इक्कीस वर्षीया पीहू ने जब कहा, ''मम्मी, प्लीज, डिस्टर्ब न करना, जरा एक कौल है,'' तो नंदिता को हंसी आ गई. खूब जानती है वह ऐसी कौल्स. वह भी तो गुजरी है उम्र के इस पड़ाव से.

''हां, ठीक है,'' इतना ही कह कर नंदिता ने पास में रखी पत्रिका उठा ली. पर मन आज अपनी इकलौती बेटी पीहू में अटका था.

पीहू सीए कर रही है. उस की इसी में रुचि थी तो उस ने और उस के पति विनय ने बेटी को अपना कैरियर चुनने की पूरी छूट दी थी. मुंबई में ही एसी बस से वह कालेज आयाजाया करती थी. पीहू और नंदिता की आपस की बौन्डिंग कमाल की थी. पीहू के कई लड़के, जो स्कूल से उस के दोस्त थे, के घर आनेजाने में कोई पाबंदी या मनाही नहीं रही. अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि नंदिता को यह लगा हो कि पीहू की किसी विशेष लड़के में कोई खास रुचि है. उलटा, लड़कों के जाने के बाद नंदिता ही पीहू को छेड़ती, 'पीहू, इन में से कौन तुम्हें सब से ज्यादा अच्छा लगता है?'

पीहू अपनी बड़ी बड़ी खूबसूरत आंखों से मां को घूरती और फिर हंस देती, ‘आप क्यों पूछ रही हैं, मुझे पता है. जासूसी करने की कोई जरूरत नहीं. इन में से कोई मुझे अलग से वैसे पसंद नहीं है जैसे आप सोच रही हैं.’

नंदिता हंस पड़ती और बेटी के गाल पर किस कर देती.

इधर 6 महीनों से पीहू में अगर कोई बदलाव आता तो यह कैसे संभव होता कि उस की दोस्त जैसी मां नंदिता से छिपा रहता. नंदिता ने नोट किया था कि अब पीहू घर आने के बाद अपने फोन से चिपकी रहती है. कहीं भी फोन इधरउधर नहीं रखती है. पहले उस का फोन कहीं भी पड़ा रहता था. वह अपने काम करते हुए कभी फोन नहीं देखती थी. अब तो मम्मी, पापा से बात करते हुए भी वह अकसर फोन चैक करती रहती. हां, यह नया बदलाव था.

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