस बहाने उस ने मां के पैर भी छू लिए. मां ने प्यार से उस का गाल थपथपाया और पूछने लगी, “तुम्हारे पापा क्या करते हैं? तुम्हारी मां हाउसवाइफ हैं या जॉब करती हैं?”
प्रिया ने बिना किसी लागलपेट के साफ़ स्वर में जवाब दिया,” मेरे पापा सुनार हैं और वे ज्वेलरी शॉप में काम करते हैं. मेरी मां हाउसवाइफ हैं. हम 2 भाईबहन हैं. छोटा भाई इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है और मैं यहां एक एमएनसी कंपनी में काम करती हूं. मेरी सैलरी अभी 80 हजार प्रति महीने है और उम्मीद करती हूं कि कुछ सालों में अच्छा मुकाम हासिल कर लूंगी।”
“बहुत खूब!” मां के मुंह से निकला। उन की प्रशंसा भरी नजरें प्रिया पर टिकी हुई थीं, “बेटा और क्या शौक है तुम्हारे?”
“मेरी मम्मी बहुत अच्छी डांसर है. उन्होंने मुझे भी इस कला में निपुण कराया है. डांस के अलावा मुझे कविताएं लिखने और फोटोग्राफी करने का भी शौक है. तरहतरह के डिशेज तैयार करना और सब को खिला कर वाहवाही लूटना भी बहुत पसंद है.”
ट्रेन अपनी गति से आगे बढ़ रही थी और इधर प्रिया और मां की बातें भी बिना किसी रूकावट चली जा रही थी.
कोटा और रतलाम स्टेशनों के बीच जब कि ट्रेन 140 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज रफ़्तार से चल रही थी अचानक एक झटके से रुक गई. दूरदूर तक जंगली सूना इलाका था. आसपास न तो कोई आवागमन के साधन थे और न खानेपीने की चीजें थीं. ट्रेन करीब 8-9 घंटे वहीं खड़ी रहनी थी. दरअसल पटरी में क्रैक की वजह से ट्रेन के आगे वाला डब्बा उलट गया था. यात्री घायल तो नहीं हुए मगर अफरातफरी जरूर मच गई थी. क्रैन आने और पलटे हुए डब्बे को हटाने में काफी समय लगना था. इधर प्रिया खुश हो रही थी कि इसी बहाने उसे मां के साथ बिताने को ज्यादा वक्त मिल जाएगा.
एक्सीडेंट 11 बजे रात में हुआ था और अब सुबह हो चुकी थी. यह इलाका ऐसा था कि दूरदूर तक चायपानी या कचौड़ीपकौड़ी बेचने वाला तक नजर नहीं आ रहा था. ट्रेन के पैंट्री कार में भी अब खाने की चीजें खत्म हो चुकी थी. 12 बज चुके थे. मां सोच रही थी कि चाय का इंतजाम हो जाता तो चैन आता. तब तक प्रिया पैंट्री कार से गर्म पानी ले आई. अपने पास रखी टीबैग,चीनी और मिल्क पाउडर से उस ने फटाफट गर्मगर्म चाय तैयार की और फिर टिफिन बॉक्स निकाल कर उस में से दाल की कचौड़ी और मठरी आदि कागज़ के प्लेट में रख कर नाश्ता सजा दिया। टिफिन बॉक्स निकालते समय मां ने गौर किया था कि प्रिया के बैग में डियो के अलावा भी कोई स्प्रे है.
“यह क्या है प्रिया ” मां ने उत्सुकता से पूछा तो प्रिया बोली,” आंटी यह पेपर स्प्रे है ताकि किसी बदमाश से सामना हो जाए तो उस के गलत इरादों को कभी सफल न होने दूँ. सिर्फ यही नहीं अपने बचाव के लिए मैं हमेशा एक चाकू भी रखती हूं। मैं खुद कराटे में ब्लैक बेल्ट होल्डर हूं. इसलिए खुद की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखती हूं.”
“बहुत अच्छे ! मां की खुशी चेहरे पर झलक रही थी. अच्छा प्रिया यह बताओ कि तुम अपनी सैलरी का क्या करती हो? खुद तुम्हारे खर्चे भी काफी होंगे आखिर अकेली रहती हो मेट्रो सिटी में और फिर ऑफिस में प्रेजेंटेबल दिखना भी जरूरी होता है. आधी सैलरी तो उसी में चली जाती होगी।”
“अरे नहीं आंटी। ऐसा कुछ नहीं है. मैं अपनी सैलरी के चार हिस्से करती हूं। दो हिस्से यानी 40 हजार भाई की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पापा को देती हूं. एक हिस्सा खुद पर खर्च करती हूं और बाकी के एक हिस्से से फ्लैट का किराया देने के साथ कुछ पैसे सोशल वर्क में लगाती हूं.”
“सोशल वर्क? ” मां ने हैरानी से पुछा.
“हां आंटी, जो भी मेरे पास अपनी समस्या ले कर आता है उस का समाधान ढूंढने का प्रयास करती हूँ. कोई नहीं आया तो खुद ही ग़रीबों के लिए कपड़े, खाना वगैरह खरीद कर उन्हें बाँट देती हूँ. ”
तब तक ट्रेन वापस से चल पड़ी। दोनों की बातें भी चल रही थीं. मां ने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा,”मेरा भी एक बेटा है स्वरूप. वह भी दिल्ली में जॉब करता है. ”
स्वरुप का नाम सुनते ही प्रिया की आँखों में स्वाभाविक सी चमक उभर आई. अचानक मां ने प्रिया की तरफ देखते हुए पुछा, “अच्छा यह बताओ बेटे कि आप का कोई ब्वॉयफ़्रेंड है या नहीं ? सचसच बताना.”
प्रिया ने 2 पल मां की आँखों में झाँका और फिर नजरें झुका कर बोली,”जी है.”
ओह ! मां थोड़ी गंभीर हो गईं,”बहुत प्यार करती हो उस से? शादी करने वाले हो तुम दोनों? ”
प्रिया को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे? इस तरह की बातों का हां में जवाब देने का अर्थ है खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना. फिर भी जवाब तो देना ही था. सो वह हंस कर बोली, “आंटी शादी करना तो चाहते हैं मगर क्या पता आगे क्या लिखा है। वैसे आप अपने बेटे के लिए कैसी लड़की ढूंढ रही हैं?”
” ईमानदार, बुद्धिमान और दिल से खूबसूरत.” मां ने जवाब दिया.