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कुछ लोगों को भविष्य के बारे में स्वप्न आते हैं तो कुछ चेहरे के भावों को देख कर सामने वाले का भविष्य बता देते हैं. रंजना ने भी मुझे पढ़ कर बता दिया था. पर अब मैं क्या कर सकता हूं. उस ने सोचा, मैं अपने हाथों से अपने ही सपनों को आग लगाऊंगा. फिर उसे लगा कि नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता हूं लेकिन ऐसा करना ही पड़ेगा. और कोई चारा भी तो नहीं है.

दीवार पर लटकी घड़ी में घंटे की आवाज से वह घबरा सा गया. उसे हाथों में गीलापन सा महसूस हुआ. जैसे उस ने अभीअभी रंजना का हाथ छोड़ा हो और रंजना की हथेली की गरमाहट से उस के हाथ में पसीना आ गया है.

उस ने जल्दी से तौलिया उठाया और उंगलियों के एकएक पोर को रंगड़रगड़ कर पोंछने लगा. फिर भी वह संतुष्ट नहीं हो पा रहा था. उसे बराबर अपना हाथ गीला महसूस होता रहा. गीले हाथों से ही तो कच्ची मिट्टी के बरतनों को संवारा जाता है. उस ने अपने गीले हाथों से उस समय की मिट्टी को सजासंवार तो लिया था पर सहेज कर रखने के लिए पका नहीं पाया.

‘मैं क्यों नहीं कर पाया ऐसा? क्यों मैं एक ऐसी सड़क का मुसाफिर बन गया जो कहीं से चल कर कहीं नहीं जाती.’

उस ने किताब को अपने से परे किया और बिस्तर पर पड़ी चादर से खुद को सिर से ले कर पांव तक ढंक लिया. उसे याद आया कि लाश को भी तो इसी तरह पूरापूरा ढंकते हैं. वह अपने पर हंसा. उसे अपना दम घुटता सा लगा. मुझे यह क्यों नहीं याद रहा कि मैं अभी तक जिंदा हूं. उसे अपने हाथ ठंडे से लगे. वह अपने हाथों के ठंडेपन से परेशान हो उठा. नहीं, मेरा हाथ ठंडा नहीं है, इसे ठंडा नहीं होना चाहिए. इसे गरम होना ही चाहिए.

‘ठंडे हाथ वाले बेवफा होते हैं,’ रंजना की आवाज उस के कानों में पड़ी.

‘अच्छा, तुम्हें कैसे पता?’

‘मैं ने एक किताब में पढ़ा था,’ रंजना बोली.

‘क्या किताबों में लिखी सारी बातें सच ही होती हैं?’

‘पर सब गलत भी तो नहीं होती हैं,’ रंजना जैसे उस के अंदर से ही बोली.

‘नहीं, मेरे हाथ ठंडे कहां हैं,’ उस ने फिर छू कर देखा और उठ कर बैठ गया. चादर को उस ने अपने दोनों हाथों पर कस कर लपेट लिया. पर उसे लगा जैसे उस ने अपने दोनों हाथ किसी बर्फ की सिल्ली में डाल दिए हैं. उस ने घबरा कर चादर उतार दी, ‘क्या मेरे हाथ वाकई ठंडे हैं? पर न भी होते तो क्या,’ उस ने सोचा, ‘मेरे माथे पर जो ठप्पा लगने वाला था, उस से कैसे बच सकता हूं.’

‘यह मुझे क्या हो रहा है?’ उस ने सोचा, ‘मैं पागल होता जा रहा हूं क्या?’ उस की आवाज गहरे कु एं से निकल कर आई.

‘तुम तो बिलकुल पागल हो,’ रंजना हंसी.

‘क्यों?’

‘अरे, यह तक नहीं जानते कि रूठे को कै से मनाया जाता है,’ रंजना बोली.

‘मैं क्या जानूं. यू नो, इट इज माई फर्स्ट लव.’

फिर इसी बात पर वे कितनी देर तक हंसते रहे.

हंसना तो जैसे वह भूल ही गया. उसे ठीक से याद नहीं आ रहा था कि वह आखिरी बार कब खुल कर हंसा था. वह उठा और खिड़की खोल दी. खिड़की के पल्ले चरमरा कर खुल गए.

‘काश, मैं इसी तरह जिंदगी में खुशी की खिड़की खोल पाता.’

