वह ठीक मेरे सामने से गुजरी. एकदम अचानक. मन में बेचैनी सी हुई. उस ने शायद देख लिया था मुझे. लेकिन अनदेखा कर के पल भर में बिलकुल नजदीक से निकल गई. जैसे अजनबी था मैं उस के लिए. कोई जानपहचान ही न हो. इस जन्म में मिले ही न हों कभी. मेरा कोई अधिकार भी न था उस पर कि आवाज दे कर रोक सकूं
और पूछूं कि कैसी हो? क्या चल रहा है आजकल? उस ने भी शायद बात करना नाजायज समझा हो. शायद इस तरह आमनेसामने से निकलने पर उसे लग रहा हो जैसे कोई गुनाह हो गया हो उस से. आज का दिन उस के लिए बुरा साबित हुआ हो. कहां से टकरा गए? क्यों, कैसे देख लिया?
यही वह लड़की थी. लड़की पहले थी अब तो वह महिला थी शादीशुदा. किसी की पत्नी. लेकिन जब मेरी पहली मुलाकात हुई थी उस समय वह लड़की थी. एक सुंदर लड़की, जो मुझ से मिलने के लिए बहाने तलाशती थी. मुझे देखे बिना उसे चैन न आता था.
हम कभी पार्क में, कभी रैस्टोरैंट में, कभी क्लब में तो कभी सिनेमाहाल में मिलते.
धीरेधीरे प्यार परवान चढ़ने लगा. प्रेम के पंख लगते ही हम उड़ने लगे. आसमान की सैर करने लगे. जब मौका मिलता मोबाइल पर बातें करते. एकदूसरे को एसएमएस करते रहते. दोनों दुनिया से बेखबर प्यार में डूबे रहते. बहुत थे उसे देखने वाले. बहुत थे उस के चाहने वाले. लेकिन वह केवल मेरे साथ थी, मेरी थी. वह मुझ से बेइंतहा प्रेम करती थी. देखता तो मैं उसे रहता था. लेकिन मेरे देखने से क्या होता है? ताजमहल को हजारों लोग देखते हैं. बात तो तब थी जब वह मुझे देखे.