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‘‘मारे गुस्से के मैं सारी रात जाग कर और क्या करती रही हूं? तेरे पति की दुम हमेशा के लिए सीधी करने की बड़ी सटीक योजना है मेरे पास.’’

‘‘मैं हर कदम पर तेरा साथ दूंगी, माधवी,’’ मैं ने भावुक हो कर अपनी सहेली को गले से लगा लिया.

दोपहर के भोजन के समय तक मैं ने माधवी की योजना पूरी तरह समझ ली. उसी दिन से उस पर अमल करने का हम ने पक्का निर्णय लिया.

मेरे साथ खाना खाने के बाद उस ने पहला कदम उठा भी लिया.

मेरे घर के फोन से माधवी ने सुमित के औफिस का नंबर मिला कर उस से बातें कीं. पिछली रात सुमित ने उसे अपना कार्ड दिया था.

तभी माधवी की आवाज सुन कर उसे सुखद हैरानी जरूर हुई पर किसी तरह का शक उस के दिमाग में बिलकुल पैदा नहीं हुआ.

‘‘अपनी आवाज सुना कर तुम ने मेरे दिन को बहुत खूबसूरत बना दिया है, माधवी. कहो, कैसे याद आ गई बंदे की?’’ सुमित की स्पीकर से आती आवाज मैं साफ सुन सकती थी.

‘‘मैं एक बार तुम्हें जरूर फोन करूं, तुम्हारी उसी जिद को पूरा कर रही हूं,’’ माधवी ने वार्त्तालाप सहज ढंग से बोलते हुए आरंभ किया.

‘‘थैंक्यू, डियर. अब मेरी एक और जिद पूरी कर दो.’’

‘‘कौन सी?’’

‘‘आज शाम चायकौफी पीने के लिए कहीं मिल लो. कल रात तुम से ज्यादा बातें नहीं हो सकीं. वह प्यास अभी भी बनी हुई है.’’

‘‘शादीशुदा इंसान को लड़कियों से दोस्ती करने के चक्कर में नहीं रहना चाहिए, जनाब.’’

‘‘यह तो कोई बात नहीं हुई. तुम से दोस्ती करने की मेरी इच्छा कैसे गलत है?’’

‘‘साधारण दोस्ती करने में कोई बुराई नहीं, पर तुम ने कल रात जो मेरा हाथ पकड़ा, क्या वह गलत नहीं था?’’

‘‘तुम्हें बुरा लगा?’’

‘‘मेरे सवाल का जवाब दो पहले.’’

‘‘सारे जवाब जब हम आमनेसामने बैठे होंगे, तब दूंगा. प्लीज, मिलो न आज शाम को.’’

‘‘मैं आधे घंटे से ज्यादा देर तक नहीं रुक सकूंगी.’’

‘‘ओह, थैंक्यू, थैंक्यू, थैंक्यू,’’ सुमित की आवाज की खुशी पहचान कर मेरा खून उबलने लगा था.

आने वाले दिनों में अपने पति के चालाक व्यवहार को देख कर मैं मन ही मन बड़ा अचंभा करती. मुझे माधवी रोज की रिपोर्ट न दे रही होती, तो मुझे सपने में भी शक न होता कि सुमित किसी और लड़की के चक्कर में फंस गए हैं. घर में देर से आने के उन के बहाने एक से बढ़ कर एक होते.

‘‘आज कार स्टार्ट ही नहीं हुई. मैकेनिक ने ठीक करने में पूरे 2 घंटे लगाए. आगे से ठीक टाइम पर सर्विसिंग कराया करूंगा,’’ माधवी के साथ पहली बार रेस्तरां में मिलने के बाद जनाब ने यह बहाना बनाया था.

छुट्टी के दिन वे माधवी को फिल्म दिखाने ले गए. उस दिन वे अस्पताल में दाखिल अपने एक सहयोगी को देखने जाने की बात कह कर घर से निकले थे.

जिस दिन 5 सितारा होटल में माधवी के साथ डिनर किया, उस रात वे औफिस में एक महत्त्वपूर्ण कौन्फ्रैंस में व्यस्त थे. अगले डिनर का बहाना, अपने दोस्त के बेटे की जन्मदिन पार्टी में जाने का था.

मुझे उन के माधवी के साथ बने हर कार्यक्रम की पहले से जानकारी होती थी. उन्हें बड़ी सहजता व सफाई के साथ झूठ बोलते देख मैं सचमुच दांतों तले उंगली दबा लेती. न कोई झिझक, न बेचैनी और न किसी तरह का अपराधबोध. अपने पतियों पर आंखें मूंद कर विश्वास करने वाली औरतें महामूर्ख होती हैं, उन का व्यवहार देख कर यह धारणा हर रोज मेरे मन में मजबूत होती जाती.

करीब 10 दिनों की मेलमुलाकातों के बाद सुमित को सबक सिखाने का समय आ ही गया.