उस ने कहा, कितनी बातें जीवन में ऐसी होती हैं जिन्हें शब्दों में नहीं ढाला जा सकता. वे बातें तो मन के किसी कोने में अपने होने का एहसास दिलाती रहती हैं बस. ठीक उसी खिड़की के नीचे कुछ गमले रखे हुए थे. हर बार बरसात में उन गमलों में फूलों के आसपास अपनेआप कुछ उग आता जो समय के साथ अपनेआप सूख भी जाता.

वह जल्दी से बाहर निकला और गमलों के पास पहुंच कर बेतरतीब उग आए घासफूस के झुंड को जल्दीजल्दी फूलों के चारों ओर से हटाने लगा. गमलों के फूल जैसे मुसकरा उठे. उस ने हलकी सी जुंबिश ली और तन कर खड़ा हो गया. कितने सुंदर होते हैं फूल. कितने सुंदर होते हैं सपने. पर मुरझा कर बिखर जाना ही उन की नियति है. उस के सपने भी फूल की तरह एक दिन मुरझा कर गिर जाएंगे.

‘टुकड़ोंटुकड़ों में मरना भी एक कला है,’ वह हंसा, ‘चलो, जब रंजना नहीं रहेगी तो कुछ तो मेरे पास रहेगा. मैं धीरेधीरे अपनेआप को मारूंगा. पहले कौन सा हिस्सा मरेगा… सब से पहले मैं अपने हाथों को मारूंगा. ये हमेशा ठंडे रहते हैं और घोषणा करते रहते हैं. इन्हें सब से पहले मरना चाहिए. फिर दिमाग को, क्योंकि यह भी हमेशा रोका करता है कि यह सही   है, यह गलत है. तुम पर ये जिम्मेदारियां हैं. ये न करो वो न करो. सब बकवास. फिर मुंह को, फिर आंख को और सब से बाद में कान को.’

‘तुम्हारे कान कितने प्यारे हैं,’ रंजना उस के कान से खेलती हुई बोली.

‘अच्छा, पर क्या तुम्हें मुझ में सिर्फ कान ही अच्छे लगते हैं और कुछ नहीं?’

‘नहीं, ऐसी बात नहीं है पर इन्हीं कानों से तो मैं अपने होेंठों की बात सुनती हूं,’ रंजना की उंगलियां बड़ी देर तक उस के कान से खेलती रहीं.

रंजना जैसे उस के कानों में खिलखिलाई हो. उस ने अपना कान छू कर देखा, कुछ मिट्टी सी लगी हुई थी. शायद गमले से घासफू स साफ करते हुए उस का हाथ कान तक गया हो और मिट्टी लग गई हो, पर उसे लगा जैसे घासफूस वहां भी उग आई हो. वक्त की साजिश की खरपतवार.

इन्हें हटाना आसान भी तो नहीं होता, पौराणिक कथाओं में आए रक्तबीज राक्षस की तरह. उस का प्रेम का कोमल सा पौधा इन खरपतवारों में फंस कर दम तोड़ देगा.

‘उफ, कितना विवश हो रहा हूं मैं,’ उस ने सोचा, ‘नहीं कर सकता कुछ चाह कर भी, पर मैं चाहता क्या हूं?’ उस ने जैसे अपनेआप से ही पूछा. इस का कोई उत्तर उस को खुद ही समझ में नहीं आया.

वह निढाल सा बिस्तर पर बैठ गया और छत की तरफ देखने लगा. हलकी सी भिनभिनाहट की आवाज उस के कानों में पड़ी. उस ने देखा, छत के एक कोने में एक कीड़ा जाले में फंस गया था और वह उस से निकलने का जितना प्रयास करता उतना ही और उलझता जा रहा था. ठीक इसी तरह वह जितना उलझनों से निकलने के बारे में सोचता, उतना ही उलझनों में घिरता चला जाता.

वह उठा और उस के मुंह से निकला, ‘मैं शायद अपनी उलझनों को न सुलझा पाऊं, पर तुम्हें तो निकाल ही दूंगा,’ उस ने झाड़ ू उठाई और स्टूल पर चढ़ कर जाले को साफ कर दिया. काश, कोई ऐसी झाड़ ू होती जिस से वह अपनी उलझनों के जाले को साफ कर पाता.

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