दिल्ली से भोपाल तक का सफर  बहुत लंबा नहीं है, लेकिन भैया से मिलने की चाह में श्रेया को वह रात काफी लंबी लगी थी. ज्यादा खुशी और दुख दोनों में ही आंखों से नींद उड़ जाती है. बस, वही हाल दिल्ली से भोपाल आते हुए श्रेया का होता है. नींद उस की आंखों से कोसों दूर भाग जाती है. रातभर अपनी बर्थ पर करवटें बदलते हुए वह हर स्टेशन पर झांक कर देखती है.

‘भोपाल आ तो नहीं गया?’

‘अभी कितनी दूर है?’

जैसेतैसे सफर खत्म हुआ और टे्रन भोपाल पहुंची. खिड़की से ही उसे भैया दिख गए. वे फोन पर बातें कर रहे थे. ट्रेन रुकते ही भैया लपक कर डब्बे में उस की बर्थ ढूंढ़ते हुए आ गए. श्रेया बड़े भैया से लिपट गई. उस की आंखें भीग गईं. उस के बड़े भाई श्रेयस की आंखें भी छोटी बहन को देखते ही छलक गईं.

दोनों स्टेशन से बाहर निकले और कार में बैठ कर घर की ओर चल दिए. श्रेया भाई से बातें करने के साथ ही एकएक सड़क और आसपास की हर एक घरदुकान को बड़े कुतूहल से देख रही थी. वह अकसर ही भाई के यहां आती रहती थी. जहां बचपन गुजरा हो उस जगह का मोह सब चीजों से ऊपर ही होता है. जल्दी ही कार उन के पुश्तैनी मकान के आगे रुकी. श्रेया ने नजरभर घर को देखा और भैया के साथ अंदर चली गई.

रसोई से श्रेया के पसंदीदा व्यंजनों की खुशबू आ रही थी. कार की आवाज सुनते ही उस की भाभी स्नेहा लपक कर बाहर आई.

‘‘भाभी, कैसी हो?’’ श्रेया भाभी स्नेह के गले में बांहें डाल कर झूल गई.

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