उस दिन माधवी के पास सुबह 11 बजे सुमित का फोन आया तो उस ने मेरे पति को जानकारी दी, ‘‘आज शाम को नहीं मिल सकूंगी. एक समारोह में शामिल होना है.’’

सुमित के पूछने पर उस ने खुलासा किया, ‘‘मौसी के यहां गृहप्रवेश का फंक्शन हो रहा है. मम्मीपापा सुबह चले गए. मैं शाम को जाऊंगी.’’

‘‘तो क्या अभी घर में अकेली हो?’’

‘‘हां, और जी भर कर खूब सोऊंगी.’’

‘‘लंच मेरे साथ करो और बाकी समय सोना.’’

‘‘मैं बाहर निकलने के मूड में नहीं हूं, सुमित.’’

‘‘नो प्रौब्लम, डियर. मैं ‘पैक्ड लंच’ ले कर हाजिर होता हूं. ठीक 1 बजे पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘नहीं, तुम यहां मत…’’

‘‘बेकार में डरो मत. मैं आ रहा हूं. अच्छा बाय. बौस बुला रहे हैं. मैं 1 बजे मिलता हूं.’’

ऐसा प्रोग्राम बना कर धोखेबाज सुमित हमारे जाल में पूरी तरह फंस गए थे.

1 बजे से चंद मिनट पहले ही मैं ने उतावले सुमित को माधवी के फ्लैट में प्रवेश करते देखा. इस वक्त मैं माधवी के पड़ोसी योगेशजी के घर में उपस्थित थी. उन के यहां आधा घंटा पहले मुझे माधवी ही बैठा कर गई थी.

मैं ने गंभीरता का मुखौटा ओढ़ा, मन में गुस्से के भाव पैदा करने शुरू किए और सुमित के अंदर जाने के करीब 5 मिनट बाद माधवी के फ्लैट की घंटी बजाई.

दरवाजा माधवी ने खोला. किसी सज्जन पुरुष की तरह सुमित बड़े सलीके से सोफे पर बैठे नजर आए.

मुझे देख कर माधवी ने चौंकने का शानदार अभिनय किया, जबकि सुमित सचमुच यों उछले मानो उन्हें अचानक बिजली का झटका लगा हो.

‘‘अरे, सपना तुम? यों अचानक? सचमुच मजा आ गया तुम्हें देख कर,’’ माधवी ने बढि़या नाटक करते हुए मुझे गले से लगा लिया.

‘‘मुझे नहीं पता था कि तुम इस फ्लैट में रहती हो,’’ मैं ने उस की पकड़ से छूट कर शुष्क लहजे में जवाब दिया.

‘‘मुझ से नहीं तो फिर किस से मिलने आई हो?’’

‘‘तुम से ही. मेरा मतलब है कि मैं ‘माधवी’ नाम की लड़की से ही मिलने आई हूं, पर मुझे नहीं पता था कि वह लड़की मेरे साथ कालेज में पढ़ी मेरी सब से अच्छी सहेली निकलेगी.’’

मेरी नजरें सुमित की तरफ घूमीं. मेरी बात सुन कर सुमित का चेहरा पीला पड़ता चला गया.

‘‘ये मेरे अच्छे दोस्त सुमित हैं,’’ माधवी ने मुझे सुमित की तरफ देखता पा कर हमारा परिचय कराया.

‘‘प्रेमी को दोस्त मत कहो, माधवी,’’ मैं रूखे अंदाज में मुसकराई.

‘‘नहीं वैसा चक्कर नहीं है हमारे बीच. सुमित शादीशुदा हैं,’’ माधवी शरमाए से अंदाज में हंस पड़ी.

‘‘मुझे मालूम है.’’

‘‘कैसे?’’ उस ने माथे पर बल डाले.

‘‘तुम्हारे रोमियो की पत्नी तुम्हारे सामने ही खड़ी है. हैलो, पतिदेव,’’ मैं ने जहर बुझे अंदाज में सुमित को ‘हैलो’ कहा.

सुमित ने अपने को संभाला और नाराजगी भरे स्वर में मुझ से बोले, ‘‘माधवी और मुझ पर गलत शक करने की बेवकूफी मत करो, सपना. एक शादी में कुछ दिन पहले ही मेरी इन से जानपहचान हुई है. आज सुबह फोन करने से मालूम पड़ा कि इन की तबीयत खराब है. मैं तो सिर्फ हालचाल पूछने आया हूं.’’

‘‘झूठ मत बोलिए,’’ मैं फौरन गुस्से से फट पड़ी, ‘‘मेरे ऐसे शुभचिंतक हैं आप के औफिस में जो मुझे आप की कारगुजारियों की सारी खबरें देते रहते हैं. आप ने माधवी के साथ एक फिल्म देखी है, 3 बार डिनर किया है और लगभग रोज शाम को मिलते रहे हो इस से. आज रंगे हाथों पकड़ा है मैं ने आप को. अब तो झूठ मत बोलो.’’

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